Sunday, November 30, 2014

       किस्मत अपनी अपनी

हम को कब मालूम होता ,किसी की बेटी कोई,
   पल रही है किसी के घर बन के उसकी लाड़ली
एक दिन बन जाएगी तुम्हारी जीवनसंगिनी ,
        और तुम्हारे वास्ते वो घर में कोई के पली
हर एक घर पे ये लिखा है,कौन इसमें रहेगा ,
        हर एक फल पर ये लिखा है कौन इसको खायेगा
कौनसा फल पेड़ से गिर जाएगा तूफ़ान में,
        मुरब्बा किसका बनेगा,कौन सा सड़  जाएगा
लिख दिया है विधाता  ने,सभी कुछ तक़दीर में ,
          बुरा,अच्छा,सुख और दुःख जो भोगना इंसान ने
इसलिए हम कर्म बस ,अपना सदा करते रहें,
         फल हमें क्या मिलेगा ,सब लिख रखा भगवान ने

घोटू  

अक्स

          अक्स

 कुछ दिनों अक्सों से अपने ,मैंने की थी  दोस्ती ,
       बांटता अपने ग़मों को ,आईने से लिपट कर
देख मुझको गमजदा ,ग़मगीन होते अक्स थे  ,
       अक्स भी आंसू बहाते ,मुझको रोता देख कर
अक्स मेरे चिर परिचित ,दोस्त  लगने लगे थे ,
मेरे ही मन के मुताबिक़ ,रहता उनका रूप था,
कोइ से भी आईने को देख कर लगता था ये ,
         अक्स  हँसते और रोते ,थे मेरा  रुख  देख कर 
कल भरे तालाब में ,मैं था किसी को ढूढ़ता ,
टकटकी मुझ पर लगाए ,मेरा ही चेहरा दिखा ,
पर न जाने ,अँधेरे में ,गुम किधर वो हो गया ,
         मुश्किलों में अक्स जाते है अकेला छोड़ कर
जैसे कि साया भी भरता दोस्ती का दम सदा,
साथ आता रोशनी के और जाता है चला ,
अच्छे दिन में साथ देते ,अक्स भरमाते हमें ,
             छोड़ते हमको अकेला,अँधेरे में,रात भर 
कांच के घर में खड़ा था,हर तरफ था आइना ,
अक्स देखे ,लगा लगने ,मेरे कितने दोस्त है,
वक़्त की एक कंकरी से ,टूटे सारे  आईने ,
       अकेले ही करना पड़ता ,सबको जीवन का सफर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीभ और दांत

           जीभ और दांत

जीभ ,दांतों की हमेशा सबसे अच्छी दोस्त है ,
            दांत रखते है दबा कर ,फिर भी हंसती ,बोलती
चबाते है दांत सबको ,पर बचाते जीभ को,
           घिरी रहती दांतों  से है ,हर तरफ  पर डोलती      
दांत होते सख्त है और जीभ होती है नरम,
           मगर इनकी दोस्ती का निराला   अंदाज  है
जो भी मिलता खाने को,उसको चबाते दांत है,
           और अपनी दोस्त  जिव्हा को वो देतें स्वाद है
दांत में क्या फंस गया है ,दांत भी ना जानते ,
           सच्ची हमदम जीभ होती ,उस को लग जाता पता
धीरे धीरे घूमफिर कर ,ढूंढ लेती है  उसे,
            लेती है दम  ,वो किसी भी तरह  से उसको हटा    

घोटू

मतलब के यार

        मतलब के यार

सर्दियों में दोस्ती की ,गर्मियों में छोड़ दी ,
समझ हमको रखा है,कम्बल, रजाई की तरह
जब तलक मतलब रहा तुम काम मे लेते रहे ,
फेंक हमको दिया टूटी चारपाई  की तरह
इससे अच्छा ,छतरी होते,काम आते साल भर,
लोग हमको रखा करते सदा अपने साथ  में
दोस्ती उनसे निभाते ,हाथ उनका थामकर ,
धूप गर्मी से बचाते, पानी से  बरसात में

घोटू

सूट और बनियान

           सूट और बनियान

बड़ा गर्वित ,हज़ारों का सूट था कपबोर्ड में ,
               हेंगर मे लटकता ,मन में बड़ा अभिमान था
और नीचे, अलमारी के एक कोने में पड़ा,
               साफ़सुथरा और धुला सा ,सूती एक बनियान था  
सूट ने भोंहे  सिकोड़ी ,देख कर बनियान को ,
                  सामने मेरे खड़े ,क्या तुम्हारी औकात   है 
हंस कहा बनियान ने तुम काम आते चंद दिन ,
                  और मालिक संग मेरा ,रात दिन का साथ है

घोटू

आज कल

                   आज कल

हो गया है आजकल कुछ इस तरह का सिलसिला
              छोटे छोटे खेमो  में ,बंटने लगा  है काफिला
जी रहा हर कोई अपनी जिंदगी निज ढंग से ,
     क्या करें शिकवा किसी से ,और किसी से क्या गिला  
अहमियत परिवार , रिश्तों की भुलाती जा रही,
             आत्मकेंद्रित हो रही है आजकल की  पीढ़ियाँ  
इस तरह से कमाने का छारहा सबमे जूनून,
                जुटें है दिनरात चढ़ने तरक्की की सीढ़ियां
पहले कुछ करने की धुन में खपते है दिन रात सब,
              बाद में फिर सोचते है,करे शादी,घर बसा
और उस पर नौकरीपेशा ही बीबी चाहिए ,
              बदलने यूं लग गया है जिंदगी का फलसफा
थके हारे मियां बीबी,आते है जब तब कभी,
              फोन से खाना मंगाया,खा लिया और सो गए
सुबह फिर उठ कर के भागें ,अपने अपने काम पर,
                  सिर्फ सन्डे वाले ही अब पति पत्नी हो गए     
गए वो दिन जब बना पकवान ,सजधज शाम को,
            पत्नियां ,पति की प्रतीक्षा ,किया करती प्यार से
पति आते,करते गपशप,चाय पीते चाव से,
            रात को खाना खिलाती थी ,पका ,मनुहार से
आजकल बिलकुल मशिनी हो गयी है जिंदगी ,
             किसी के भी पास ,कोई के लिए ना वक़्त है
बहन,भाई,बाप,माँ,ये सभी रिश्ते व्यर्थ है ,
              मैं हूँ और मुनिया मेरी ,परिवार इतना फ़क़्त है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 28, 2014

          व्यायाम केंद्र

त्याग कर के नींद अपनी ,भाग आते ,जाग कर ,
                   लाख  हमको आये आलस ,मगर रुकते हम  नहीं
अच्छी सेहत का है लालच ,स्वास्थ्य की दीवानगी,
                   आपकी ये व्हिसिल ,रणभेरी से कोई कम नहीं
चाहे गर्मी ,चाहे सर्दी या चाहे बरसात हो ,
                    रोक सकता है हमें अब कोई  मौसम   नहीं  
करते वर्जिश ,खिलखिलाते और बजाते तालियां,
                     बूढ़े है तो क्या हुआ ,हम भी किसी से कम नहीं     

घोटू

खड़े खड़े

               खड़े खड़े

हमें है याद स्कूलमे,शैतानी जब भी करते थे,
              सज़ा अक्सर ही पाते थे,बेंच पर हम खड़े होकर
गए कॉलेज तो तकते थे,लड़कियों को खड़े होकर,
              नया ये शौक पाला  था ,जवानी में बड़े होकर
हुस्न कोई अगर हमको ,कहीं भी है नज़र आता ,
              अदब से हम खड़े होकर ,सराहा करते ,ब्यूटी है
ट्रेन लोकल में या बस में,सफर  करते खड़े होकर ,
              खड़े साहब के आगे हो ,निभाया करते ड्यूटी  है
मुसीबत लाख आये पर ,तान सीना खड़े रहते ,
               बहुत है होंसला जिनमे,उन्हें सब मर्द कहते है
किसी की भी मुसीबत में,खड़े हो साथ देते है ,
               दयालू लोग वो  होते, उन्हें  हमदर्द   कहते  है
बनो नेता ,करो मेहनत ,इलेक्शन में खड़े  होकर,
              जीत कर पांच वर्षों तक ,बैठ सकते हो कुर्सी पर
बड़े एफिशिएंट कहलाते ,तरक्की है सदा पाते ,
               काम  घंटों का मिनटों में,जो निपटाते खड़े रह कर
खड़े हो जिंदगी की जंग को है  जीतना पड़ता ,
               आदमी रहता है सोता ,अगर यूं ही पड़ा  होता      
खड़े होना सज़ा भी है,खड़े होना मज़ा भी है,
                जागता आदमी है जब ,तभी है वो खड़ा होता
इशारे उनकी ऊँगली के ,और हम नाचे खड़े होकर ,
                  जवानी में खड़े होकर ,बहुत की उनकी खिदमत है
आजकल तो ठीक से भी,खड़े हम हो नहीं पाते ,
                    बुढ़ापा ऐसा आया है,  हो गयी पतली हालत है

मदन  मोहन बाहेती'घोटू'     

जिंदगी -दिन ब दिन

              जिंदगी -दिन ब दिन 

हरेक दिन कम हो रहा है ,जिंदगी का एक दिन
एक दिन  फिर आएगा वो,,हम न होंगे  एक दिन
हँसते रोते ,हमने यूं ही, काट दी ,ये  जिंदगी ,
साथ में थोड़े तुम्हारे ,और कुछ तुम्हारे  बिन
मस्तियों  में गुजारा करते थे हमतो अपने दिन ,
क्षीण होते जारहे है ,आजकल हम दिन बदिन
हरेक दिन बस इस तरह का चला करता सिलसिला ,
कोई दिन होता है अच्छा,कोई होता  बुरा दिन
हुए थे जिस रोज पैदा ,मनाते है हम जशन ,
श्राद्ध बच्चे  मनाएंगे, साल में फिर एक दिन

