---------- Forwarded message ---------
From: madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com>
Date: Wed, 10 Jun 2020 at 10:06 AM
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To: baheti.mm.t. <baheti.mm.tara1@blogger.com>, <baheti.mm.tara2@blogger.com>, <baheti.mm.tara4@blogger.com>, Ram Dhall <dhall.ram@gmail.com>, <kalampiyush@hotmail.com>, <kamal.hint@gmail.com>, navin singhi <navinsudha@gmail.com>, Rakesh Sinha <rakesh.sinha2407@gmail.com>, Ritu Baheti <ritubaheti@gmail.com>, Siddharth shanker jha <siddharthsjha@gmail.com>, Vanesa Míguez Agra <vmagra@gmail.com>, A.K. Khosla <ak19711@gmail.com>, Dr. Prakash Joshi <drjoship52@gmail.com>, Dwarka Baheti <dwarkabaheti1@gmail.com>, Jagdish Baheti <bahetijagdish1@gmail.com>, Sumit Bhartiya <skbH2000@gmail.com>, Vinita Lahoti <vinita.lahoti1@gmail.com>
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पीने की चाहत
१
ना जरूरत है मधुशाला की ,ना जरूरत है मधुबाला की ,
ना जरूरत है पैमानों की ,प्याले भी सारे रीते है
किसको फुरसत है ,मधुशाला जा भरे पियाला और पिये ,
हम वो बेसबरे बंदे है , सीधे बोतल से पीते है
ली दारू बोतल ठेके से ,गाडी में आये और खोली ,
आधी से ज्यादा बोतल तो ,गाडी में निपटा देते है
लेते संग में नमकीन नहीं ,ना गरम पकोड़े आवश्यक ,
हम तो मादक मदिरा पीकर ,मस्ती का जीवन जीते है
२
है इतने दर्द जमाने में ,कि उन्हें भूलने के खातिर ,
जब हो जाते है परेशान ,ये काम कर लिया करते है
पानी की जगह बीयर पीते ,शरबत की जगह पियें वाइन ,
जैसा महफ़िल का रुख देखा ,हम जाम भर लिया करते है
करने को कभी गलत ग़म को,या कभी मनाने को खुशियाँ ,
कोई न कोई बहाने से ,तर हलक़ कर लिया करते है
दुनिया के दिए हुये जख्मो ,को सीने से बेहतर पीना ,
ये दारू नहीं ,दवाई है ,पी जिसे जी लिया करते है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
१
ना जरूरत है मधुशाला की ,ना जरूरत है मधुबाला की ,
ना जरूरत है पैमानों की ,प्याले भी सारे रीते है
किसको फुरसत है ,मधुशाला जा भरे पियाला और पिये ,
हम वो बेसबरे बंदे है , सीधे बोतल से पीते है
ली दारू बोतल ठेके से ,गाडी में आये और खोली ,
आधी से ज्यादा बोतल तो ,गाडी में निपटा देते है
लेते संग में नमकीन नहीं ,ना गरम पकोड़े आवश्यक ,
हम तो मादक मदिरा पीकर ,मस्ती का जीवन जीते है
२
है इतने दर्द जमाने में ,कि उन्हें भूलने के खातिर ,
जब हो जाते है परेशान ,ये काम कर लिया करते है
पानी की जगह बीयर पीते ,शरबत की जगह पियें वाइन ,
जैसा महफ़िल का रुख देखा ,हम जाम भर लिया करते है
करने को कभी गलत ग़म को,या कभी मनाने को खुशियाँ ,
कोई न कोई बहाने से ,तर हलक़ कर लिया करते है
दुनिया के दिए हुये जख्मो ,को सीने से बेहतर पीना ,
ये दारू नहीं ,दवाई है ,पी जिसे जी लिया करते है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '