Tuesday, February 28, 2012

सपन तू मत देख रे मन

सपन तू मत देख रे  मन
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सपन तू मत देख रे मन, अगर टूटे ,पीर होगी
तुझे बस वो ही मिलेगा, जो तेरी तकदीर  होगी
नींद में कर बंद आँखें,ख्वाब कितने ही सजा  ले
कल्पनाओं के महल में,हो ख़ुशी,जी भर ,मज़ा ले
पर खुलेगी आँख,होगा ,हकीकत से सामना  जब
आस के विपरीत ही ,अक्सर मिलेगा,हर जना तब
चुभेगी तेरे ह्रदय को,बात हर शमशीर  होगी
सपन तू मत  देख रे मन,अगर टूटे ,पीर   होगी
ना किसी से मोह रख  तू,ना किसी की चाह रखनी
आस तू मत कर किसी से,आस तो है  महा ठगिनी
अपेक्षा जब टूटती है,  तोड़ देती  है ह्रदय को
चक्र ये सब भाग्य का  है,कौन रोकेगा समय को
यूं न मिलने आये कोई,मरोगे तो भीड़  होगी
सपन तू मत देख रे मन,अगर टूटे,पीर होगी
सर्दियों की धूप मनहर,ग्रीष्म  में बदले  तपन में
नहीं दुःख में,ख़ुशी में भी,अश्रु बहते है नयन में
नहीं चिर सुख,नहीं चिर दुःख,जिंदगी के इस सफ़र में
फूल है तो कई कांटे ,भी भरे है ,इस डगर में
रात है ,तो कल सुबह भी,अँधेरे  को चीर होगी
सपन तू मत देख रे मन,अगर टूटे,पीर होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'