घोटू

कबूतर कथा

                       कबूतर कथा

एक कबूतर गर न उड़ता ,हाथ से मेहरुन्निसा के ,
            प्यार की एक दास्ताँ का ,फिर नहीं आगाज होता
संगेमरमर का तराशा और बेहद खूबसूरत,
            प्यार की प्यारी निशानी ,ताज भी ना आज होता
शरण में आये कबूतर को बचा राजा शिवि ने ,
             बाज को निज मांस देकर ,धर्म था  अपना निभाया
एक कबूतर वहां भी था,जहाँ बर्फानी गुफा में ,
               पार्वती जी को शिवा ने,अमर गाथा को सुनाया
न तो उड़ते अधिक  ऊंचे ,ना किसी को छेड़ते है,
                दाना जो भी उन्हे मिलता ,उसे खाकर दिन बिताते 
न तो कांव कांव करते ,और ना ज्यादा चहकते ,
                  पंछी मध्यम वर्ग के  ये बस 'गुटर गूं 'किये जाते
जब न टेलीफोन होते ,तो तड़फते प्रेमियों के ,
                गर कबूतर नहीं होते ,तो संदेशे  कौन  लाते 
 बहुत सीधे और सादे,काम से निज काम रखते ,
                 इसलिए ही तो कबूतर ,दूत शांति के कहाते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


                       कबूतर कथा

एक कबूतर गर न उड़ता ,हाथ से मेहरुन्निसा के ,
            प्यार की एक दास्ताँ का ,फिर नहीं आगाज होता
संगेमरमर का तराशा और बेहद खूबसूरत,
            प्यार की प्यारी निशानी ,ताज भी ना आज होता
शरण में आये कबूतर को बचा राजा शिवि ने ,
             बाज को निज मांस देकर ,धर्म था  अपना निभाया
एक कबूतर वहां भी था,जहाँ बर्फानी गुफा में ,
               पार्वती जी को शिवा ने,अमर गाथा को सुनाया
न तो उड़ते अधिक  ऊंचे ,ना किसी को छेड़ते है,
                दाना जो भी उन्हे मिलता ,उसे खाकर दिन बिताते 
न तो कांव कांव करते ,और ना ज्यादा चहकते ,
                  पंछी मध्यम वर्ग के  ये बस 'गुटर गूं 'किये जाते
जब न टेलीफोन होते ,तो तड़फते प्रेमियों के ,
                गर कबूतर नहीं होते ,तो संदेशे  कौन  लाते 
 बहुत सीधे और सादे,काम से निज काम रखते ,
                 इसलिए ही तो कबूतर ,दूत शांति के कहाते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, November 24, 2014

बुढ़ापे में-पत्नी के कितने ही रूप

   बुढ़ापे में-पत्नी के कितने ही रूप

उम्र के इस मोड़  पर
सभी बच्चों ने बसा लिया है अपना घर,
हमें तन्हा छोड़ कर
मैं और मेरी पत्नी,दोनों अकेले है ,
पर मिलजुल कर वक़्त काटते है
अपनी अपनी पीड़ाएँ ,आपस में बांटते है
कई बार ऐसे भी मौके आते है
मुझे अपने परिवार के लोग,
अपनी पत्नी में नज़र आते है
जैसे फुर्सत में कभी कभी ,
जब वो मेरे बालों को सहलाती है
मुझे बचपन में,मेरे बालों को सहलाकर ,
कहानी  सुनाती हुई 'दादी' नज़र आती है
और जब वो मेरी पसंद का खाना बना,
बड़ी मनुहार कर ,मुझे प्यार से खिलाती है
उसमे,मुझे  मेरी 'माँ'की छवि नज़र आती है
जब कभी बड़े हक़ से ,
छोटी छोटी चीजों के लिए जिद करती है
मुझे अपनी 'बेटी' सी लगती है
और जब नाज़ और नखरे दिखा कर लुभाती है
तब मुझे वो मेरी पत्नी नज़र आती है
कई बार मुझे लगता है कि इसी तरह ,
हम एक दूसरे में,अपना बिछुड़ा परिवार  ढूंढते है
 बस इसी तरह ,खरामा ,खरामा ,
 बूढ़ापे  के दिन कटते  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, November 23, 2014

जन्मदिन- अंदाज़ अपना अपना

    जन्मदिन- अंदाज़ अपना अपना

एक 'माया'मनाया करती थी अपना जन्मदिन,
                   हजारों के हजारों नोटों की माला पहन कर
एक 'मुलायम'ने मनाया ,बड़ी शौकत शान से ,
                     मंगाई लन्दन से बग्घी ,जुलुस निकला बैठ कर
केक लंबा पिचहत्तर फिट,मंगाया ,काटा ,गया ,
                    लोहियावादी मुखौटा,राजसी  अंदाज था
किन्तु 'मोदी'ने मनाया ,सादगी से जन्म दिन,
                    बिना आडम्बर किये और माँ का आशीर्वाद पा

