Sunday, February 16, 2014

माँ और मासी

       माँ और मासी

मेरी माँ और मेरी मासी
एक की उम्र बानवे,एक की अठ्ठासी
दोनों दूर दूर ,अलग और अकेली
एक दुसरे को फोन करती है डेली
उनकी बातचीत कुछ होती है ऐसी
और तुम कैसी हो और मैं कैसी
तबियत कैसी है ,ठीक है ना हालचाल
तेरे बहू बेटे ,रखते है ना ख्याल
मोह माया के जाल में फंसी  है
सबकी चिंताएं ,मन में बसी है  
इधर उधर की बातें करने के बाद
रोज होता है उनका संवाद
क्या करें बहन,मन नहीं लगता है
बड़ी ही मुश्किल से वक़्त कटता है
दिन भर क्या करें ,बैठे ठाले
इतनी उम्र हो गयी है,अब तो राम उठाले
क्या करें,मौत ही नहीं आती,एक दिन है मरना
पल भर का भरोसा नहीं ,पर कहती है,
अच्छा कल बात करना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वेलेंटाइन डे और वेलेट

      वेलेंटाइन डे और वेलेट

पीज़ा के संग पेप्सी ,प्रियतमा संग प्यार
ऐसे हमने मनाया ,प्रीत भरा   त्योंहार
प्रीत भरा त्योंहार ,सीट कोने की लेकर
करी शरारत खूब ,प्रेम से देखी  पिक्चर
देकर लाल गुलाब,चुरा  होठों की लाली
वेलेंटाइन डे पर वेलेट हो गया  खाली

घोटू

बसन्ती ऋतू आ गयी

       बसन्ती ऋतू आ गयी

सर्दियों के सितम से हालत ये थे,
                 तन बदन था खुश्क,गायब थी लुनाई
ढके रहना ,लबादों से लदे  दिन भर ,
                 रात पड़ते दुबक जाना ,ले   रजाई
शाल ,कार्डिगन,इनर और जाने क्या क्या,
                  हुस्न की दौलत छिपी थी,लगा ताले
बसन्ती ऋतू आयी ,ताले खुल गए सब ,
                   खुली गंगा बह रही है,हम नहा ले
आम्र तरु के बौर ,फल बनने लगे है,
                   गेंहूं की बाली में दाने भर रहे है
लहलहाती स्वर्णवर्णी सरस सरसों ,
                    रसिक भँवरे,मधुर गुंजन कर रहे है
 पल्ल्वित नव पल्लवों से तरु तरुण है ,
                     कूक कोयल की बहुत मन को लुभाती
तन सिहरता ,मन मचलता ,चूमती जब,
                      बसन्ती  ,मादक बयारें ,मदमदाती
इस तरह अंगड़ाइयां ऋतू ले रही है ,
                       हमें भी अंगड़ाई  आने लग गयी है
फाग ने आ ,आग ऐसी लगा दी ,
                        पिय मिलन की आस मन में जग गयी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'                     

इश्क़ का इजहार करलें

         इश्क़ का इजहार करलें

झगड़ते तो रोज ही रहते है हम तुम,
                   आज वेलेंटाइन दिन है,प्यार करलें
नयी पीढ़ी की तरह गुलाब देकर,
                   हम भी अपने इश्क़ का इजहार करले
 एक दूजे की कमी हरदम निकाली ,
                     छोटी छोटी बातों पर लड़ते रहे  हम
एक दूजे की कभी तारीफ़ ना की ,
                       एक दूजे से हमेशा  रही   अनबन
     आज आओ एक दूजे को सराहे
     एक दूजे संग चलें हम मिला बाहें 
 प्यार से हम एक दूजे को निहारें,
                        संग  मिल कर सुहाना संसार करले
नयी पीढ़ी की तरह गुलाब देकर ,
                          हम भी अपने इश्क़ का इजहार कर लें  
जिंदगी के झंझटों में व्यस्त रह कर ,
                              दुनियादारी में फंसे दिन रात रहते
चितायें  और परेशानी में उलझ कर ,
                               मिल न पाये,भले ही हम साथ रहते
       आओ हम तुम आज सारे गम भुलादे
        मिलें खुल कर  ,प्यार की  गंगा बहा दे
कुछ बहक कर,कुछ चहक कर,कुछ महक कर ,
                           सूखते इस चमन को गुलजार  करलें
नयी पीढ़ी की तरह गुलाब देकर,
                              हम भी अपने इश्क़ का इजहार करलें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'