ना अखबार न म्यूजिक सिस्टम ,
टेबलेट ना ,ना कंप्यूटर
लालटेन और दीये जलते ,
ना बिजली की लाईट घर
ना चलते बिजली के पंखे ,
न ही रेडियो ,टेलीविजन
सोचा है क्या ,कभी आपने ,
कैसे कटता होगा जीवन
आवागमन बड़ा मुश्किल था ,
न थी रेल ,ना ही मोटर ,बस
या तो पैदल चलो अन्यथा ,
बैल गाड़ियां ,घोड़े या रथ
लोग महीनो पैदल चल कर ,
तीर्थ यात्रायें करते थे
गया गया सो गया ही गया ,
ऐसा लोग कहा करते थे
होते थे दस ,पंद्रह दिन के ,
शादी और ब्याह के फंक्शन
खाना पीना,कई चोंचले,
जिससे लगा रहे सबका मन
चौपालों पर हुक्का पानी ,
गप्पों से दिन गुजरा करता
किन्तु बाद में ,घर आने पर,
कैसे उनका वक़्त गुजरता
ना था अन्य मनोरंजन कुछ ,
तो बेचारे फिर क्या करते
पत्नी साथ मनोरंजन कर ,
थकते और सो जाया करते
शाम ढले ,होता अंधियारा ,
करे आदमी क्या बेचारा
इसीलिये हो जाते अक्सर ,
हर घर में बच्चे दस,बारा
बढ़ती उम्र ,नहीं बचता था ,
उनमे थोडा सा भी दम ख़म
तब पागल से ,हो जाते थे ,
सठियाना कहते जिसको हम
किन्तु आज के तो इस युग में,
जीवन पद्धिति ,बदल गयी है
बूढा हो ,चाहे जवान हो,
समय किसी के पास नहीं है
टी वी,इंटरनेट ,चेट में,
सारा समय व्यस्त रहते है
खोल फेस बुक या मोबाईल ,
ये बातें करते रहते है
अब तो वक़्त ,कटे चुटकी में ,
पर तब कैसी होगी हालत
नहीं कोई भी संसाधन थे ,
बूढ़े क्या करते होंगे तब
मदन मोहन बाहेती'घोटू'