घोटू 

Thursday, November 20, 2014

निमंत्रण

           निमंत्रण

दे गए मुझको निमंत्रण ,स्वप्न थे कल रात आ के
कल मेरे अरमान की शादी तुम्हारी कामना   से
तुम्हारे स्वर्णिम बदन पर ,कल सुबह हल्दी चढ़ेगी
चन्द्र मुख यूं ही सुहाना  ,चमक और ज्यादा बढ़ेगी
तारिका की चुनरी में ,सज संवर तुम आओगी  तो,
यूं ही तो मैं  बावरा हूँ , धड़कने  मेरी   बढ़ेगी
देख कर सौंदर्य अनुपम ,गिर न जाऊं डगमगा के
कल मेरे अरमान की शादी तुम्हारी कामना से
शाम मैं घोड़ी चढूंगा,आऊंगा  बारात लेकर
डाल वरमाला  गले में ,बांध लोगी तुम उमर भर
मान हम साक्षी अगन को ,सात फेरे ,साथ लेंगे ,
सात वचनों को में बंधेंगे ,निभाने को जिंदगी भर
तृप्ती कितनी पाउँगा में ,सहचरी  तुमको बना के 
कल मेरे अरमान की शादी तुम्हारी   कामना से

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आम का वृक्ष -उमर का असर

          आम का वृक्ष -उमर का असर

आम का वृक्ष,
जो कल तक ,
दिया करता था मीठे फल
अब छाँव देता है केवल
इसलिए उपेक्षित है आजकल
भले ही अब भी ,
उस पर कोकिल कुहकती है
पंछी कलरव करते है,
शीतल हवाएँ बहती है
पर,अब तो बस केवल
पूजा और शुभ अवसरों पर ,
कुछ पत्ते बंदनवार बना कर ,
लटका  दिये जाते है
जो उसकी उपस्तिथि  अहसास आते है
उसके अहसानो का कर्ज ,
इस तरह चुकाया जाता  है
कि उसकी सूखी लकड़ी को,
हवन में जलाया जाता है
फल नहीं देने  फल ,
उसे इस तरह मिल रहा  है 
आम का वृक्ष ,
अब बूढ़ा जो हो रहा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन संध्या

       जीवन संध्या

बड़ी बड़ी बुलंद इमारतें भी ,
शाम के धुंधलके में ,
नज़र  नहीं आती है
अस्तित्व होते हुए भी ,
 गुम  हो जाती है
ऐसा ही होता है,
जब जीवन की संध्या आती है

घोटू

बदलाव -बढ़ती उमर का

            बदलाव -बढ़ती  उमर का

पेट कल भी भरा करता था इसी से ,
                पेट भरती  आजकल  भी तो यही है
फर्क ये है कल गरम फुलका नरम थी,
                आजकल ये डबल रोटी   हो गयी  है
साथ जिसके जागते थे रात भर हम ,
                  जगाती  है हमें अब भी ,रात भर वो
तब जगा  करते थे मस्ती मौज में हम,
                 नहीं सोने देती है अब खांस कर वो
पहले सहला ,लगा देते आग तन में,
                 हाथ नाजुक ,कमल पंखुड़ी से नरम जो
हो गए है आजकल वो खुरदुरे से ,
                 अब भी राहत देते है खुजला   बदन को
था  ज़माना प्रेम से हमको खिलाती ,
                  कभी रसगुल्ला ,जलेबी या मिठाई
आजकल  मिठाई पर पाबंदियां है ,
                  देती सुबहो शाम है हम को दवाई  
रोकती हमको पुरानी हरकतों से ,
                   कहती ब्लडप्रेशर  तुम्हारा बढ़ न जाये
जोश होता हिरण ,रहते मन मसोसे ,
                    बुढ़ापे ने हमको क्या क्या  दिन दिखाये

मदन मोहन बाहेती''घोटू'

Monday, November 17, 2014

तुम्हारे हाथों में

              तुम्हारे हाथों में

जो हाथ पकाते जब खाना ,तो गजब स्वाद भर जाता है
छू लेती जिन्हे हरी मेंहदी ,तो लाल रंग   रच जाता   है
जिन हाथों का कर पाणिग्रहण ,रिश्ता बंधता जीवन भर का
जिन हाथों की ही फुर्ती से ,चलता है काम सभी घर का
जो हाथ प्रेम से सहला कर ,पति मन में प्रेम जगाते है
जिन हाथों के ही बाहुपाश में ,दो प्रेमी बंध  जाते है
जिन हाथों में आ पैसा भी ,बहती गंगा बन जाता है
बस एक इशारा जिनका सब पतियों को खूब नचाता है
जिन हाथों में बेलन आता ,तो रोटी बना खिलाता है
गुस्से में पर वो ही बेलन ,हथियार बड़ा बन जाता है
रोता बच्चा खुश हो जाता है आकर के जिन हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में
 
मदन मोहन  बाहेती'घोटू'

Sunday, November 16, 2014

            कर्णधारों से

कितने ही ताले लगवा लो ,दरवाजे तुम बंद  करवा लो
सीमाओं पर तुम कितने ही ,काँटेवाले  तार लगालो 
लेकिन जब तक मुस्तैदी से,अगर चौकसी नहीं बढ़ेगी
तब तक इन दहशतगर्दों की ,आवाजाही  नहीं रुकेगी
ताले चोरी नहीं रोकते ,     उलटे चोरी करवाते है
जब सूनापन सा दिखता है,चोर दिवार  फांद आते है
कोई चौकीदार अकेला ,चोरी नहीं रोक पाता   है
हमें जागरूक वो करता है ,चोर तभी तो घबराता है
आमंत्रित कर रहे चोर को ,दरवाजे पर लटका ताला
किन्तु सुरक्षा के चक्कर में ,तुमने क्या निर्णय ले डाला
काश्मीर में बढ़ा सुरक्षा ,राजस्थानी सीमा सूनी
दुश्मन को आवाजाही की ,छूट मिला करती है दूनी
इससे ज्यादा बेहतर ये है ,बढे चौकसी और निगरानी
खुली रखें सब अपनी आँखें ,तभी सुरक्षित घर के प्राणी
 सीमा पर प्रहरी बढ़वाओ, अच्छा बंदोबस्त रहेगा
हो सतर्क हर एक नागरिक,तभी सुरक्षित देश रहेगा
कम जाते है चोर जहाँ पर ,चहल पहल रहती रौनक है
सीमा पर बढ़ जाए सजगता ,सबसे ज्यादा आवश्यक है
हमें सुरक्षा घरवालों की ,करना है देख भाल जरूरी 
बूढ़े,बच्चे ,महिलाओं की  ,दिक्कत का भी ख्याल जरूरी
लेकिन जब तक चौकीदारी और सुरक्षा ना सुधरेगी 
दरवाजे बंद करवाने से ,दहशतगर्दी  नहीं  रुकेगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 14, 2014

शिकायत-तकिये की

         शिकायत-तकिये की

एक तकिये ने अपनी मालकिन से की ये शिकायत ,
              अकेले छोड़ कर के  साहब को जब आप जाते है
आप तो चैन से मइके में जाकर मौज करते है,
                इधर दो रात मे ही निकल मेरे प्राण   जाते है
बदल जाता है मेरा हुलिया ,हालत बिगड़ती है,
                 मौन सहता हूँ सब कुछ ,बोल भी तो मैं नहीं  सकता,
कभी टेढ़ा ,कभी सीधा,कभी ऐसे ,कभी वैसे,
                  बड़ी बेरहमी से साहब जी, मुझको दबाते है

घोटू 

जाती बहार के फल

        जाती बहार के फल

खिलता है तो लगता है सुहाना और महकता ,
                मौसम में  हर एक फूल पर चढ़ता शबाब है
अनुभव की बात आपको लेकिन हम बताएं ,
                  गुलकंद बन ,अधिक मज़ा देता  गुलाब है
मौसम में तो मिलते थे हमें रोज ही खाने ,
                  अब मुश्किलों से मिलते है,वो भी कभी कभी,
खाकर के देखो आम तुम जाती बहार के ,
                    पड़ जाते नरम,स्वाद में पर लाजबाब है

घोटू

बढ़तीं उमर की रईसी

          बढ़तीं उमर की रईसी

हम हो गए रईस है इस बढ़ती उमर में,
         सर पर है चांदी और कुछ सोने के दांत है
किडनी में,गॉलब्लेडर में ,स्टोन कीमती,
         शक्कर का पूरा कारखाना ,अपने साथ है
अम्बानी के तो गैस के कुवें समुद्र में ,
         हम तो बनाते गैस खुद ही ,दिन और रात है
है पास में इतना बड़ा अनुभव का खजाना ,
         जिसको कि बांटा करते है हम ,खुल्ले हाथ है    

घोटू

पूजा और प्रसाद

         पूजा और प्रसाद

बाद शादी के पडी बस ये ही आदत
किया करते रोज पत्नी की इबादत
और खाने मिल रहे पकवान तर है
चैन से ये जिंदगी होती बसर  है
नहीं पत्थर की प्रतिमा पूजते हम
हुस्न की जीवित प्रतिमा पूजते हम
पूर्ण श्रध्दा ,आस्था की  भावना से
सर नमाते,प्रेम की हम  कामना से
देवी के श्रृंगार हित नव वसन  लाते
स्वर्ण आभूषणो से उसको सजाते
प्रेम की भर भावना और जोश तन में
रतजगा भी किया करते ,कीर्तन में
आरती में लीन  होते,लगन से हम
भोग का परशाद पाते है तभी हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर्दी जुकाम

