Tuesday, February 18, 2020

मजबूरी

कभी कभी मन चिंतित पर मुस्काना पड़ता है
सूनेपन में डर  लगता ,तो गाना  पड़ता  है
कर मनुहार खिलाये जब वो अपने हाथों से ,
भूख नहीं होती है फिर भी खाना पड़ता है
भले पड़ोसन ,बहुत सुंदरी ,तुम्हे सुहाती है ,
घरवाली से लेकिन काम चलाना पड़ता है
कितनी चीजें होती जो हमको ललचाती है ,
खाली जेब,मगर मन की समझाना पड़ता है
यूं तो हम झगड़ा करते है ,रौब दिखाते है ,
दुश्मन भारी हो, पीछे हट जाना पड़ता है  
घटघट में भगवान बसे है फिर भी भक्तों को
प्रभु के दर्शन करने मंदिर जाना पड़ता है
रोज रोज झगड़ा होता है ,पति से ना पटती ,
पर व्रत करके ,करवा चौथ मनाना पड़ता है
नई कार साइलेंट देख कर ,कहा फटफटी ने ,
क्या रईस को मुंह ताला लगवाना पड़ता है
'घोटू 'देख हुस्न को मन में कुछ कुछ होता है ,
लेकिन मन मसोस कर ही रह जाना पड़ता है ,

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जल बिच मीन पियासी रे
जल बिच मीन पियासी रे, मोहे आये हांसी रे
पति दफ्तर में साहब ,इज्जत अच्छी खासी रे
घर में पत्नी ,उन्हें समझती ,एक चपरासी  रे
खाये परांठे खुद, पति को दे ,रोटी बासी रे
घर की मुर्गी ,दाल बराबर ,बात जरा सी रे
पत्नी का व्यवहार देख कर ,छाई उदासी रे
करे बुराई सबसे ,मुख पर ,मीठी मासी  रे
वोट न दे पत्नी भी ,हम है ,वो प्रत्याशी रे
 ऐसा हम पर,आया बुढ़ापा ,सत्यानाशी रे
सांप छुछन्दर गति ,मुसीबत अच्छी खासी रे
जल बिच मीन पियासी रे ,मोहे आये हांसी रे

घोटू 
आगमन -बुढ़ापे का

सुनो बुढ़ापा जब आता है
बार बार है नींद उचटती ,बेचैनी भी बढ़ जाती है
अपने सुनते नहीं जरा, ये बात हृदय में गड़ जाती है
आती काया में जर्जरता ,बढ़ती औरों पर निर्भरता
सहमा सहमा डरता डरता ,रोज आदमी जीता ,मरता
वाणी में आता विकार है ,सारा ओज  बिखर जाता है
सुनो बुढ़ापा जब आता है
थोड़ा चलते ,सांस फूलती ,और होती महसूस थकन है
जाती फिसल जवानी तन से ,और भटकता रहता मन है
काम नहीं कुछ ,पड़े निठल्ले ,कुछ करते तो थक जाते है
पार उमर जब करती सत्तर ,तब हम थोड़े पक जाते है
सब रंग ढंग बदल जाते है ,अंग अंग कुम्हला जाता है
सुनो बुढ़ापा जब आता है

घोटू 
जीवन
 
यही कामना ,सबके मन में , ज्यादा  जिये
सुखमय जीवन बीते ,यूं ही ,बिना कुछ किये
,
जो आया है ,वो जाएगा ,सच  शाश्वत है  
सबकी ही साँसों की संख्या  ,पूर्व नियत है
फिर भी हम कोशिश करते है कहाँ कहाँ से
 लम्बी उमर हमे मिल जाय  यहाँ वहां से
कैसे भी अमृत मिल जाए ,उसको पियें
यही कामना ,सबके मन में ,ज्यादा जियें

 जितनी लम्बी उमर ,बुढ़ापा उतना लम्बा
तन जर्जर ,इच्छा जीने की ,यही अचम्भा
जितने भी दिन जियें ,चैन से ,हंसी ख़ुशी से
प्रेमभाव और मेलजोल हम रखें सभी से
स्वस्थ रहें, निरोग,प्रेम से ,खाएं, पियें
यही कामना सबके मन में ,ज्यादा जियें

घोटू