Tuesday, May 29, 2012

आपकी खूबसूरती

आपकी खूबसूरती

आपको छूने से आ जाती जिस्म में गर्मी,
       देख कर आँखों को ,ठंडक मिले    गजब सी है
आपके पास में आने से पिघल जाता बदन,
            आपके  हुस्न की तासीर ही अजब सी है
 आपके आते ही ,सारी फिजा बदल जाती,
          आप मुस्काती  हैं,तो जाता है बदल मौसम
एक खुशबू सी बिखर जाती है हवाओं में,
          चहकने लगता है,महका  हुआ सारा  गुलशन
आप इतनी हसीं है और इतनी नाज़ुक है,
          आपको छूने में भी थोडा  हिचकता है दिल
आप में नूर खुदा का है,आब सूरज की,
         चमक है चन्दा सी चेहरे पे,हुस्न है कातिल
बड़ी   फुर्सत से गढ़ा है बनाने वाले ने,
         उसमे कुछ ख़ास मसाला भी मिलाया  होगा
देखता रह गया होगा वो फाड़ कर आँखें,
         आपको रूबरू जब सामने    पाया    होगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
     

चलो आज कुछ तूफानी करते है

चलो  आज कुछ तूफानी करते है
होटल में पैसे उड़ाते नहीं,
गरीबों का चायपानी करते है
चलो ,आज कुछ तूफानी करते है
अनपढ़ को पढना सिखायेंगे  है हम
भूखों को खाना खिलाएंगे  हम
काला ,पीला ठंडा पियेंगे नहीं,
प्यासों को पानी पिलायेंगे हम
काम किसी के तो आ जाएगी,
दान चीजें पुरानी करतें है
चलो,आज कुछ तूफानी करते है
निर्धन की बेटी की शादी कराये
अंधों की आँखों पे चश्मा चढ़ाएं
अपंगों को चलने के लायक बनाये
पैसे नहीं,पुण्य ,थोडा  कमाए
अँधेरी कुटिया में दीपक जला,
उनकी दुनिया सुहानी करते है
चलो ,आज कुछ तूफानी करते है
बूढों,बुजुर्गों को सन्मान दें
बुढ़ापे में उनका सहारा  बनें
बच्चों का बचपन नहीं छिन सके
हर घर में आशा की ज्योति   जगे
लाचार ,बीमार ,इंसानों के,
जीवन में हम रंग भरते है
चलो,आज कुछ तूफानी करते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अपना अपना नजरिया

    अपना अपना नजरिया
एक बच्चा कर में जा रहा था
एक बच्चा साईकिल चला रहा था
साईकिल वाले बच्चे ने सोचा,
           देखो इसका कितना मज़ा है
            कितना सजा धजा है
            न धूल है,न गर्मी का डर है 
               नहीं मारने पड़ते पैडल है
    क्या आराम से जी रहा है
कार वाले लड़के ने सोचा,
            मै कार के अन्दर  हूँ बंद
            मगर इस पर नहीं कोई प्रतिबन्ध
            जिधर चाहता है ,उधर जाता है
            अपने रास्ते खुद बनाता  है
  कितने मज़े से जी रहा है
दोनों की भावनायें जान,
ऊपरवाला  मुस्कराता है
कोई भी अपने हाल से संतुष्ट नहीं है,
दूसरों की थाली में,
ज्यादा ही घी नज़र आता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'