           सर्दी  जुकाम

गमन आगमन पवन किया करती जिस पथ पर ,
                   उस पथ से अब बहती  गंगा जमुना  धारा
दबी पवन उद्वेलित होकर बड़े कोप से ,
                  छूट   तोप की तरह  ,गूंजा देती घर सारा
शीत  हो रही व्याप्त  और मौसम सिहरन  का ,
                  चली गयी है ऊष्मा फिर भी तप्त  बदन है
नहीं समझ में आता है क्या मुझे हुआ है ,
                   बैचैनी सी छाई ,तन में भारी पन  है
मुश्किल होती ,श्वासोच्छ्वास  मुझे  करने में ,
                   और चैन से सोना आज हराम होगया
अम्मा बोली,घुमा फिरा कर बातें मत कर ,
                  काढ़ा पी ले,तुझको सिर्फ  जुकाम होगया

घोटू

वक़्त वक़्त की बात

            वक़्त वक़्त की बात

रहता किसी  का  वक़्त  कभी  एक सा नहीं
किस्मत बदलती सबकी जब आता समय सही
रहती  है  दबी  ,आठ माह ,बक्से  के अंदर
मौसम में सर्दियों के जब  आती है निकल कर
तो प्यार सबका कितना फिर पाती रजाइयां
कितने  हसीन  जिस्मो  पर, छाती रजाइयां
हम भी रजाई की तरह ,अरमान   दबाये
बैठे है इन्तजार में  कि  अच्छे  दिन आएं
किस्मत हमारी ,हम पे भी हो  जाये मेहरबाँ
हमको भी अपनी बाहों में भर लेगी  दिलरुबां

घोटू

नाम का क्या काम

            घोटू के छक्के          
           नाम का क्या काम
                       १
'सर 'सर'कह कर जूनियर ,सर पर हमें चढाय
और अफसर ,सर नेम से,केवल  हमें  बुलाय 
केवल  हमें  बुलाय ,कहे 'लल्लाजी '  भौजी
बीबी काम  चलाय हमें कह 'ऐ  जी' ओ  जी'
बच्चे कहते 'पापा 'और  'मुन्ना'  माताजी
और 'साहब जादे 'कहते  है हमें   पिता जी
                        २
लम्बे चौड़े नाम का ,फैशन अब गुमनाम
'शार्ट फॉर्म 'के नाम से ,अब चलता है काम
अब चलता है काम ,हमारे इनिशियल से
 कोई  हमें जानता सिरफ़  फ्लेट  नंबर से
कह 'घोटू' कविराय ,कहे कन्याये 'अंकल'
चेहरा,नाम 'फेस बुक' पर ही दिखता केवल

घोटू

Wednesday, November 12, 2014

स्वच्छता अभियान

           स्वच्छता अभियान

तेरे मन में ,मेरे मन में,सबके मन में मैल ,
                              निकाले उसको  कैसे ?
लालच,स्वार्थ ,घृणा ,हिंसा का कचरा  फैला
                               बुहारे    उसको  कैसे ?
चला स्वच्छ अभियान ,हाथ में झाड़ू लेकर
 हटा  गंदगी, होगे  गाँव,सड़क ,सब सुन्दर
इधर उधर बिखरा कचरा तो बुहर  जाएगा
लीप पोत  कर ,रंग घरों का निखर जाएगा
किन्तु स्वच्छता तन संग, मन की आवश्यक है ,
                                       सँवारे  उसको कैसे?
तेरे मन में,मेरे मन में  ,सबके मन में  मैल ,
                                        निकाले उसको कैसे?
कलुषित हुए विचार,मनो पर मैल  चढ़ रहा
दिन दिन बेईमानी ,भ्रष्टाचार  बढ़  रहा
भुला दिए आदर्श,संस्कृति ,संस्कार  के
नित्य उजागर काण्ड हो रहे व्यभिचार के
चिंदी चिंदी बिखर रही है ,अबलाओं  की लाज,
                                 संभाले उसको कैसे ?
मेरे मन में,तेरे मन में,सबके  मन में मैल  ,
                                  निकाले उसको कैसे?

मदन मोहन बाहेती''घोटू'

Wednesday, November 5, 2014

मेंहदी

                   मेंहदी

हरे पत्ते थे  झाडी  के,  खड़े  थे  यूं  ही जंगल में
मगर किस्मत गयी उनकी ,बदल बस एक ही पल में
हुए कुर्बान पिस कर के ,हुस्न का साथ जब पाया
हाथ में उनके जब आये ,रंग किस्मत का पलटाया
हो गया लाल रंग उनका , समां  कर तन में गौरी के
छोड़ दी छाप कुछ ऐसी  ,बस गए मन में गौरी के
सुहागन सज गयी प्यारी ,पिया ने  हाथ जब  चूमा
प्यार कुछ ऐसा गरमाया ,चढ़ गया  रंग दिन दूना
नहीं इतना सिरफ़ केवल,जोर किस्मत ने फिर मारा
चढ़ा कर सर पे गौरी ने ,सजाया रूप निज प्यारा
रंग लिए केश सब अपने ,चमक जुल्फों में यूं आयी
छटा बालों की यूं निखरी ,सभी के मन को वो भायी
चिन्ह सुहाग का तब से ,बतायी जाती  मेंहदी है
तीज,त्योंहार,शादी में ,लगाई जाती मेंहदी  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, November 4, 2014

इलाज बतलाइये

         इलाज बतलाइये

किसी चीज को अगर चलाना ,लुब्रिकेंट लगाते है
इससे वो अच्छी चलती है,ऐसा लोग बताते  है
खुश्की की खुजली चलती है,जब जब सर्दी आती है
लुब्रिकेंट लगा देने से ,लेकिन कुछ  थम जाती  है
उल्टा चक्कर,परेशान पर ,मैं  खुश्की की खुजली से
कोई यदि उपचार बता दे ,धन्यवाद  दूंगा  जी से

घोटू

धरम-करम

          धरम-करम

धर्म के नाम पर केवल,हजारों खर्च कर देंगे
मगर भूखे गरीबों को,चवन्नी तक नहीं देंगे
मोक्ष की कामना या लालसा ले स्वर्ग की मन में,
तीर्थ और देव दर्शन में ,बिता सारी उमर देंगे
पुजारी पंडितों ने बुन रखे है जाल कुछ ऐसे ,
बनाये उस शिकंजे में ,फंसा हम अपना सर देंगे
पेट भूखे का भर दो गर ,मदद निर्धन की करदो गर
तहे दिल से दुआएं वो ,तुम्हे सारी  उमर  देंगे
मगर पाखंडियों के फेर  में जो रहोगे  उलझे ,
पता ना कल को क्या होगा ,बुरा वो आज कर देंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शोर या रौनक

             शोर या रौनक

डालों पर पंछी बैठे हो ,और नहीं हो कुछ कलरव
सन्नाटा छाया हो तरु पर ,नहीं कभी भी यह संभव
चार औरतें यदि मिल बैठे ,और छाई हो चुप्पी सी
वैसे ये तो नामुमकिन है ,क्या हो सकता  ऐसा भी
मंदिर में घंटा ध्वनी ना हो,और नहीं संकीर्तन हो
मन भक्तों का नहीं लगेगा ,न ही रुचेगा  भगवन को
बच्चे वाले घर में ना हो,शोर शराबा ,चहल पहल
ऐसे घर में मुश्किल होता ,हमें बिताना ,पल,दो पल
बीबी की हरदम की बक बक ,हमको बड़ा सुहाती है
इसी बहाने घर में  थोड़ी ,   रौनक तो हो जाती  है
बच्चे और बीबी  की बातें ,रौनक है,मत शोर कहो
है जीवन का ये सच्चा सुख ,सुन आनंद विभोर रहो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नव कविता

          नव कविता

मैंने  उनकी  सुंदरता  पर
चार पंक्तियाँ लिख दी केवल
उनने मुझे दे दिया उत्तर
एक प्यारा सा चुम्बन देकर
मेरी कलम सख्त,मसि काली
उनके होंठ नरम और लाली
मैंने शब्दों में उलझाया
उनने  जुल्फों में उलझाया
मेरी भाषा अलंकार की
उनकी भाषा शुद्ध प्यार की
मेरे शब्द पड़  गए बौने
जब उनके नाजुक होठों ने
मन का सारा प्यार घोल कर
मेरे कागज़ से कपोल पर
अपनी सुन्दर,प्यारी लिपी में
बड़े प्यार से, धीमे ,धीमे
ऐसा सुन्दर कुछ लिख डाला
जिसने किया  मुझे मतवाला
सिर्फ लेखनी की छुवन ने
उनकी मदमाती चितवन ने
ऐसी कविता मुझे सुना  दी
मेरे तन में आग लगा दी
दीवाना होकर पागल मैं
कलम छोड़ कर प्रत्युत्तर में
उनकी अपनी ही शैली में
प्यारी,मनहर,अलबेली में
उनकी ही भाषा में सुन्दर
उनके तन पर ,उनके मन पर
जगह जहाँ भी पायी खाली
मैंने नव कविता लिख डाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, November 2, 2014

सर्दी का आगाज

           सर्दी का आगाज

कल नारियल के तैल की शीशी में ,हिमकण से दिखलाये
कल दादी ने रात को ओढ़ने को ,कम्बल थे निकलाये
कल.अल्पवस्त्रा ललनाएँ ,वस्त्र से आवृत  नज़र आयी
कल सवेरे सवेरे ,कुनकुनी  सी धूप थी मन को भाई 
कल ठन्डे पानी से नहाने पर ,सिहरन सी आने लगी थी
कल से  पूरे बदन में कुछ खुश्की  सी  छाने लगी थी
कल पंछी अपने अपने  नीड़ों में कुछ जल्दी जा रहे थे
कल बिजली के पंखे के तीनो  ही पंख नज़र आ रहे थे
कल रात थोड़ी लम्बी और दिन लगा  ठिगना  था
कल हमारे बदन से भी हुआ गायब  सब पसीना  था
कल सुबह कुछ कोहरा था , बदन  ठिठुराने लगा है 
ऐसा लगता है कि अब सर्दी का मौसम आने लगा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, November 1, 2014

