अरे ओ औलाद वालों!
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अरे ओ औलाद वालों,
बुजुर्गों को मत प्रताड़ो
आएगा तुम पर बुढ़ापा,
जरा इतना तो विचारो
जिन्होंने अपना सभी कुछ,तुम्हारे खातिर लुटाया
तुम्हारा जीवन संवारा,रहे भूखे,खुद न खाया
तुम्हारी हर एक पीड़ा पर हुआ था दर्द जिनको
आज कर उनकी उपेक्षा,दे रहे क्यों पीड़ उनको
बसे तुम जिनके ह्रदय में,
उन्हें मत घर से निकालो
अरे ओ औलाद वालों !
समय का ये चक्र ऐसा,घूम कर आता वहीँ है
जो करोगे बड़ो के संग,आप संग होना वही है
सूर्य के ही ताप से जल,वाष्प बन,बादल बना है
ढक रहा है सूर्य को ही,गर्व से इतना तना है
बरस कर फिर जल बनोगे,
गर्व को अपने संहारो
अरे ओ औलाद वालों!
बाल मन कोमल न जाने,क्या गलत है,क्या सही है
देखता जो बड़े करते,बाद में करता वही है
इस तरह संस्कार पोषित कर रहे तुम बालमन के
बीज खुद ही बो रहे,अपने बुढ़ापे की घुटन के
क्या गलत है,क्या सही है,
जरा अपना मन खंगालो
अरे ओ औलाद वालों!
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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अरे ओ औलाद वालों,
बुजुर्गों को मत प्रताड़ो
आएगा तुम पर बुढ़ापा,
जरा इतना तो विचारो
जिन्होंने अपना सभी कुछ,तुम्हारे खातिर लुटाया
तुम्हारा जीवन संवारा,रहे भूखे,खुद न खाया
तुम्हारी हर एक पीड़ा पर हुआ था दर्द जिनको
आज कर उनकी उपेक्षा,दे रहे क्यों पीड़ उनको
बसे तुम जिनके ह्रदय में,
उन्हें मत घर से निकालो
अरे ओ औलाद वालों !
समय का ये चक्र ऐसा,घूम कर आता वहीँ है
जो करोगे बड़ो के संग,आप संग होना वही है
सूर्य के ही ताप से जल,वाष्प बन,बादल बना है
ढक रहा है सूर्य को ही,गर्व से इतना तना है
बरस कर फिर जल बनोगे,
गर्व को अपने संहारो
अरे ओ औलाद वालों!
बाल मन कोमल न जाने,क्या गलत है,क्या सही है
देखता जो बड़े करते,बाद में करता वही है
इस तरह संस्कार पोषित कर रहे तुम बालमन के
बीज खुद ही बो रहे,अपने बुढ़ापे की घुटन के
क्या गलत है,क्या सही है,
जरा अपना मन खंगालो
अरे ओ औलाद वालों!
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'