Monday, September 1, 2014

            बिजली और बीबी

बिजली से होती नहीं कम है हमारी बीबियाँ,
            कड़कती है बिजलियों सी ,होती जब नाराज़ है
बिना उनके दो घड़ी भी गुजारा चलता नहीं,
             होता उनका   इस तरह से आदमी मोहताज है
कंवारी जब होती है तो होती है A .C. करेंट,
            लगता झटका ,अगर छूते ,उनके खुल्ले तार से
शादी करके रहती तो बिजली है,पर A .C . नहीं ,
           बन जाया करती है D .C . चिपकाती है  प्यार से  
कभी स्लिम सी ट्यूब लाईट ,कभी बन कर बल्ब ये,
              अंधियारे जीवन में लाती ,चमचमाती  रोशनी
काम सब करती किचन के ,धोती है कपडे सभी,
               घर को रखती साफ़,सुन्दर,बन कुशल सी गृहणी
सर्दियों में देती ऊष्मा ,हीटरों की तरह वो,
                 गर्मियों में ऐ सी बन कर देती है ठंडक   हमें
दो मिनिट भी चली जाती ,कर देती बेचैन है ,
                  काम उसके बिन न चलता ,जाती पड़ आदत हमें
बन के टी वी दिखाती है ,फैमिली के सीरियल  ,
                    गुनगुनाती रेडियो सी,वो मधुर   संगीत है
और मोबाइल हमारा ,चार्ज करती प्रेम से,
                    बिजली की जैसी ही होती,औरतों की प्रीत है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                सब्जियों की गपशप

शिकायत भिन्डी ने की ,आवारा है 'बैंगन' मुआ ,
                   हरी ताज़ी देख मुझको ,रोज़ ही है छेड़ता
हाँ में हाँ उसकी मिलाई एक 'शिमला मिर्च'ने ,
               बोली बेपेंदी का है,कल हुआ था मुझ पर फ़िदा
बोला मुझसे लगती हूँ  मैं फूली फूली सेक्सी ,
                मैं ज़रा सी मुस्कराई,मेरे पीछे पड़  गया  
है बड़ा ही फ्लर्ट टाइप का ये बन्दा इस कदर,
            'लाल कॅप्सिकम'दिखी,उसकी तरफ वो बढ़ गया
बीन्स की पतली  फली ने मारा ताना रहने दे ,
              तू भी तो शौक़ीन ,नज़रें हर तरफ है  मारती
कल ही मैंने देखा तुझको आलू के आगोश में,
              कौनसी तू सती है ,जिसकी उतारें आरती
हरे धनिये ने कहा करते है हम भी इश्क़ पर,
               ऊपर ही ऊपर से सबको , सहला लेते रोज है
 मगर ये आलू भी सचमुच है गजब का इश्क़िया ,
              मिल के हरएक सब्जी के संग,ये  उड़ाता मौज है
सब्जियों में चल रही थी इस तरह की गूफ्तगू ,
              एक टमाटर नज़र आया ,लाल , प्यारा ,रसभरा
सब की सब ही बावली सी  उसके पीछे पड़ गयी ,
              और पकने लगा सबके साथ   उसका  माज़रा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'