मिज़ाज़ -मौसम का

             मिज़ाज़ -मौसम का

बदलने लग गया है इस तरह मिज़ाज़ मौसम का,
कभी सर्दी में गर्मी है कभी बरसात रहती है
हवा के रुख का बिलकुल भी ,नहीं अबतो पता चलता ,
कभी थमकर के रह जाती ,कभी तेजी से बहती है
बदलने लग गयी है ऐसे ही इंसान की फितरत ,
भरोसा क्या करे,किस पर ,पता ना कब दगा दे दे ,
भुला बैठा है सब रिश्ते ,पड़ा है पीछे  पैसों के ,
करोड़ों की कमाई की ,हमेशा  हाय रहती  है
कमाने की इसी धुन में ,हजारों गलतियां करता ,
भुला देता धरम ईमान और सच्चाई का रास्ता ,
पड़ा  नन्यानवे  के  फेर में रहता भटकता  है,
उसे अच्छे बुरे की भी ,नहीं पहचान  रहती   है
इमारत की अगर बुनियाद ही कमजोर हो और फिर,
मिला दो आप सीमेंट में,जरुरत से अधिक रेती ,
बिल्डिंगें इस तरह की अधिक दिन तक टिक नहीं पाती  ,
जरा सा झटका लगता तो,बड़ी जल्दी से ढहती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तकिया-प्यार की दीवार

        तकिया-प्यार की दीवार

बिस्तरे पर पड़ा रहता ,यूं ही आँखें मीच मैं
नींद क्या ख़ाक आएगी,तकिया हमारे बीच में
 
नरम और चिकना ,मुलायम,सुहाना अनमोल था
बाहों में कितना दबालो ,नहीं कुछ भी बोलता
कभी था सर का सिरहाना ,देता सुख की नींद था
और विरह के पलों में जो  तुम्हारे  मानिंद  था
नियंत्रित वो आजकल, कर रहा अपना प्यार है
बीच  में  मेरे तुम्हारे ,बन  गया  दीवार  है
बीच में संयम का दरिया हम न करते पार ,पर
बदलते रहते है करवट,तुम इधर और मैं उधर
चाहता हूँ पार करना ,रोज ये दहलीज   मैं
नींद क्या ख़ाक आएगी ,तकिया हमारे बीच में
एक इसके साथ ही थे ,रात भर हम जागते
एक इसके सामने ही ,लाज थे हम त्यागते
एक ये ही साक्षी है  अपने मिलन,उन्माद का 
एक ये ही था सहारा ,सुख,शयन का,रात का
आजकल संयम शिखर सा ,बीच में है ये खड़ा
मौन मैं भी,मौन तुम भी ,मौन ये भी है पड़ा
मन बहलता आजकल बस दूर से ही देख कर
इधर मै प्यासा  तरसता ,तड़फती हो तुम उधर
देख ये बाधा मिलन की बहुत जाता खीज मै
नींद क्या खाक आएगी  ,तकिया हमारे बीच में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मेल

                        मेल
इस दुनिया में बहुत से लोग ऐसे भी खिलाड़ी है ,
          दिलों से खेलना जिनके लिए एक खेल होता है
बहुत इतराते है कुछ तिल ,जो उनके गाल पर बैठे ,
         मगर ये तिल ,नहीं वो तिल कि जिनमे तैल होता है
परीक्षा प्यार की हर एक को ही देनी पड़ती है ,
         नतीजा जब निकलता   पास ,कोई फ़ैल होता है
यूं मिलना जुलना तो किसी से कब भी हो सकता,
         नहीं हो मैल जब मन में ,तो मन का मेल   होता है

घोटू

कम्बल

            कम्बल

मुश्किल से ही मिल पाता  है ,
            जो सुख हमको केवल,कुछ पल
उस सुख से लाभान्वित होते ,
                  रहते हो तुम,रात रात भर 
बड़े प्यार से छाये रहते
                  हो गौरी के तन के ऊपर
लोग तुम्हे कहते  है कम्बल ,
                   पर तुममे सबसे ज्यादा  बल

घोटू

पहली तारीख

             
                    
                   पहली तारीख
 
पहली तारीख की रही ना,पहली वाली बात अब,
          नगद नोटों में मिला करती थी हमको सेलरी
एक दिन तो समझते थे ,हम भी खुद को बादशाह,
            जब कि  नोटों से हमारी ,जेब रहती थी भरी 
करती थी बीबी प्रतीक्षा,बना अच्छा नाश्ता ,
            बच्चों की फरमाइशों का दौर आता था नया
जब से तनख्वाह बैंक में होने लगी है ट्रांसफर ,
            वो करारे नोट गिनने का का सुहाना थ्रिल गया

घोटू