आशा की डोर
आसमां को देखते थे रोज इस उम्मीद से,
घुमड़ कर बादल घिरें,और छमाछम बरसात हो
ताकते थे अपनी खिड़की से हम छत पर आपकी,
दरस पायें आपका और आपसे कुछ बात हो
बादलों ने तो हमारी बात ससरी मान ली,
और वो दिल खोल बरसे, बरसता है प्यार ज्यूं
हम तरसते ही रहे पर आपके दीदार को,
आपने पूरी नहीं की,मगर दिल की आरजू
हो गयी निहाल धरती ,प्यार की बौछार से,
सौंधी सौंधी महक से वो गम गमाने लग गयी
और हम मायूस से है,मिलन के सपने लिये,
बेरुखी ये आपकी दिल को जलाने लग गयी
मोर नाचे पंख फैला,बीज बिकसे खेत में,
बादलों की बरस से मन सभी का हर्षित रहा
भीगने को बारिशों में तुम भी छत पर आओगी,
ये ही सपने सजा छत को देखता मै नित रहा
और मुझको आज भी है,आस और विश्वास ये,
तमन्नायें मेरे दिल की एक दिन रंग लायेगी
बारिशों में आई ना तो सर्दियों में आओगी,
कुनकुनी सी धुप जब छत पर तुम्हारे छायेगी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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Sunday, July 8, 2012
बदलते मौसम
बदलते मौसम
जब ज्यादा गर्मी पड़ती है
तो कितनी मुश्किल बढती है
बार बार बिजली जाती है
पानी की दिक्कत आती है
और जब आती बारिश ज्यादा
वो भी हमको नहीं सुहाता
सीलन,गीले कपडे, कीचड
और जाने कितनी ही गड़बड़
और जब पड़ती ज्यादा सर्दी
तो मौसम लगता बेदर्दी
तन मन की ठिठुरन बढ़ जाती
गरम धूप है हमें सुहाती
जब भी मौसम कोई बदलता
थोड़े दिन तो अच्छा लगता
लेकिन फिर लगता चुभने
क्यों होता सोचा क्या तुमने?
क्योंकि लालसा जिसकी मन में
जब वो आता है जीवन में
थोड़े दिन तो मन को भाता
लेकिन फिर है जी उकताता
ये तो मानव का स्वभाव है
कुछ दिन रहता बड़ा चाव है
किन्तु चाहता फिर परिवर्तन
स्वाद चाहिये नूतन,नूतन
प्रकृति काम करे है अपना
ठिठुरन कभी बरसना,तपना
वैसे ही निज काम करें हम
और मौसम से नहीं डरें हम
मौसम तो है आते ,जाते
मज़ा सभी का लो मुस्काते
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जब ज्यादा गर्मी पड़ती है
तो कितनी मुश्किल बढती है
बार बार बिजली जाती है
पानी की दिक्कत आती है
और जब आती बारिश ज्यादा
वो भी हमको नहीं सुहाता
सीलन,गीले कपडे, कीचड
और जाने कितनी ही गड़बड़
और जब पड़ती ज्यादा सर्दी
तो मौसम लगता बेदर्दी
तन मन की ठिठुरन बढ़ जाती
गरम धूप है हमें सुहाती
जब भी मौसम कोई बदलता
थोड़े दिन तो अच्छा लगता
लेकिन फिर लगता चुभने
क्यों होता सोचा क्या तुमने?
