Sunday, October 4, 2015

दीवानगी -तब भी और अब भी

           दीवानगी -तब भी और अब भी

गुलाबी गाल चिकने थे,नज़र जिन पर फिसलती थी,
        अब उनके गाल पर कुछ पड़ गए है,झुर्रियों के सल
इसलिए देखता जब हूँ ,नज़र उन पर टिकी रहती ,
        फिसल अब वो नहीं पाती ,अटक जाती है झुर्री  पर
गजब का हुस्न था उनका ,और जलवा भी निराला था,
        तरस जाते थे दरशन को,देख तबियत मचलती थी
हुई गजगामिनी है वो ,हिरण सी चाल थी जिनकी ,
       ठिठक कर लोग थमते थे ,ठुमक कर जब वो चलती थी
जवानी में गधी  पर भी ,सुना है नूर चढ़ता है,
        असल वो हुस्न ,जो ढाता ,बुढ़ापे में ,क़यामत  है
हम तब भी थे और अब भी है ,दीवाने उनके उतने ही,
      आज भी उनसे करते हम,तहेदिल से मोहब्बत  है
आज भी सज संवर कर वो,गिराती बिजलियाँ हम पर ,
      उमर के साथ ,चेहरे पर ,चढ़ा अनुभव का पानी है
जानती है ,किसे घायल ,करेंगे तीर नज़रों के ,
       उन्हें मालूम ,किस पर कब,कहाँ बिजली गिरानी है
उमर के संग बदल जाता, नज़रिया आदमी का है ,
       उमर  बढ़ती तो आपस में ,दिलों का प्यार है बढ़ता
बुढ़ापे में ,पति पत्नी,बहुत नज़दीक आ जाते ,
          समर्पित ,एक दूजे पर ,बढ़ा करती है निर्भरता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मैं और तू

                 मैं और तू

तू है मेरे साथ सफर में ,मुश्किल आये ,फ़िक्र नहीं है 
मेरी जीवन कथा अधूरी ,जिसमे तेरा  जिक्र  नहीं है
तेरी बाहें  थाम, कोई भी दुर्गम रस्ता कट जाएगा
जीवनपथ में ,कहीं कोई भी ,संकट आये,हट जाएगा
हम तुम दोनों,एक सिक्के के,दो पहलू है,चित और पट है 
दोनों एक दूजे से बढ़ कर ,कोई नहीं किसी से घट  है
जब भी मुश्किल आयी ,तूने,दिया सहारा,मुझे संभाला
मेरी अंधियारी रातों में ,तू दीपक बन ,करे उजाला
हम तुम,तुम हम,संग है हरदम ,एक दूजे के बन कर साथी
तू है चंदन ,मै हूँ पानी,मैं  हूँ  दीया  , तू  है  बाती
तू है चाँद,तू ही है सूरज,आलोकित दिन रात कर रही
बन कर प्यार भरी बदली तू,खुशियों की बरसात कर रही
तू है सरिता ,संबंधों की ,सदभावों का ,तू  है निर्झर
तू पर्वत सी अडिग प्रेमिका ,भरा हुआ तू प्रेम सरोवर
तू तो है करुणा का सागर ,प्रेम नीर छलकाती गागर
सच्ची जीवनसाथी बन कर ,जिसने जीवन किया उजागर
ममता भरी हुई तू लोरी,जीवन का संगीत सुहाना
तू है प्यार भरी एक थपकी,सुख देती,बन कर सिरहाना
तू सेवा की परिभाषा है , तू जीवन की अभिलाषा है
बिन बोले सब कुछ कह देती,तू वो मौन ,मुखर भाषा है
तू क्या क्या है,मै  क्या बोलूं ,तू ही तो सबकुछ है मेरी
तूने ही आकर  चमकाई,जगमग जगमग रात अंधेरी
तू है एक महकती बगिया ,फूल खिल रहे जहां प्यार के  
तेरे साथ ,हरेक मौसम में ,झोंके बासंती  बहार  के
दिन दूना और रात चौगुना ,साथ उमर के प्यार बढ़ रहा
तेरा रूप निखरता हर दिन ,अनुभव का है रंग चढ़ रहा
एक दूजे के लिए बने हम,हममे ,तुममे अमर प्रेम है
जब तक हम दोनों संग संग है ,इस जीवन में कुशल क्षेम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन दर्शन

                 जीवन दर्शन

  ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है
अपनी गुजर चलाने घर में ,काफी चना चबेना है
  कोई मिलता 'हाई हेलो' ना ,राम राम कह देते है
उनका अभिवादन भी करते,राम नाम ले लेते है
यूं ही किसी की  तीन पांच में ,काहे बीच में पड़ना है
अच्छा मरना ,याने सु मरना ,हरी का नाम सुमरना है 
इस जीवन के भवसागर में,अपनी नैया खेना है
ना ऊधो का कुछ लेना है,ना माधो  का देना है
ऐसे करें आचरण हम जो ,सभी जनो को सुख दे दे
ऐसी बात न मुख से निकले ,जो कोई को दुःख दे दे
बहुत किया अपनों  हित,अब तो अपने हित भी कुछ कर लें
दीन  दुखी की सेवा करके ,पुण्यों से झोली भर लें
अब तो प्रभु के दरशन करने,आकुल,व्याकुल नैना है
ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है
फंस माया में ,किया नहीं कुछ,हमने इतने सालों में
कब तक उलझे यूं ही रहेंगे,जीवन के जंजालों में
जितने भी है रिश्ते नाते,सब मतलब की है यारी
आये खाली हाथ , जाएंगे, हाथ रहेगें  तब खाली
तन का पिंजरा तोड़ उड़ेगी ,एक दिन मन की मैना है
ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'