Wednesday, January 6, 2021

मैंने अपने अंदर झाँका

अब तक तो मैं औरों का ही ,मैला दामन करता ताका
पर एक दिन जब,मैंने अपने,उर अन्तर के अंदर झाँका
सहम गया मैं ,भौंचक्का सा ,भरी हुई थी ,कई बुराई ,
अहम और बेईमानी ने ,मचा रखा था ,वहां धमाका
मैंने मन के अंदर झाँका
अब तक मुझे ,नज़र आती थी ,औरों की बुराइयां केवल
समझा करता ,दूध धुला मैं ,मेरा हृदय ,स्वच्छ है निर्मल
मेरी सबसे बड़ी कमी थी ,मैं औरों की कमियां गिनता ,
कमियां भरा ,स्वयं को पाया ,जब मैंने अपने को आँका
मैंने मन के अंदर झाँका
मेरा अहम् कुंडली मारे छुपा हुआ था ,मेरे अंदर
एक दो नहीं ,कई बुराई ,का लहराता भरा समंदर
प्रकट नहीं ,अंदर ही अंदर ,स्पर्धा भी ,घर कर बैठी ,
लालच और लालसाओं ने ,डाल रखा था ,मन पर डाका
मैंने मन के अंदर झाँका
मोह और माया ,मुझे बरगला ,बैठी मुझ पर ,कैसे शिकंजा
रह रह कर ,अभिमान झूंठ भी ,मार रहे थे ,मुझ पर पंजा
अपने स्वार्थ पूर्ति की चाहत ,देती थी ईमान डगमगा ,
राह भले थी  सीधी सादी ,मैं चलता था ,आँका बांका
मैंने मन के अंदर झाँका
मन बोला  ,मत ढूंढ बुराई औरों में ,खुद को सुधार तू
अपने अंदर ,छुपे हुये सब ,राग द्वेष का ,कर संहार तू
तू सुधरेगा ,तेरी नज़रें ,देखेगी सबकी  अच्छाई ,
और फिर तेरे मन के अंदर ,लहरायेगी ,प्रेमपताका
मैंने मन के अंदर झाँका

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चले थी जहाँ से ,वहीँ आ गये  है

अनजान थे हम ,जान आ गयी थी ,
हुआ था मिलन जब,हमारा,तुम्हारा
जीवन सफर की ,शुरुवात की थी ,
एक दूसरे का ,लिया था सहारा
बड़ी मुश्किलें थी ,कठिन रास्ता था ,
कहीं पर थे कांटे,कहीं ठोकरें थी
कभी सर्दी गर्मी ,कभी बारिशें थी ,
मौसम की गर्दिश ,हमे तंग करे थी
चमन में हमारे ,खिले फूल प्यारे ,
एक नन्ही  जूही ,एक गुलाब प्यारा
मधुर प्यार की जिनने खुशबू बिखेरी ,
महकाया जीवन ,सजाया ,संवारा
मगर वक़्त ने चक्र ,ऐसा चलाया ,
दामाद आया ,गया ले कर   बेटी
करी शादी बेटे की ,लाये बहू हम ,
बसा घर अलग ,दूर हमसे वो बैठी
बढ़ती उमर ने ,सितम ऐसा ढाया ,
बुढ़ापे में फिरसे ,हो तनहा गये  है
फिर से वही,दो के दो रह गए हम ,
चले थे जहाँ से ,वहीँ आ गये  है

घोटू