Friday, September 30, 2011

रात मै कैसे काटूं

रात मै कैसे काटूं
--------------------
तुम बिस्तर लेटे ही थे,नींद तुम्हे आ गयी
कितनी ही बातें करनी थी,कही और अनकही
रात मै कैसे काटूं
दर्द मै किससे बाटूँ
क्या बतलाऊं ,क्या क्या होता ,दिन भर मेरे संग
सास ससुर की सेवा और फिर बच्चे करते तंग
ननदें रहती नाक सिकोड़े,फरमाइश देवर की
कपडे,बर्तन,झाड़ू पोंछा,और सफाई घर की
तुम आते दफ्तर से थक कर,व्यस्त ,पस्त बेचारे
खाना खाते और सो जाते,झट से पाँव पसारे
दो मीठी बातें करने का,समय तुम्हे है नहीं
कितनी ही बातें करनी है,कही और अनकही
रात मै कैसे काटूं
दर्द मै किससे बाटूँ
शादी अपनी नयी नयी थी,वो क्या दिन होते थे
एक दूजे की बाहों में हम,जगते थे,सोते थे
बातें इतनी होती थी की जिनका अंत नहीं था
वैवाहिक जीवन का तो असली आनंद वही था
अब मन कुछ मांगे भी तो तुम,मुश्किल से जग पाते
बस अपना कर्तव्य निभा कर,फिर झट से सो जाते
 सभी कामनायें दब कर के,मन में ही रह गयी
कितनी ही बातें करनी है,कही और अनकही
रात मै कैसे काटूं
दर्द मै किससे बाटूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

महाभारत-आठ दोहे

महाभारत-आठ दोहे
------------------------

मै हूँ प्यासा युधिष्ठिर,तुम जल भरा तलाब
यक्ष प्रश्न का तुम्हारे,दूंगा सभी जबाब

तुम हो मछली घूमती,रहा तुम्हे मै ताक
प्रेम तीर एसा चले,कि बिंध जाए  आँख

मुझ पर रीझी उर्वशी,मांगे प्रेम प्रसाद
श्राप मिले ,पर ना रमण,करूं और के साथ

कुरुक्षेत्र कि तरह है,घर,गृहस्थ,मैदान
तुम कहती सब से लड़ो,ये गीता का ज्ञान

इस विराट के महल में,सबके अपने कृत्य
अर्जुन जैसे योद्धा,सिखलाते हैं नृत्य

चक्रव्यूह तुमने रचा,पहन आवरण  सात
सातों वाधाएं हटे, अभिमन्यु के हाथ

राह दिखाओ पति को,यदि पति है जन्मांध
गांधारी सी मत रहो,आँख पट्टियां  बाँध

प्रेम गली सकड़ी नहीं,कृष्ण कहे मुसकाय
आठ लें कि सड़क है,आठ रानियाँ आय

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नवरात्रि

नवरात्रि
----------
दूध  जैसी धवल शीतल हो छिटकती चांदनी
पवन मादक,गुनगुनाये,प्रीत की मधु रागिनी
तारिकायें,गुनगुनायें,ऋतू मधुर हो प्यार की
रात हो मधुचंद्रिका सी,मिलन के त्योंहार की
गगन से ले धरा तक हो,पुष्प की बरसात सी
सेज जैसे सज रही,पहले मिलन के रात की
मदभरी सी हो निराली,रात वह अभिसार की
महक हो वातावरण में,प्यार की बस प्यार की
लाज के,संकोच के,हो आवरण सारे  खुले
प्यास युग युग की बुझे,जब बहकते तन मन मिले
तुम शरद के चाँद की  आभा  लिये सुखदात्री हो
संग तुम्हारे बितायी,रात्रि हर, नवरात्रि हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, September 27, 2011

हे अग्नि देवता!

हे अग्नि देवता!
-------------------
हे अग्नि देवता!
शारीर के पंचतत्वों  में,
तुम विराजमान हो,
तुम्ही से जीवन है
तुम्हारी ही उर्जा से,
पकता और पचता भोजन है
तुम्हारा स्पर्श पाते ही,
रसासिक्त दीपक
 ज्योतिर्मय हो जाते है,
दीपवाली छा जाती है
और,दूसरी ओर,
लकड़ी और उपलों का ढेर,
तुमको छूकर कर,
जल जाता है,
और होली मन जाती है
होली हो या दिवाली,
सब तुम्हारी ही पूजा करते है
पर तुम्हारी बुरी नज़र से डरते है
इसीलिए,  मिलन की रात,
दीपक बुझा देते है
तुम्हारी एक चिंगारी ,
लकड़ी को कोयला,
और कोयले को राख बना देती है
पानी को भाप बना देती है
तुम्हारा सानिध्य,सूरत नहीं,
सीरत भी बदल देता है
तो फिर अचरज कैसा है
कि तुम्हारे आसपास,
लगाकर फेरे सात,
आदमी इतना बदल जाता है
कि माँ बाप को भूल जाता है
बस पत्नी के गुण गाता है
इस काया की नियति,
तुम्ही को अंतिम समर्पण है
हे अग्नि देवता! तुम्हे नमन है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


 

कैसे जली स्वर्ण की लंका?

कैसे जली स्वर्ण की लंका?
------------------------------
मन में आती है ये शंका
कैसे जली स्वर्ण की लंका
क्योंकि ऐसे धूं धूं करके,
सोना कभी नहीं जल सकता
मनन किया तो कारण पाया
की सोने की लंका को,
हनुमानजी ने कैसे जलाया
लंका के भवनों के शिखरों पर,
चपड़ी से चिपकी हुई,
सोने की परत थी
उसे जलाने के लिए,
बस एक चिंगारी की जरुरत थी
हनुमानजी ने ,सीता  को ढूंढते समय,
देखली थी,शिखरों पर,
उखड़ी स्वर्ण परत के नीचे,
चपड़ी काली काली
और जैसे ही उनकी पूंछ पर आग लगी,
उन्होंने छत पर कूद कूद कर,
सोने की लंका जला डाली

मदन मोहन बहेती'घोटू'

आओ हम तुम जम कर जीमें

आओ हम तुम जम कर जीमें
-----------------------------------
आओ हम तुम जम कर जीमें
तुम भी खाओ,हम भी खायें,बैठ एक पंक्ति में
आओ हम तुम जम कर जीमें
जनता के पैसे से चलता है ये सब भंडारा
रोज रोज ही भोग लगाता ,अपना कुनबा सारा
पत्तल पुरस,बैठ पंगत में,खायें,जो हो जी में
आओ हम तुम जम कर जीमें
जब तक बैठे हैं कुर्सी पर,जम कर मौज  उड़ायें
देशी घी की बनी मिठाई, जा विदेश में   खायें
अपने घर को जम कर भर लें,थोडा धीमे धीमे
आओ हम तुम जम कर जीमें
लेकिन बस उतना ही खायें,हो आसान पचाना
वर्ना जा तिहार का खाना,हमें पड़ेगा  खाना
जाने कल फिर से हो,ना हो,पाँचों उंगली घी में
आओ हम तुम जम कर जीमें

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Saturday, September 24, 2011

मेरी परम प्रिया,जलेबी

मेरी परम प्रिया-जलेबी
---------------------------
पीत वर्णा,
वक्र बदना
कमनीय काया धारिणी,
सुंदरी!
जैसे,अग्नि तपित स्निग्ध कुंड में,
स्नानोपरांत,
रस कुंड से रसरंजित हो,
उतर आई हो,
कोई महकती हुई परी
तुम्हे देख कर
मेरे अधर,
लालायित हो जाते हैं,
करने को तुम्हारा चुम्बन
तुम्हारे सामीप्य से,
एक तृष्णा सी जग जाती है,
और तुम्हे पाने को मचल जाता है मन
तुम्हारी मिठास
देती है एक अवर्णनीय ,
तृप्ति का आभास
स्वर्णिम आभा लिए,
तुम्हारी अष्टावक्र काया
मेरे मन को,
जितना आनंद से है भिगोती
उतना सुख तुम शायद ही दे पाती,
यदि तुम कनक छड़ी सी सीधी होती
मै मधुमेह पीड़ित,
मोहित रहता हूँ,
देख कर तुम्हारी मधुरता
सब कुछ बिसरा कर,
तुम्हारे रसपान का सुख,
भोगने से वंचित नहीं रह सकता
क्योंकि तुम मनभावन,हो ही ऐसी
मेरी परम प्रिया,जलेबी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
-----------------------------------
हमारी स्वतंत्र भारत माता को,
सीता की तरह,
भ्रष्ट राजनीतिज्ञ रावणों ने,
कैद कर  रखा रखा है,
हे हनुमान!
उनकी सोने की लंका को जलाओ,
और सीता को छुड़ाओ
मंहगाई सुरसा की तरह,
अपना मुंह फाड़ती ही  जा रही है,
गरीब जनता,बत्तीस रूपये प्रति दिन में,
कैसे लघु रूप धारण कर,बाहर निकले,
हे हनुमान!इतना बतलादो
आम जनता,राम की सेना सी,
समुद्र के इस पार खड़ी है,
और दूसरी ओर,
 सत्ताधारियों की सोने की लंका है ,
इस दूरी को पाटने के लिए,
एक सेतु का निर्माण जरूरी है,
पर एक दुसरे पर पत्थर फेंके जा रहे है,
हे हनुमान!राम का नाम लिखवा कर,
इन पत्थरों को तैरा दो
देश की व्यवस्थाएं
राम और लक्ष्मण जैसी,
भ्रष्टाचार के नागपाश में बंधी है,
हे बजरंगबली! अपने अन्ना जैसे,
गरुड़ मित्र को बुलवा कर,
नागपाश कटवा दो
गरीबी और भुखमरी के ,
ब्रह्मास्त्र की मार ने,
आम आदमी को,
लक्ष्मण  जैसा मूर्छित कर रखा है,
हे पवन पुत्र!
स्वीजरलेंड में जमा,संजीवनी बूंटी लाओ ,
और सबको पुनर्जीवन दिलवा  दो
सत्तारूढ़ दशानन का अहंकार,
दिन ब दिन बढ़ता  ही जा रहा है,
हे अन्जनिनंदन!
अब समय आ गया है,
रावन का दहन करा दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, September 22, 2011