क्योंकि लालसा जिसकी मन में
जब वो आता है जीवन में
थोड़े दिन तो मन को भाता
लेकिन फिर है जी उकताता
ये तो मानव का स्वभाव है
कुछ दिन रहता बड़ा चाव है
किन्तु चाहता फिर परिवर्तन
स्वाद चाहिये नूतन,नूतन
प्रकृति काम करे है अपना
ठिठुरन कभी बरसना,तपना
वैसे ही निज काम करें हम
और मौसम से नहीं डरें हम
मौसम तो है आते ,जाते
मज़ा सभी का लो मुस्काते
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
स्थानं प्रधानम न बलं प्रधानम
स्थानं प्रधानम न बलं प्रधानम
एक बार भगवान विष्णु,
अपने वहां गरुड़ पर बैठ कर,
शिवजी से मिलने,
पहुंचे पर्वत कैलाश पर
शिवजी के गले में पड़ा सर्प,
गरुड़ को देख कर,गर्व से फुंकार मारता रहा
तो मन मसोस कर गरुड़ ने कहा
स्थानं प्रधानम न बलं प्रधानम
तेरा मेरा बैर हर कोई जानता है
पर इस समय तू शिवजी के गले में है,
इसलिए फुफकार मार रहा है,
ये तेरे बल की नहीं,स्थान की प्रधानता है
आदमी की पोजीशन,
उसके व्यवहार में,स्पष्ट दिखलाती है
सुहागरात को दुल्हन बनी गधी भी इतराती है
गरीब से गरीब आदमी भी,
जब घोड़ी चढ़ता है,दूल्हा राजा बन जाता है
कुर्सी पर बैठा,छोटा सा जज भी,
बड़े बड़े लोगों को जेल भिजवाता है
अदना सा ट्रेफिक हवालदार,सड़क के चोराहे पर
बड़े बड़े लोगों की,गाड़ियाँ ,
रोक दिया करता है,हाथ के इशारे पर
बाल जब सर पर उगते है ,
तो कुंतल बन लहराते,सवाँरे जाते है
वो ही बाल,जब गालों पर उगने का दुस्साहस करते है,
रोज रोज शेविंग कर,काट दिए जाते है
बड़े बड़े अफसर,जब होते कुर्सी पर,
तो उनके आगे ,दफ्तर भर डरता है
पर घर पर तो उसकी,बॉस उसकी बीबी है,
उसी के इशारों पर ,नाच किया करता है
रौब दिखलाने में,आदमी के रुतबे की,
बड़ी सहायता होती है
हमेशा देखा है,बल की प्रधानता नहीं,
आदमी की पोजीशन की प्रधानता होती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
एक बार भगवान विष्णु,
अपने वहां गरुड़ पर बैठ कर,
शिवजी से मिलने,
पहुंचे पर्वत कैलाश पर
शिवजी के गले में पड़ा सर्प,
गरुड़ को देख कर,गर्व से फुंकार मारता रहा
तो मन मसोस कर गरुड़ ने कहा
स्थानं प्रधानम न बलं प्रधानम
तेरा मेरा बैर हर कोई जानता है
पर इस समय तू शिवजी के गले में है,
इसलिए फुफकार मार रहा है,
ये तेरे बल की नहीं,स्थान की प्रधानता है
आदमी की पोजीशन,
उसके व्यवहार में,स्पष्ट दिखलाती है
सुहागरात को दुल्हन बनी गधी भी इतराती है
गरीब से गरीब आदमी भी,
जब घोड़ी चढ़ता है,दूल्हा राजा बन जाता है
कुर्सी पर बैठा,छोटा सा जज भी,
बड़े बड़े लोगों को जेल भिजवाता है
अदना सा ट्रेफिक हवालदार,सड़क के चोराहे पर
बड़े बड़े लोगों की,गाड़ियाँ ,
रोक दिया करता है,हाथ के इशारे पर
बाल जब सर पर उगते है ,
तो कुंतल बन लहराते,सवाँरे जाते है
वो ही बाल,जब गालों पर उगने का दुस्साहस करते है,
रोज रोज शेविंग कर,काट दिए जाते है
बड़े बड़े अफसर,जब होते कुर्सी पर,
तो उनके आगे ,दफ्तर भर डरता है
पर घर पर तो उसकी,बॉस उसकी बीबी है,
उसी के इशारों पर ,नाच किया करता है
रौब दिखलाने में,आदमी के रुतबे की,
बड़ी सहायता होती है
हमेशा देखा है,बल की प्रधानता नहीं,
आदमी की पोजीशन की प्रधानता होती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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