Monday, March 28, 2011

ऐसी खूँटी एक चाहिये








ऐसी खूँटी एक चाहिये
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इतने दुःख,इतनी विपदायें
परेशनियाँ,दायें, बायें
सोवूं चैन से,इन्हें टांग कर,
ऐसी खूँटी एक चाहिये
कुछ ऐसी तकदीर मिली है
अपनों से ही पीर मिली है
लेप लगा कर ,दर्द मिटे सब
ऐसी बूंटी एक चाहिये
दह ,जलन,कटुता,बिमारी
हार ,जीत, चिंताएं सारी
जिसको पीकर बिसर जाए सब,
ऐसी घूंटी एक चाहिये
टूटे दिल को जो सहलाये
जीवन में आनंद जगाये
छुई मुई सी ,लाल ,मखमली
वीर बहूटी एक चाहिये





वणिक पुत्र

           
मैंने तुम्हारी महक को,
प्यार की ऊष्मा देकर
अधरों के वाष्प यन्त्र से,
इत्र बना कर,
दिल की शीशी में,एकत्रित कर लिया है,
ता कि उम्र भर खुशबू ले सकूँ
मैंने तुम्हारा यौवन रस,
मधुमख्खी कि तरह,
बूँद बूँद रसपान कर,
दिल के एक कोने में
मधुकोष बना कर,संचित कर लिया है,
ता कि जीवन भर ,रसपान कर सकूँ
मैंने तुम्हारे अंगूरी अधरों से,
तुम्हारी मादकता का आसवन कर
एकत्रित कि गयी मदिरा को,
पर्वतों के शिखरों में,छुपा कर भर दिया है
ताकि उम्र भर पी सकूँ
क्योंकि संचय करना,मेरा रक्त गुण है
मै एक वणिक पुत्र हूँ