आदमी को लचीला रहना चाहिए

आदमी को लचीला रहना चाहिए
--------------------------------------
मैंने देखा,तूफानों में,
कुछ वृक्ष जो झुक जाते है
,बने रहते है
और कुछ तने,जो तने रहते है
जड़ से उखड जाते है
आदमी को परिस्तिथियों के,
हिसाब से चलना चाहिये
सख्त नहीं,लचीला रहना चाहिये
अब भगवान् को ही देखलो
परिस्तिथियों के अनुसार ,
कितने रूपों में अवतार लिये
जब प्रलय आया,और सृष्टि को,
बीज रूप से बचाना था,
मछली बन गये
मंदराचल का भार उठाना था
कछुआ बन गये
पृथ्वी को पानी से बाहर निकलना था,
वराह बन गये
उन्होंने बड़े बड़े काम ,छोटे बन कर,
कैसे किये जा सकते है,सिखलाया है
छोटे से वामन का अवतार लेकर,
तीन कदमो में,
तीन लोकों को,नाप कर बतलाया है
और अर्जुन के सारथी बन कर,
अपना विराट स्वरूप भी दिखलाया है
राम बन कर राजा के यहाँ जन्मे
और बारह वर्षों तक भटकते रहे वन में
और कृष्ण बने तो बचपन में ग्वालों के साथ,
चराई थी गायें
और बड़े होकर ,द्वारकाधीश भी कहलाये
 जरासंध को सत्रह बार युद्ध में हराये
और परिस्तिथियों के हिसाब से ,
अठारवीं बार,युद्ध का मैदान छोड़ भागे,
और रणछोड़ कहलाये
हिरनकश्यप जैसी बुराइयों को मारने के लिये,
क्या क्या नहीं किया
आधे नर और आधे सिंह  याने,
नरसिंह रूप में अवतार लिया
ये सब कथाएं,
हमें ये ही सिखाती है
आदमी को परिस्तिथियों के अनुसार चलना चाहिये,
जरूरत के मुताबिक़ ढलना चाहिये
सफलता पानी हो,तो लचीला रहना चाहिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जब मोबाईल ना होता था

जब मोबाईल ना होता था
------------------------------
वो दिन भी क्या दिन होते थे,जब माबाइल ना होता था
एक काला सा चोगा अक्सर,हर घर की शोभा  होता था
टिन टिन टिन घंटी के स्वर से,घर भर में आती थी रौनक
खुद का एक  फोन   होने से    ,ऊंचा होता था   स्टेटस
दस छेदों वाले डायल को,घुमा घुमा नाख़ून घिसते थे
जोर जोर से हल्लो हल्लो,चिल्ला कर भी ना थकते थे
फोन हमारा,मगर पडोसी,लाभ उठाते उसका जी भर
 अपने परिचितों को देते,फोन हमारे वाला नंबर
उनका फोन आता तो घर के ,बच्चे जाते,उन्हें बुलाते
वो आते,बातें भी करते,चायपान भी करके  जाते
हसीं पड़ोसन,मुस्काती सी,कभी फोन करने आती थी
और लिपस्टिक ,लगे होठ के,सुन्दर निशां,छोड़ जाती थी
डाकघरों में,दूरभाष को,लम्बी सी लाइन लगती थी
ओर्डीनरी,अर्जेंट,लाईटनिंग,कालों की घंटी बजती थी
तीन मिनिट का काल रेट था,बातें ना लम्बी खिंचती थी
फोन डेड होता तो घर में,ख़ामोशी सी आ बसती  थी
लाइनमेन नाम प्राणी को, देना कुछ चंदा होता था
तो जो फोन डेड होता था, जल्दी से ज़िंदा होता  था
रात ,काल के ,रेट आधे थे,इसीलिए वो कम सोता था
वो दिन भी क्या दिन होते थे, जब मोबाईल ना  होता था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, September 21, 2011

बीबी को खुश रख्खो

बीबी को खुश रख्खो
-------------------------
जीवन में सुखी रहना है,
तो बीबी को खुश रख्खो
और जीवन का अमृत चख्खो
अगर वो थोड़ी काली है,
तो भी उसके रूप की तारीफ़ करते रहो
उसे चाँद का टुकड़ा कहो
पत्नी के प्यार पाने का ये सबसे अच्छा तरीका है
उसे क्या पता कि तुम उसे चाँद के ,
उस भाग का टुकड़ा कह रहे हो,
जहां काला धब्बा है
अगर वो खाना बनाती है
और रोटियां जल जाती है
तुम उससे बोलो कि देखो,
तुम्हारा रूप देख कर के,
रोटियां भी जल भुन जाती है
और यदि वो बहुत ज्यादा बक बक करती हो
तो कहो कि तुम्हारे प्यारे प्यारे होंठ,
जब पास पास रहते है तो,
तुम कितनी प्यारी लगती हो
भले छरहरी काय वाली महिलाओं को देख,
आपका मन फिसलता है
और आपकी पत्नी थोड़ी मोटी है
तो कहो भरा भरा मांसल बदन ,
कितना प्यारा लगता है
तुम कितनी सुढोल हो,कितनी सुहाती हो
भले ही सुढोल से आपका मतलब ,
'सु'याने कि अच्छा 'ढोल'
और सुहाती से,
'सु' याने कि अच्छा 'हाथी' हो
अपने मन कि भावनाएं भी खोलो
पर कुछ एसा मीठा  मीठा बोलो
कि विवाहित जीवन में अमृत घोलो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, September 20, 2011

हम जो भी है,जैसे भी है,तुमसे कई गुना अच्छे है

हम जो भी है,जैसे भी है,तुमसे कई गुना अच्छे है
क्योंकि मन में मैल नहीं है,और हमारे दिल सच्चे है

ना नेता से झूठें वादे

ना ही कलुषित कोई इरादे
नहीं किसी से लेना देना,
हम है बन्दे,सीधे सादे
नहीं बरगलाते है कोई को,नहीं दिए कोई गच्चे है
हम जो भी है,जैसे भी है,तुमसे कई गुना अच्छे है
कितनी भले मुसीबत आये
हम ना रोये,हम मुस्काये
कितने अपनों ने दिल तोडा,
कितने अपने हुए पराये
हम ने माफ़ कर दिया,सोचा,नादां है,छोटे बच्चे है
हम जो भी है ,जैसे भी है,तुमसे कई गुना अच्छे है
जो मन कहता,वो करते है
ऊपरवाले से  डरते  है
ना जाने शतरंजी चालें,
सीधे रस्ते पर चलते है
हाँ ये सच है,कि इस युग की,दुनियादारी में कच्चे है
हम जो भी है,जैसे भी है,तुमसे कई गुना अच्छे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, September 19, 2011

आठों प्रहर तुम्ही छायी हो

आठों प्रहर तुम्ही छायी हो
-----------------------------
मेरे मन के नीलाम्बर में,तुम आती हो,छा जाती हो
धवल धवल से बादल जैसी,स्मृति पटल पर मंडराती हो
भोर अरुण की आभा से  जब,रूप चमकता प्यारा,स्वर्णिम
मन्त्र मुग्ध सा तुम्हे देखता,हो जाता आनंद विभोर मन
दोपहरी की प्रखर किरण से,जगमग प्रखर रूप की आभा
सांध्य रश्मियाँ तुम्हे सजाती,जैसे सोने संग सुहागा
जैसे जैसे जब दिन ढलता,तुम तारों संग  रास  रचाती
खिलता रूप चाँद सा प्यारा,रजनीगंधा सी महकाती
कभी लता सी लिपटी मन से,कभी फूल सी मुस्काई हो
मेरे मन में,इस जीवन में,आठों प्रहर  तुम्ही छायी हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आजकल मेरी आँखों पर बाईफोकल चश्मा है

जवानी में,
हसीनो को,
कमसिनो को
पड़ोसिनो को,
ताकते, झांकते,
मेरी दूर की नज़र कमजोर हो गयी,
और मेरी आँखों पर,
दूर की नज़र का चश्मा चढ़ गया
बुढ़ापे तक,
अपनी बीबी को,
रंगीन टी वी को
कुछ करीबी को
पास से देखते देखते ,
मेरी पास की नज़र कमजोर हो गयी,
और मेरी आँखों पर,
पास की नज़र का चश्मा चढ़ गया
जवानी के शौक,
और बुढ़ापे की आदतें,
ये उम्र का करिश्मा है
आजकल  मेरी आँखों पर ,
बाईफोकल  चश्मा है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

.....और लगता भूकंप आगया

.....और लगता भूकंप आगया
   ----------------------------------
अन्नाजी के आन्दोलन से
या नेताओं के अनशन से
सोनिया के वापस आने से
या अमर के जेल जाने से
                 धरती सहमी
पेट्रोल के दाम बढ़ने से
मंहगाई के ऊपर चढ़ने से
बढती हुई ब्याज की दर से
गेस के दाम बढ़ने की खबर से
                  धरती हिली
आतंकवादियों के विस्फोट से
पडोसी के मन की खोट से
घोटाले और भ्रष्टाचार से
हमारे नेताओं के  व्यवहार से
                  धरती  दहली
मंत्रियों की बढती हुई वेल्थ से
जनता की बिगडती हुई हेल्थ से
सड़कों की खस्ता हालत से
रोज रोज बढती हुई मुसीबत से
                 धरती कांपी
........ और लगता भूकंप आ गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, September 18, 2011

अब शानू ,आशीष हो गया

पापा पापा ,मम्मी,दीदी,करता कभी नहीं थकता था
सीधा सादा,आज्ञाकारी,भोला सा प्यारा लगता था
लेकिन वोदीन बचपन के था,पर अब तो वो बड़ा हो गया
इतना बड़ा हो गया है कि,सबके ऊपर खड़ा हो गया
मेहनत और लगन से सच्ची,मंजिल पायी,सफल हुआ है
दिन दूनी और रात चोगुनी,करे तरक्की,यही दुआ है
पर लगता है धीरे धीरे ,उसमे कुछ बदलाव आ गया
इतना सब कुछ पा जाने पर,एक अहम् का भाव आ गया
इतना ज्यादा उलझ गया है,पूरा करने निज सपनो को
व्यस्त हो गया,समय नहीं है,लगा भूलने है अपनों को
भूले से भी याद न करता,अब वो बड़ा रईस  हो गया
   अब शानू ,आशीष हो गया

तुमने मेरी सुबह बना दी

तुमने मेरी सुबह बना दी
-----------------------------

तारे सारे डूब गए थे,दूर हो रहा अँधियारा था

नभ में उषा की लाली थी,सूरज उगने ही वाला था
शबनम की बूंदों के मोती ,हरित  तृणों पर चमक रहे थे
और पुष्प रजनी गंधा के,अब भी थोड़े महक रहे थे
पंछी अभी नीड़ में ही थे,अपना आलस भगा रहे थे
पुरवैया के झोंके थपकी,दे पुष्पों को जगा रहे थे
कब कलियाँ चटके और विकसे,रसिक भ्रमर थे इन्तजार में
मै भी अलसाया लेटा था, खोया सपनों के खुमार में
तुमने अपनी आँखें खोली,करवट बदली,ली अंगडाई
लतिका सी मुझसे आ लिपटी,मेरी बाहों में अलसाई
सूरज उगा,प्रखर हो चमका,तन मन में वो आग लगा दी
सुबह सुबह मुझ को सहला कर,तुमने मेरी सुबह बना दी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, September 14, 2011

या मै जानू या तुम जानो

या मै जानू या तुम जानो
-----------------------------
हम दोनों का प्यार पुराना,
परिणिति  परिणय में बदली
पंख लगा कर उड़ते थे हम,
मै भी पगला,तुम भी पगली
और फिर जीवन चक्र चला तो,
सर पर आयी जिम्मेदारी
घर से दफ्तर,दफ्तर से घर,
भाग दौड़ ,मेहनत,लाचारी
थका हुआ आता दफ्तर से,
मुझे  प्यार से तुम सहलाती
प्यार भरा सुन्दर चेहरा लख,
मेरी सब थकान मिट जाती
नए जोश और नयी फुर्ती से,
भरने लगता मन उडान है
जब है मेरा प्यार उमड़ता,
चढ़ जाती फिर से थकान है
लगती कभी एश्वर्या तुम,
लगती कभी सायरा बानो
कैसा है ये खेल प्यार का,
या मै जानू या तुम जानो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

श्वेत किरण और सात रंग

श्वेत किरण और सात रंग
------------------------------
विधाता ने जब सृष्टि का सृजन किया,
और अपने प्रकाश पुंज की किरणों से,
मानव का निर्माण किया
तब हर मानव,प्रकाश की किरणों सा,
चमकीला,निष्कलंक और श्वेत था
 कालांतर में कुछ त्रिपार्श्व कांचो(prism ) का,
उद्भव हुआ,
जिसने प्रकाश की श्वेत किरणों को,
कई रंगों में बाँट डाला,
ये अलग अलग रंग,
अलग अलग धर्मो की पहचान बन गए
और दुनियां में एक दुसरे के बीच,
दीवारें खड़ी हो गयी
ये जगती,एक चक्र सी है,
जिसमे साफ साफ सात रंग दिखाई देते है,
अब प्रतीक्षा है,
एक ऐसे अवतार की,
जो इस चक्र को,
इतनी तेज गति से घुमा दे कि,
सातों रंग अपनी विविधता छोड़,
फिर से सिर्फ श्वेत ही दिखने लगें

मदन मोहन बहेती'घोटू' 


मैया,बहुत दिनन में आयी

(सोनिया जी के वेदेश से वापस आने पर)
              पद
            ------
मैया,बहुत दिनन में आयी
दस जनपथ सूना सूना था,समय  कटा दुःख दायी
भ्रष्टाचार हटे  जनता  ने,ऐसी मुहिम  चलायी
चिदंबरम की चल चित भयी,गयी कपिल कुटिलाई
अन्ना जी के आन्दोलन ने,सबको धूल चटायी
सभी विपक्षी एक हो गये,संसद चल ना पायी
सांसद के खरीद मुद्दे पर,अमर  जेल भिजवायी
अब चुनाव  नज़दीक आत है,जन जागृति है छायी
अब तो तुम्ही सहारा  मैया,देत न राह दिखायी
कोई लोलीपोप चुसा दो,जनता को भरमायी
सत्ता सुख भोगें राहुल को,हम पी एम बनायी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, September 13, 2011

ओरेंज काउंटी-मेरा नया घर

ओरेंज काउंटी-मेरा नया घर
---------------------------------
नारंगी अट्टालिकाओं को छूकर,
उगता हुआ नारंगी सूरज
विशाल तरणताल में,
जल क्रीडा करते हुए स्त्री पुरुष
गेंद को बास्केट में डाल कर,
अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का,
अभ्यास करते हुए युवक
राजनेतिक पार्टियों की तरह,
गेंद को एक दूसरे के पाले में डाल कर,
टेनिस खेलते हुए निवासी
फंवारों में उछल उछल कर,
नाचते हुए प्रमुदित बच्चे
अपने नन्हे मुन्नों को,
बल उपवन में खेलाती मातायें
धार्मिक वातावरण की खुशबू से,
महकता हुआ मंदिर
झर झर झरते हुए झरने
 हरा भरा सुरम्य वातावरण
 प्रभु ने आसमान से जब इस ,
अद्भुत आवासीय क्षेत्र को देखा तो,
प्रसन्न होकर,प्रसाद स्वरुप,
अपना एक प्रासाद ,ऊपर से गिरा दिया
जो यहाँ के निवासियों का,
मनोरंजन स्थल (क्लब) बन गया
मै,अपने विशाल बंगले की तनहाइयों को छोड़,
इस हंसती खेलती बस्ती में बस कर,
बहुत खुश हूँ
क्योंकि 'ओरेंज काउंटी'
एक सम्पूर्ण आवासीय परिसर है,
जहाँ खुशियाँ बसती है,
और जिंदगी हंसती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, September 11, 2011

विकास की आंधी

हमारा छोटा सा घर था,
और उस पर एक छोटी सी छत थी
जहाँ हम सर्दी में ,कुनकुनी धूप का आनंद उठाते थे
 तेल की मालिश कर ,
नंगे बदन को,
सूरज की गर्मी में तपाते थे
और गर्मी की चांदनी रातों में,
सफ़ेद चादरों पर
जब शीतल बयार चलती थी,
तो तन में सिहरन सी होती थी
हमारी हर रात मधुचंद्रिका सी होती थी
पर विकास की आंधी में,
हमारे घरों के आसपास ,
उग आई है,बहुमंजिली इमारते
और बदलने पड़  गयी है,हमें अपनी आदतें
बड़ी मुश्किलें वेसी खो गयी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

,

दृष्टिकोण

दृष्टिकोण
-----------
एक बड़े बंगले में,रहते थे,
हम दो प्राणी अकेले
जैसे एक बड़े से गेरेज में पड़ी हों,
दो निरीह सी सायकिलें
तनहाइयों के साये में,
सन्नाटे हमें काटते थे
और उस बंगले में,जब डर लगता था,
हम एक दुसरे की बगलें झांकते थे
बगल के बंगले वाले,
सब रहते थे,अपने अपने में व्यस्त
कभी कभी दिखने पर,
एक खोखली सी मुस्कराहट के,
हो गये थे अभ्यस्त
बाहर सड़क पर,
आते जाते वाहनों का शोर होता था
घर के आगे की बगिया में,
हरे भरे पौधे और खिले फूलों को देख,
मन आनंद विभोर होता था
और अब हम,एक बहुमंजिली ईमारत की,
ऊपरी मंजिल पर आकर बस गए  है
और इतनी ऊँचाई पाने के बाद,
बड़े बड़े वृक्ष भी,
बौने दिखने लग गए है
सूरज  भी नीचे से उगता दिखता है
और चाँद पास से ,ज्यादा चमकीला दिखता है
नीचे सड़कों पर,रेंगते वाहनों का शोर,
सहम सहम कर हम तक आता है
और जब मन घबराता है
तो गेलरी से ,नीचे झांक लेते है
ऊपर से सब अदने नज़र आते है,
हम खुद  को इतना ऊंचा आंक लेते है
आस पास के पड़ोसियों से,
सोसायटी के फंक्शनों में,या लिफ्ट में,
हाय,हल्लो कह कर मुस्कराते है
लाफिंग क्लब में,साथ साथ हँसते हँसते,
कुछ दोस्त बन जाते है
आस पास के छोट घरों की छतों पर,
झाँकने का अधिकार हमें मिल गया है
हम आत्म गर्वित है,
हमारा दृष्टिकोण ही बदल गया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

(यह कविता मेरे नए घर इंदिरापुरम में
शिफ्ट होने के बाद लिखी गयी है)

Thursday, September 8, 2011

देहली पोलिस उचाव

देहली पोलिस उचाव
-----------------------
हम सशक्त है,हम सक्षम है
हम रात को सोते हुए,
नर नारियों और संतों पर,
रात के दो बजे भी,
लाठियां भांज सकते है
हम,सत्याग्रह पर जा रहे ,
गांधीवादी अन्नाजी को,
सुबह सबह उनके घर से,
गिरफ्तार कर,
तिहार जेल में  पहुंचा सकते है
क्योकि ये सरकार की,
भ्रष्टाचार और काले धन की ,
नीतियों के खिलाफ,
विद्रोह कर,
जनता को भड़का कर,
देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए,
खतरा बन सकते है
फिर हमें,
हमारे हजारों लाल बत्ती वाले,
नेताओं की भी सुरक्षा देखनी होती है
हम इन्ही व्यवस्थाओं में,
इतने व्यस्त रहतें है,
कि आतंकवादी गतिविधियों पर,
नज़र रखने के लिए,
हमारे पास समय बहुत कम है
इसीलिए देहली हाईकोर्ट जेसी ,
संवेदनशील जगहों पर भी,
विस्फोट हो जाते बम है
कहने को हम मे बहुत दम है
हम सशक्त है,हम सक्षम है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, September 7, 2011

चंचला लक्ष्मी

चंचला लक्ष्मी
------------------
आदमी की आसुरिक प्रवर्तियाँ,
और देविक  वृत्तियाँ,
जब साथ साथ मिल कर,
दुनियादारी की मथनी से,
रत्नाकर का मंथन करती हैं,
तब प्रकट होती है लक्ष्मी
लक्ष्मी,जो न देवताओं की हुई,
ना दानवों की,
इन सभी जवान चाहने वालों को छोड़,
उसने पुरुष पुरातन को चुना,
क्योंकि वो जानती  है
'ओल्ड इज गोल्ड'
और गोल्ड लक्ष्मी का ही एक रूप है
रम्भा और वारुणी,(शराब)
लक्ष्मी की सहोदर बहने है,
जिनका उपयोग,
कई समझदार लोग,
लक्ष्मी को पाने के लिए करते है
और कुछ दबंग नेता,
लक्ष्मी को पाने के लिए,
उसके भाई शंख की तरह,
अपनी बुलंद आवाज मे
भाषण बाजी करते हुए, बजते है
और लक्ष्मी के आने पर,
उसके दूसरे भाई एरावत की तरह,
मद मस्त हाथी से झूमते हुए चलते है
यह  जानते हुए भी,
की जाने कब लक्ष्मी,
अपने तीसरे भाई 'उच्चाश्रेवा'घोड़े के साथ,
तेज गति से,
कहीं भी भाग सकती है
क्योकि लक्ष्मी चंचला है,
चपला है,
गतिमान है,
अमर के घर से संसद में जा सकती है
गिरती हुई सरकार को भी बचा सकती है
उसको एक जगह बैठना,
बिलकुल पसंद नहीं ,
घूमती फिरती रहती है,
स्वीजरलेंड ,
उसकी पसंदीदा जगह है,
जहाँ की बेंकों में वो,
चैन से आराम करती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, September 5, 2011

शैतान शिष्या और टीचर

शैतान शिष्या और टीचर
------------------------------
            १
परेशान टीचर हुई,शिष्या थी शैतान
बोली तुमको ठीक मै,करू  पकड़ कर कान
करू पकड़ कर कान,दूर शैतानी सारी
हफ्ते भर जो बन जाऊं मम्मी तुम्हारी
शिष्या बोली ,सच टीचर,मै तो हूँ रेडी
पर क्या ये प्रस्ताव मान जायेंगे डेडी
                २
डेडी जी  ने जब सुना,बेटी का प्रस्ताव
मुदित हुआ मन, बढ़ गया,बाँछों  का फेलाव
बाँछों का फेलाव,कहा इच्छा हो जैसी
पर तुम्हारी टीचर है दिखने में कैसी
मम्मी बोली उसको आने तो घर में
वो क्या,उसको ठीक करू मै हफ्ते भर में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, September 3, 2011

दर दर -ठोकर

दर दर -ठोकर
----------------
बढती है मंहगाई की दर
बिजली की दर,पानी की दर
कभी टेक्स दर,कभी ब्याज दर
मंहगी सब्जी,बढ़ी प्याज  दर
बहुत घुटन है मन के अन्दर
मुश्किल का है भरा समंदर
मंहगाई बढ़ गयी इस कदर
कद है लंबा,छोटी चादर
तितर बितर हो रहे सभी घर
कदम कदम पर लगती ठोकर
परेशान है जीवन,जर्जर
रहो भटकते,तुम बस दर दर
इसीलिए विनती है सादर
इधर उधर की बातें ना कर
सच्चे मन से कुछ प्रयत्न कर
कम करदो मंहगाई की दर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

तुम नहीं थी

तुम नहीं थी
---------------
नींद मुझको नहीं आई,तुम नहीं थी
कामनाये  कसमसाई ,तुम नहीं थी
चांदनी थी रात शीतल
याद तुम आई प्रतिपल
बड़ा ही बेचैन था मन
और तन की बढ़ी सिहरन
ओढ़ ली मैंने रजाई,तुम नहीं थी
मगर उष्मा नहीं आई,तुम नहीं थी
नींद  रूठी,उचट कर के
बांह में तकिये  को भर के
बहुत कोशिश की ,की सोलूं
कुछ मधुर सपने संजोलूँ
पड़ो तुम जिनमे दिखाई, तुम नहीं थी
नींद यादों ने उड़ाई,तुम नहीं थी
याद आया महकता तन
अकेली पड़ गयी धड़कन
क्या बताऊँ ,आप बीती
किस तरह से रात बीती
भोर तक भी सुध न आई,तुम नहीं थी
बस तुम्हारी याद आई,तुम नहीं थी
जिंदगी में,इस, हमारी
अहमियत क्या तुम्हारी
तुम न थी,जब जान पाया
प्यार को पहचान पाया
समझ  में ये बात आई,तुम नहीं थी
बड़ी जालिम है जुदाई,तुम नहीं थी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सच्ची तृप्ति

सच्ची तृप्ति
--------------,
रोज रोज फ्रीजर में,
रखा पुराना खाना,
माइक्रोवेव ओवन में,
गरम करके खाता हूँ
पर मुझको लगता है,
सिर्फ पेट भरने की,
औपचारिकता निभाता हूँ
वर्ना खाने का जो स्वाद,
माँ के हाथ की पकाई,
गरम गरम रोटियों में,
सरसों के साग की ,
सौंधी सी खुशबू में,
और गन्ने के रस की खीर में आता है,
सच्ची तृप्ति तो वही दिलाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

यादें

यादें
----
तेज धूप गर्मी से,
जब छत की ईंटों के,
थोड़े जोड़ उखड जाते है
और बारिश होने पर,
जोड़ों की दरारों में,
कितने ही अनचाहे,
खर पतवार निकल जाते है
जीवन की तपिश से,
जाने अनजाने में,
रिश्तों के जोड़ों में,
जब दरार पड़ती है
और बूढी आँखों से,
बरसतें है जब आंसू,
तो बीती यादों के
कितने ही खर पतवार,
बस उग उग आते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

अमरुद का पेड़

अमरुद का पेड़
-----------------
एक छोटा पौधा रोंपा था,मैंने घर की बगिया में
मधुर फलों की आशा की थी,इस बेगानी दुनिया में
सींचा मैंने अति ममत्व से,बच्चों सा  ,पोसा ,पाला
बड़े जतन से,सच्चे मन से,रोज रोज देखा,भाला
धीरे धीरे पौधा विकसा,उगी टहनियां,हुआ घना
उसने हाथ पैर फैलाये,आज गर्व से खड़ा,तना
चिकना तना,रजत सी आभा,भरा पूरा सा रूप  खिला
लगे चहकने,पंछी ,तोते, एसा नया स्वरूप मिला
उसका कद,मेरे भी कद से,दूना,तिगुना बढ़ा हुआ
मैंने बोया था जो पौधा,आज वृक्ष बन खड़ा हुआ
पिछले बरस,एक टहनी पर,देखे, दो अमरुद लगे
मेरे नन्हे से बेटे के,  जैसे थे  दो  दांत   उगे
और इस साल,भरा है फल से,फल छोटे है,कच्चे है
एसा लगता टहनी पर चढ़,खेल रहे ,कुछ बच्चे है
पर नियति की नियत अजब है,उसने है दिल तोड़ दिया
फल पकने का मौसम आया,मैंने वो घर ,छोड़ दिया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, September 1, 2011

हिंदी-अंग्रेजी


हिंदी-अंग्रेजी
--------------

पंडित देशीलाल से,मिले विदेशी  चंद
हिंदी इंग्लिश के लिए,शुरू हो गया द्वन्द
शुरू हो गया द्वन्द,आई बातों में तेजी
देशी बोले छात्र बिगड़ते पढ़ अंग्रेजी
बचपन से ही जानवरों के नाम पढ़ाते
तो बच्चों में संस्कार पशुओं के आते

अंग्रेजी की प्राइमर,चिड़िया खाना एक
A से होता 'एस' है,C से होती 'केट '
C से होती केट,'डोग' होता है D से
F 'फोक्स'G 'गोट',H ,मतलब मुर्गी से
घोटू O  से 'ओक्स'और P से 'पिग' सूअर
R 'रेट' और Z 'जेब्रा',सभी जानवर
3
बात विदेशीचंद ने,सुनी लगाकर ध्यान
 'क्लीन शेव्ड 'से फेस पर,फ़ैल गयी मुस्कान
फ़ैल गयी मुस्कान,कहा यदि यही सचाई
तो जो आज देश में बड़ी भुखमरी छाई
उसका कारण है बच्चे हिंदी पढ़ते है
पढ़ते कम है,खाने पर ज्यादा मरते है

बच्चा जब चालू करे,अपना अक्षर ज्ञान
अ से पढ़े 'अनार'वो,आ से होता 'आम'
आ से होता आम,'ईख 'ई ,इ से 'इमली
और अं से 'अंगूर ,'ककड़ीयां' क से पतली
ख से 'खरबूजा'खाने को जी चाहेगा
खाक पढ़ेगा बच्चा,पेटू हो जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


  

न नौ मन तेल होगा,न राधा नाचेगी


न नौ मन तेल होगा,न राधा नाचेगी
------------------------------------------
(कुछ प्रतिक्रियाएं )
                  १
राधा को नाचना तो नहीं आता,
मगर बहाने बनाती है
कभी आँगन को टेढ़ा बताती है
तो कभी नौ मन तेल मांगेगी
क्योंकि वो जानती है,
न नौ मन तेल होगा होगा,
न राधा नाचेगी
   २
राधा, नाचने के लिए,
अगर नौ मन तेल लेगी
तो इतने तेल का क्या करेगी?
क्या पकोड़ियाँ तलेगी?
और अगर इतनी पकोड़ियाँ खायेगी
तो खा खा कर मोटी हो जाएगी
फिर कमर कैसे मटकायेगी
और क्या नाच भी पाएगी?
       3
  हमारे कृष्ण कन्हैया
 कितने होशियार थे
बांसुरी बजा देते थे
और बिना नौ मन तेल के,
राधा को  नचा देते थे
जैसे मिडिया वाले,
टी.वी. बजा बजा देते है
सत्ता की राधा को,
नचा नचा देते है
         ४
अगर नौ मन तेल बचाना है,
और राधा को नचाना है
तो कोई आइटम सोंग बजा दो
खुद भी नाचने लगो,
और राधा को भी नचा दो
           ५
शादी के पहले,
तुमने नौ मन तेल देकर ,
राधा को खूब नचाया
पर शादी के बाद,
जब रुक्मणी आएगी
तो तुम्हे इतना नचाएगी
की मज़ा आ जायेगा
तुम्हारा,नौ मन से भी ज्यादा,
तेल निकल जायेगा
            6
गोकुल में,
जब थे कृष्ण और राधा
दूध ,दही,मक्खन खाते थे
और दोनों,गोप गोपियों के संग,
नाचते गाते थे
मक्खन और घी इतना होता था,
की हर कोई,
पुए,पूरी और पकवान,
देशी घी ने पकाता होगा
तेल कौन खाता होगा?
 इसलिए मेरा ये मत है
की ये मुहावरा ही गलत है
          ७
नाचने के लिये,
नौ मन तेल की मांग करना,
एक दम,ना इंसाफी है
राधा को नचाने के लिये,
तो बांसुरी की धुन,
और कान्हा का प्यार ही काफी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मै भी अन्ना-तुम भी अन्ना

मै भी अन्ना-तुम भी अन्ना
--------------------------------
मै भी अन्ना,तुम भी अन्ना,हम सब है अन्ना का सब बल
अड़े मिटाने को आन्दोलन,चिदंबरम जी और श्री सिब्बल
और साथ में ,लाठी लेकर,दिल्ली पुलिस दिखाती सब बल
देखा जन सैलाब उमड़ता,मन मसोस के चुप थे केवल
साधू वेश में,अग्निवेश जी,बन कर के कुटिलों के साथी
करते बात फोन पर दीखे,अन्ना को बतलाते हाथी
काम कर रहे हैं जयचंद का,लगा लगा जय हिंद का नारा
लूट रहे मोहम्मद गौरी बन,भ्रष्टाचारी, देश हमारा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तूती की आवाज़

तूती की आवाज़
------------------
         1
गाँव में,वो बड़े नेता हैं
उनका रौब है ,उनकी चलती है
जनता उनके आस पास डोलती है ,
लोग कहतें है,उनकी तूती बोलती है
वो ही गाँव के बुलंद नेता,
जब दिल्ली जाते हैं
तो मिमियाते हैं या रहते मौन है
क्योंकि नक्कार खाने में ,
तूती की आवाज़ ,सुनता ही कौन है?
             २
मेढक,जब कुए में टरटराता  है
खुद को कुए का बादशाह समझता है
पर जब कुए के बाहर आता है
तो बस फुदकता ही रह जाता है
बाहर के शोर उसकी टर टर जाने कहाँ खो जाती है
बिलकुल भी सुनने में नहीं आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रस्सी की पीड़ा

रस्सी की पीड़ा
-----------------
कूए  के पत्थर पर
रस्सी ने चल चल कर
जब बना दिए अपने निशान
सब करने लगे उसका गुण गान
उसके काम और नाम का शोर हो गया है
पर किसी ने नहीं देखा,
रोज हजारों बाल्टियों का,
बोझ खींचते खींचते,
और पानी में भीजते,
उसका रेशा रेशा,कितना कमजोर हो गया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'