Thursday, May 7, 2020

खिसकती हवा

हवा अब हमारी ,खिसकने लगी है
कल तक थी प्यारी
जो बिल्ली हमारी
हमें म्याऊं कह कर ,बिदकने लगी है
जिगर जान हम पर
जो करती निछावर
पिलाती थी शीतल
मोहब्बत भरा जल ,
वो अब हम पे कीचड़ ,छिड़कने लगी है
थी जो मेरी हमदम
हो चाहे ख़ुशी गम
कभी  जिसके दिल में ,
बसा करते  थे हम
वो ढाती सितम है ,झिड़कने लगी है
क्यों हमसे खफा है
हुई बेवफ़ा  है
वो नज़रें चुराती ,
दिखे हर दफ़ा है
दिखाते वफ़ा तो ,बिगड़ने लगी है
हवा अब हमारी ,खिसकने लगी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापा ऐसा आया है

बुढ़ापा ऐसा आया है
बहुत हमको तडफाया है
क्या बतलायें ,कैसे घुट घुट ,
समय बिताया है

ना तो नयन रहे हिरणी से,
 चचल, छिप चश्मों  में
ना ही वो दीवानापन है ,
प्यार भरी  कसमों में
ना वो बाल जाल है जिसमे ,
मन उलझाया है
बुढ़ापा ऐसा आया है

पड़ा कसा तन ,ढीला ढाला ,
बची न वो लुनाई
वो मतवाली चाल ना रही
ना मादक अंगड़ाई
नहीं गुलाबी डोरे आँख में ,
जाल सा छाया है
बुढ़ापा ऐसा आया है

बार बार आ याद सताते ,
बीते दिवस रंगीले
अब तन ,मन का साथ न देता ,
हम तुम दोनों ढीले
यौवन का रस चुरा उम्र ने ,
कहर ये ढाया है
बुढ़ापा ऐसा आया है

अब तो सिमटा प्यार रह गया ,
चुंबन ,सहलाने में
हमसे ज्यादा ,कुछ ना होता ,
मन को बहलाने में
झुर्री वाले हाथ दबा कर ,
काम चलाया है
बुढ़ापा ऐसा आया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
ऐसा कोई दिन ना बीता

चालिस दिन  तालाबंदी में ,ऐसा कोई दिन ना बीता
जिस दिन मैंने कोरोना पर ,लिखी नहीं हो कोई कविता

किया शुरू में उसका वंदन ,मख्खन मारा ,तुष्ट रहेगा
यही सोच कि तारीफ़ सुनकर ,ये दुनिया को कष्ट न देगा
लेकिन उस पर असर हुआ ना ,और गर्व से फैल गया वो
चमचागिरी ,चापलूसी के ,अस्त्र चलाये ,झेल गया वो
उस रावण ने साधु रूप धर,करली हरण ,चैन की सीता
ऐसा कोई दिन न बीता ,लिखी नहीं हो कोई कविता

फिर सोचा ये कुटिल धूर्त है ,नहीं प्यार से ये समझेगा
जूते मार इसे तुम पीटो ,शायद ये तब ही  सुधरेगा  
ये लातों का भूत न माने ,सीधी  सादी सच्ची  बातें
इसको गाली दो और मारो ,जमकर घूंसे और तमाचे
तीखे तेवर देख भगेगा ,उलटे पैरो ,हो भयभीता
ऐसा कोई दिन ना बीता ,लिखी नहीं हो कोई कविता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अब जाओ भाग कोरोना

कर दिया त्रसित है तुमने ,दुनिया का कोना कोना
तुम सुई नोकसे छोटे ,अति सूक्ष्म 'वाइरस' हो ना
तुमने औकात दिखा दी ,मानव है कितना बौना
सब जान गये है तुमको ,अब जाओ भाग कोरोना

तुमने कितने महिनो से ,लोगों को बिठा रखा घर
मजदूर दिहाड़ी के बिन ,अब भटक रहे हैं दर दर
बंद प्रतिष्ठान है सारे , रौनक बाज़ार की गायब
बंद पड़ी रेल ,बस,मेट्रो ,जाने चल पाएगी कब
आदत में आया हमारी ,अब परेशानियां ढ़ोना
सब जान गए हैं  तुमको ,अब जाओ भाग कोरोना

हम सब सामजिक प्राणी,आपस में हिलमिल हँसते
अब  भूले  मिलना जुलना , दूरी  से  करें  नमस्ते
हाथों में सेनेटाइजर ,और मुख पर बांधे पट्टी
दुनिया  तुमसे आतंकित ,गुम  सबको सिट्टी पिट्टी  
सब पीड़ित किसके आगे ,जा रोयें अपना रोना
सब जान गए है तुमको ,अब जाओ भाग कोरोना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '