Monday, April 9, 2018

अजब सिलसिले 

जमाने के देखो अजब सिलसिले है 
मोहब्बत में जिनकी ,हुए पिलपिले है 
बहारों में लूटी थी खुशबू जिन्होंने ,
शिकायत वो ही आज करते मिले है 
हमें  जिंदगी के सफर की डगर में ,
कहीं फूल ,कांटे ,कहीं  पर मिले है 
न ऊधो का लेना न माधो का देना,
इसी राह पर हम हमेशा चले है 
किसी न किसी को तो चुभते ही होंगे ,
भले ही सभी को ,पटा कर चले है 
अकेले चले थे ,भले इस सफर में ,
मगर आज हम बन गए काफिले है 
किसी ने करी है ,बुराई बहुत सी,
किसी ने कहा आदमी हम भले है 
मगर जब भी पाया ,किसी ने भी मौका
सभी ने तो अपने पकोड़े तले है  
कभी हम चमकते प्रखर सूर्य से थे ,
हुई सांझ ,पीले पड़े और ढले है 
बहुत कीच था इस सरोवर में फैला,
मगर हम यहाँ भी ,कमल से खिले है 
जले हम भी पर हमने दी रौशनी है ,
हुए खाख है वो जो कि हमसे जले है 
पड़ी झेलनी हमको कितनी जलालत ,
जीवन में आये कई जलजले  है 
हमें है यकीं  'घोटू' पूरा करेंगे ,
दिलों में हमारे ,जो सपने पले है 
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
प्रतिबंध लग गया 

पन्ना तो जड़ गया अंगूठी ,पन्नी पर प्रतिबंध लग गया 
फटी जीन तो फैशन में है ,कुरते पर पैबन्द लग गया 
नेताजी ने कर तो डाले ,वादे कई ,निभा ना  पाये ,
हेरा फेरी में उलझे है  , राजनीती में  गंद  लग गया 
कल तक एक नादान  बालिका,जो घबराती थी गुंडों से ,
उसने आज रपट लिखवाई ,उसके पीछे संत लग गया 
कितने ही जल्लाद मोहम्मद  गौरी उसको घेर रहे है,
पृथ्वीराज ,परेशाँ ,उसके पीछे अब जयचंद लग गया 
जब तक बंधा  गले में पट्टा था बस कुछ गुर्रा लेता था ,
किन्तु भोंकता सबके पीछे ,कुत्ता अब स्वच्छंद ,लग गया 
 अच्छा खासा काम चल रहा था पर उनने टांग अड़ा दी ,
दाल भात में जैसे आकर ,कोई मूसरचंद  लग गया 
मुफ्त बंटेंगे कंबल का एलान हुआ तो भीड़ लग गयी ,
मुश्किल से लाइन में जाकर ,पीछे जरूरतमंद लग गया 
कल तक जो आजाद ,मस्त था,मौज मारता खुल्लमखुल्ला,
जबसे शादी हुई  दुखी है ,क्योंकि गले में फंद लग गया 
एक साथ मिल कर रहते थे ,बंधा हुआ एक परिवार था ,
पर अब, घर बंटवारे पीछे ,अपना भाईबंद लग गया 
लायक बेटे है विदेश में , नालायक घर ,करता सेवा ,
वृद्ध और लाचार पिता को ,'घोटू 'वही पसंद लग गया 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

न मैं चाहता हूँ ,न दिल चाहता है 

कभी जिंदगी में ,जुड़ा तुमसे होना ,
न मैं चाहता हूँ ,न दिल चाहता  है 

पलकों पे तुमको बिठाये रखा है 
मंदिर में दिल के सजाये रखा  है 
फूलों से नाजुक ,तुम्हारे बदन को ,
 कलेजे  से अपने ,लगाये  रखा है 
खुशबू से इसकी ,कभी दूर होना ,
न हम चाहतें है ,न दिल चाहता है 

भले दो जिसम पर,एक जान है हम 
एक दूसरे की तो ,पहचान है हम  
संग संग जियेंगे, संग संग  मरेंगे ,
सदा एक दूजे पर ,कुरबान है हम 
हमारी वफ़ा में ,कभी कुछ जफ़ा हो,
न हम चाहते है ,न दिल चाहता है 

तुम्हारी मोहब्बत मेरी जिंदगी है 
तुम्हारी इबादत , मेरी बंदगी  है 
तुम लेती हो साँसें ,धड़कता मेरा दिल ,
इतनी दीवानी ,मेरी आशिक़ी है 
कभी जिंदगी में ,खफा तुमसे होना ,
न हम चाहतें है न दिल चाहता है  

कभी जिंदगी में ,तुम्हे गम न आये 
तुम्हे दर्द हो ऐसा मौसम न आये 
हमेशा बसंती ,फ़िज़ा खुशनुमा हो 
फूलों सा चेहरा सदा मुस्कराये 
कभी भी तुम्हारी ,खुशियों को खोना,
न हम चाहते है ,न दिल चाहता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक बातचीत जो जोधपुर सेन्ट्रल जेल में सुनी गयी 

तुम दो दिन आये ,छूट गये ,हम पांच साल से सड़ते है 
तूमने  भी लड़ा मुकदमा था ,और हम भी मुकदमा लड़ते है 
तुम्हारे कई प्रसंशक है,और भक्त हमारे  भी अगणित ,,
तुम अभिनता करते अभिनय ,हम साधू ,प्रवचन पढ़ते है 
तुम भी तो लगाते हो ठुमके ,और हम बी लगाते ठुमके है ,
तुम जाते छूट ,हमारे पर,सारे  ही  काम  बिगड़ते है 
तुम एक्शन हीरो रोमांटिक,हीरोइन के संग  इश्क करो ,
हम भक्तिन संग रोमांस करें ,सबकी आँखें क्यों गड़ते है 
तुम हो 'बीइंग हयूमन 'वाले ,हम 'लविंग वूमन 'के मतवाले ,
 कान्हा बन गोपी प्रेम करें ,सब दोष हमी पर मढ़ते है 
तुम भाई हो, हम बापू है ,तुम जवां ,हो गये हम बूढ़े,
पर बूढ़े बंदर भी तो ,पेड़ों की शाखाओं पर  चढ़ते   है 
एड़ी चोटी का जोर लगा ,हम आशाराम  निराश हुए ,
सलमान खान ,दो हमें ज्ञान ,हम पैर तुम्हारे पड़ते है 

घोटू