Tuesday, November 8, 2011

आखरी मौका


  आखरी मौका
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मेरी शादी के अवसर पर,
जब मै घोड़ी पर बैठ रहा था,
मेरे शादीशुदा मित्र ने कहा था,
'देखले,कितना शानदार मौका है
एसा मौका बार बार नहीं मिलता'
उस समय तो मै समझ नहीं पाया,
पर अब समझ में आया है  उसका मतलब
दोस्त ने कहा था'घोड़ी भी है,मौका  भी है,
जीवन भर की गुलामी से बचना है ,तो,
एडी दबा,घोड़ी दोड़ा,और भागले अब '
भागने का आखरी  मौका  था
पर मुझे रास्ता न दिखे,इसलिए लोगों ने,
मेरा चेहरा,सेहरे से ढक रखा था
 और मै भाग ना जाऊं ,मुझे रोकने के लिए,
बारातियों ने मुझे घेर कर रखा था
और तो और ,आपको मै क्या बतलाऊं
जब मै शादी के मंडप में पहुंचा,
मेरे जूते छिपा दिए गए,
कहीं मै भाग ना जाऊं
और विवाह  की बेदी के सामने बैठा कर,
दुल्हन के हाथ से मेरा हाथ बाँधा गया
जैसे गुनाहगार को हवलदार  पकड़ता है,
दुल्हन ने मेरा हाथ पकड़ा,
और मेरा भागने का ये मौका भी  हाथ से गया
और हाथ को बांधे बांधे ,
दुल्हन को आगे कर उसके पीछे पीछे,
मैंने अग्नि के चार फेरे भी काटे
और मुझे बहला कर ले लिए सात वादे
तब कहीं अगले तीन फेरों के लिए,
मुझे निकलने दिया आगे
और फिर चांदी के सिक्के से
मैंने उसकी मांग भरी
और एक वो दिन था और एक आज का दिन,
उसकी सभी मांगों को पूरी कर
वो आगे और उसके पीछे पीछे,
काट रहा हूँ मै चक्कर
काश घोड़ी पर बैठते वक़्त ही,
अपने दोस्त की बात समझ में आ जाती
तो आज ये नौबत नहीं आती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

ढीठ है हम

ढीठ है हम
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करो तुम रथ यात्राये,और भूख हड़ताल,अनशन
मौन,मुंह पर पट्टियाँ या,मोम बत्ती ले प्रदर्शन
बढ़ रही मंहगाई कोई,इस तरह ना रोक सकता
 जब तलक है पास सत्ता ,कमाएंगे मालमत्ता
घटेगी मंहगाई तब ही,जब घटाएंगे  उसे हम
नहीं सुधरे थे कभी हम,नहीं सुधरेंगे कभी हम
                        ढीठ  है हम
कर रहे उपवास अन्ना,लाओ लोकायुक्त बिल तुम
मिटे भ्रष्टाचार जिससे,साफ़ सुथरा हो प्रशासन
पास जब हो जाएगा  बिल,जाएगी घट कई मुश्किल
कहीं भ्रष्टाचार घटता,पास होने से कोई बिल
भ्रष्टता तब ही मिटेगी,जब मिटायेंगे उसे हम
नहीं सुधरे थे कभी हम,नहीं सुधरेंगे कभी हम
                          ढीठ है हम
देश तब संपन्न होगा,जब विदेशों में जमा धन
देश को मिल जाए वापस,आन्दोलन कर रहे तुम
भला ये भी बात है क्या ,किस तरह स्वीकार करलें
कई वर्षों की कमाई,इस तरह बेकार करलें
चुनावों में खर्च करने,जुटाएंगे कहाँ से धन
नहीं सुधरे थे कभी और नहीं सुधरेंगे कभी हम
                            ढीठ  है हम
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हमें भी लगता बुरा है


हमें भी लगता बुरा है

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हमारी हर बात पर ही,
तुम्हे लग जाता बुरा है
मौन है हम,मगर समझो,
हमें भी लगता बुरा है
बहुत है दिल को दुखाती,
तुम्हारी रुसवाईयां  है
ह्रदय में नश्तर चुभोती,
आजकल तनहाइयाँ है
और अपने में मगन तुम,
उड़ रहे ऊंचे गगन में
अरे,हम कुछ है तुम्हारे,
ख्याल आया कभी मन में
अभी भी मन में हमारे,
प्यार का सागर उमड़ता
और तुम भूले पिघलना ,
इस कदर आ गयी जड़ता
तुम्हे करके  के याद अक्सर ,
उभरते है प्यार के स्वर
मगर हर वाणी हमारी,
लौट आती,प्रतिध्वनि कर
तुम वही हो,हम वही है,
बीच में क्यों दूरियां है
बताओ ना क्या हुआ है,
कौनसी मजबूरियां है
बहुत मिलते हम पियाले,
बहुत मिलते हम निवाले
ना मिलेंगे मगर हम से,
चाहने वाले, निराले
कभी हम संग संग चले थे,
साथ हँसते और गाते
डूब यादों के भंवर में,
डुबकियाँ है हम लगाते
साथ हम थे तो ख़ुशी थी,
जिंदगी थी मुस्कराती
बिना सहलाये हमारे,
नींद भी थी नहीं आती
हमारा स्पर्श तुमको,
लगा लगने खुरदुरा है
मौन है हम,मगर समझो,
हमें भी लगता बुरा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मुझे तडफाया सभी ने

मुझे तडफाया सभी ने
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उम्र की इस बेबसी में
मुझे तडफाया सभी ने
और मुझ पर बीतती क्या,
ये नहीं सोचा किसी ने
तान कर ताने दिए और,
दिल दुखाया दिल्लगी में
कभी थे दावत उड़ाते,
आज है फांकाकशी में
उम्र ऐसे ही गयी कट,
कभी दुःख में या ख़ुशी में
मुझे दीवाना समझ कर,
यूं ही ठुकराया सभी ने
नहीं देखा पीर कितनी,
छुपी है मेरी हंसी में
नेह बांटो,खोल कर दिल,
रंजिशे क्यों आपसी में
आओ फिर से दिल मिलाएं,
क्या रखा तानाकशी में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ग़ज़ल

ग़ज़ल
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जो कम बालों वाले या गंजे होते है
अक्सर उनकी जेबों में कंघे होते है
अपने घर में वो ताले लटका कर रखते,
जो धनहीन और भूखे नंगे होते है
प्रेम भाव,मिल जुल रहना ,सब धरम सिखाते,
नाम धरम का  ले फिर क्यों दंगे  होते है
जो कुर्सी पर बैठे ,वो ही बतलायेंगे,
कुर्सी के खातिर कितने पंगे होते है
हो दबंग कितने ही कोई,मर जाने पर,
दीवारों पर ,बन तस्वीर ,टंगे होते है
पांच साल तक ,शासन करते,पर चुनाव में,
वोट मांगते,नेता,भिखमंगे  होते है
इनकी सूरत मत देखो,फितरत ही देखो,
होते सभी सियार,मगर रंगे होते है
'घोटू' ज्यादा मत सोचो,मन में दुःख होगा,
वो खुश रहते,जिनके मन चंगे होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

ममता तुम कितनी निर्मम हो

ममता,तुम कितनी निर्मम हो
गाहे बगाहे,जब जी चाहे,
हमें डराती रहती तुम हो
ममता तुम कितनी निर्मम हो
तुम्हे पता,कितनी मुश्किल,पर
घेर लिया है सब ने मिल कर
आन्दोलन करते है अन्ना
पत्रकार है,सब चोकन्ना
भ्रष्टाचार और मंहगाई
काबू होती,नहीं दिखाई
रोज फूटते ,कांड नये है
साथी कई तिहाड़ गये है
मंहगाई हद लांघ गयी है
जनता भी अब जाग गयी है
फेल हो रहे,सभी दाव है
और अब तो सर पर चुनाव है
डगमग है कानून व्यवस्था
मै बेचारा,क्या कर सकता?
हालत बड़ी बुरी हम सबकी
ऊपर  से तुम्हारी धमकी
कहती ,गठबंधन छोडोगी
बुरे वक़्त में ,संग छोडोगी
अटल साथ भी यही किया था
बार बार तंग बहुत किया था
क्या है भेद तुम्हारे मन का
धर्म न जानो,गठबंधन का
शायद इसीलिए क्वांरी हो
पर पड़ती सब पर भारी हो
देखो एसा,कभी न करना
अब संग जीना है संग मरना
कोई किसी को ,दगा न देगा
जो चाहो,पैकेज  मिलेगा
मौका देख ,दिखाती दम हो
ममता तुम कितनी निर्मम हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'