Monday, August 17, 2020

समोसा

प्रकृति ने तीन मौसम बनाये है
एक ग्रीष्म ,एक सर्दी और एक बरसात
पर इंसान ने बनाई है एक ऐसी चीज ,
जो तीनो मौसम का अहसास ,
कराती हो एक साथ
गरम हो तो लगे सुहानी
सर्दी में बहुत मन को लुभानी
जिसे जब भी देखो ,मुंह में आ जाए पानी
जिसको गरम गरम पाने के लिए ,
लोग लाइन लगाए रहते है
ऐसे हर ऋतू में सर्वप्रिय और
सर्वश्रेष्ट व्यंजन को लोग समोसा कहते है
श्वेताम्बर में लिपटा हुआ
सारी दुनिया का स्वाद अपने में समेटा हुआ
जब सांसारिक अनुभूतियों के उबलते तेल में
भातृभाव के साथ ,सपरिवार
तला जाता हुआ जब नज़र आता है यार
तो उसकी सोंधी सोंधी सुगंध  
हमारे नथुनों में भरती है  जो आनंद
उसके आगे नंदन वन की महक
 भी फीकी पड़ जाती है
क्योंकि यह खुशबू ,न सिर्फ मन को सुहाती है ,
बल्कि मुंह में पानी भी भर लाती है
समोसे से सुन्दर रूप में एक बात ख़ास है
इसके तीनो कोनो में त्रिदेव का वास है
ऐसा लगता है ब्रह्मा ,विष्णु और महेश
का एक साथ हो रहा हो अभिषेक
इसका तीन कोने लिया हुआ आकार
करवा देता है तीनो लोको  का साक्षत्कार
जब  गरम गरम समोसा ,
खट्टी मीठी चटनी के साथ मुंह में जाता है
भूलोक आकाश और पाताल ,
तीनो लोको के सुख का आभास हो जाता है
बाहरी सतह का करारापन
और उसके अंदर आत्मा का चटपटापन
स्वर्गिक  सुख का अनुभव साकार कर देता है
आँखों में तृप्ति की चमक भर देता है
संगीत के सातों स्वर का संगम समोसे में होता है
सरगम स से शुरू होती है ,
बीच में म ,और अंत में सा होता है
वैसे ही समोसे के शुरू में स ,बीच में म
और अंत में होता है सा
याने कि स्वाद के संगीत की सरगम है समोसा
दुनिया के कोने कोने में,
 ये तिकोने सलोने समोसे पाए जाते है
और किसी न किसी रूप में ,
बड़े ही चाव से खाये जाते है
जैसे इंसान ,भगवान की सर्वोत्तम कृति है
वैसे ही समोसा ,इंसान की सर्वोत्तम कृति है
वो चीज जिसे देख कर मुंह में पानी भर जाए
जिसे पाने की लालसा जग जाए
जो बाहर से करारी और अंदर से स्वाद हो
जिसे खाकर मन को मिलता आल्हाद हो
वो या तो हो सकता है किसी सुंदरी का बोसा
या फिर ताज़ा गरम गरम समोसा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
दसवां रस

रसीली आँखे हमे लुभाती है
रसीले अधर हमे ललचाते है
हम सब रसिक हृदयवाले है ,
रूप रस में डूबे चले जाते है
नवरसों के जाल में हमने
जिंदगी को उलझा कर रखा है  
पर उस दसवें रस की बात नहीं करते ,
जिसे हम रोज करते चखा है
जिसके बिना जिंदगी फीकी है ,
नीरस है  बेमानी है
वो रस जो आँखों में चमक
 और मुंह में लाता पानी है
वो रस जिसमे मधुरता है ,मिठास है
वो रस जो  हमारी जिंदगी में ख़ास है
वो रस जिसके लिए हमेशा ,
मन में दीवानगी रहती बनी है
जिव्हा को तृप्त करता वह रस चासनी है
ये चासनी वाला रस ,सबको सुहाता है
बेसन की बूंदियों को मोतीचूर बनाता है
टेढ़ीमेढ़ी जलेबी ,तले हुए खमीर का
एक फीका सा जाल है
पर ये रस ,जब उसकी आत्मा में प्रवेश होता है ,
तो कर देता कमाल है
उसे रसभरी ,स्वादिष्ट ,लज़ीज
मनमोहिनी जलेबी बना देता है
हर कोई रीझ जाए ,इतना स्वाद ला देता है
चासनी रुपी यह रस गजब करता है
इमरती में अमृत भरता है
गुलाबी रंग के गोलगोल गुलाबजामुन ,
जब चासनी में अठखेलियां करते नज़र आते है
कितनो के ही मुंह में पानी भर लाते है
फटे हुए दूध की गोलियां, जब इसमें स्नान करती है
तो उनके रूप और स्वाद की गरिमा निखरती है
इस रस को पीकर इतनी इठलाती है
कि स्वाद भरा रसगुल्ला बन जाती है
चमचम कहो या राजभोग
चाहने लगते  है सब लोग
मैदे की तली हुई बाटी ,
जब इस रस में रम जाती है
शहंशाही अंदाज से बालूशाही कहलाती है
खोखले जालीदार घेवर
इस रस को पीकर ,दिखलाने लगते है तेवर
रसभीने मालपुवे ,कमाल के नज़र आते है
सबके मन को ललचाते है
शकर को पानी में गला ,
प्यार की ऊष्मा से बनाई गयी ये चाशनी
होती है स्वाद की धनी
खुशबू और रंग मिलालो शर्बत बन जाती है
गर्मी में गले को तर करती हुई ठंडक लाती है
दुनिया के सारे रस
इस रस के आगे है बेबस
क्योंकि जो तृप्ति और स्वाद इसमें आता है
अन्यत्र कही नहीं पाया जाता है
चासनी महान है
मिष्ठानो की जान है
हे रसीली ,मुंह में पानी लाती हुई सुंदरी ,
तुम्हे रसिक रसप्रेमी 'घोटू' का प्रणाम है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
नयी पीढ़ी का पुरानी पीढ़ी को सन्देश

ये दादा दादी भी अजीब चीज होते है
बार बार हमें ये अहसास दिलाते रहते है ,
कि हम उनके पोती या पोते है
जब हम छोटे थे ,उन्होंने हमारे वास्ते ,
ये किया था ,वो किया था दम  भरते है
बार बार हमें अपना अपनापन दिखा कर ,
भावात्मक रूप से 'एक्सप्लॉइट 'करते है
जब कभी मिलते है ,'सेंटीमेंटल 'हो जाते है
हमें छोटा सा बच्चा समझ कर प्यार जताते है
अरे भाई माना कि परिवार में सबसे बुजुर्ग आप है
आप हमारे बाप के भी बाप है
हमारे बचपन में आपने हमें संभाला था ,
खिलाया था ,हमारे नखरे उठाये थे
हमारे लिए आप घोड़े बने थे
और रहते घंटों गोदी में उठाये थे
ठीक है आपने बहुत कुछ किया ,
पर उस समय ये आपका फर्ज बनता था
जो आपने प्रेम से निभाया था
पर हमारी प्यारी प्यारी बचपन की
हरकतों का सुख भी तो आपने ही  उठाया था
ऐसा कोई बड़ा अहसान भी तो नहीं किया था ,
ये तो हर दादा दादी करते है और करते आ रहे है
आप ये क्यों भूल जाते है कि ये हम ही तो है ,
जो आपकी वंशबेल को आगे बढ़ा रहे है
अब हम बढे हो गए है ,समझदार हो गए है
और  हम अपने दिल की मानते है
हमे क्या करना है और क्या नहीं करना है
,ये हम अच्छी तरह जानते है
और आप चाहते है कि हम उसी रास्ते पर चले ,
जिस पर आप चलते आये उम्र भर है
तो ये तो हो नहीं सकता क्योंकि ,आपकी
और हमारी सोच में ,पीढ़ियों का अंतर् है
जमाना कहाँ  से कहाँ पंहुच गया है और
आप वही पुराने ढर्रे पर अटके हुए है
और हमारे आधुनिक विचारों पर ,
हमे कहते कि हम भटके हुए है
आप तो बड़े धार्मिक है और करते रहते है
भगवान कृष्ण की लीलाओं का गुणगान
बचपन में नन्द यशोदा ने उनपर कितना
प्यार लुटाया था ,अपना बेटा मान
पर बड़े होकर जब हो मथुरा गए ,
तो क्या रखा था नन्द यशोदा का ज़रा भी ध्यान
तो ये तो दुनिया की रीत है ,चक्र है ,
ऐसा ही चलता है और चलता ही रहेगा
आज की पीढ़ी का व्यवहार देख ,
पुरानी पीढ़ी का दिल जलता ही रहेगा
तो दादा दादी प्लीज ,जितनी भी जिंदगी बची है ,
अपने ढंग से आराम से बिताओ
हम पर अपने विचार मत थोंपो और
हमे 'सेंटिमेंटली एक्सप्लॉइट 'कर ,
अपना जिया मत जलाओ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '