Saturday, May 30, 2015

मोदी उचाव -पप्पूजी से

           मोदी  उचाव -पप्पूजी से

सत्ताच्युत शहजादे जी ,
और रूठ कर लौटे हुए राजकुमार
तुम्हे नरेन्द्र मोदी का ढेर सारा प्यार
जब तुम्हारी पार्टी पॉवर में थी,
हुए थे बहुत घोटाले
तुम्हारे इशारों पर नाचते थे सारे
देश की जनता को जब ये नज़र आया
इस चुनाव में तुम्हे सत्ता से हटाया
ये बात तुम्हारी पार्टी पचा नहीं पारही है
और बिना बात ,हाय तोबा मचा रही है
हमारे एक साल के शासन में ,
जब तुम ढूंढ न पाये कोई लफ़ड़े
तो तुमको नज़र आने लगे मेरे कपडे
विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के सामने या ठन्डे मुल्कों में ,
अगर मैं सूट पहनू तो तुम्हे सूट नहीं करता
और मैं  तुम्हारी तरह ,
जीन्स और टीशर्ट पहन नहीं सकता
क्योकि हर पद की होती है एक मर्यादा
अब तुम्हे क्या कहूँ ज्यादा
अगर मैं महात्मा गांधी की तरह धोती पहनू ,
तो बोलोगे मोदी कर रहा नाटक है
हम गांधी है और गांधीजी की वेशभूषा ,
हमारी विरासत है
मैं जैकेट पहनू तो तुम कहोगे कि  उस पर,
तुम्हारे पिताजी के नाना का नाम है
नक़ल करना ही मोदीजी का काम है
कॉंग्रेस साठ  साल से नारा दे रही है कि ,
हम गरीबी हटाने वाले है
मोदीजी ने नाम बदल कर कह दिया
कि अच्छे दिन आने वाले है
हम कोई भी योजना लाते है ,तुम कहते हो,
ये तुम्हारी सरकार ने चालू की थी
और मोदीजी ने नाम बदल कर,
 वाह वाही जीती 
मैं कुर्ता पाजामा भी पहनू तो कहोगे ,
ये तो  मेरी नक़ल है
पर अगर तुममे थोड़ी सी भी अकल है
तो देखोगे कि तुम्हारे कुरते की बांहे
पूरी लम्बी  है ,जिन्हे तुम चढ़ाते हो गाहे बगाहे
और मेरे कुरते की तो पहले से ही है आधी बाहें
दर असल छप्पन दिनों के अज्ञातवास में
तुमने क्या किया बैंकॉक में
मुझे ये बात तो नहीं मालूम
पर जबसे लौट के आये हो तुम
जैसे कोई तुतला र को ल बोलता है
तुम 'झ 'को 'ट 'बोलने लगे हो
पहले झल्ले थे अब ठल्ले  लगने लगे हो
' सूझ बूझ 'की सरकार  को ,
' सूट बूट 'की सरकार  कहते हो
और यूं ही दिन भर बिलबिलाते रहते हो
'मैं गरीब किसान के घर गया था ,
मोदीजी किसी किसान के घर गए क्या ?
कल ये पूछोगे 'मैं इतने दिन बैंकॉक रहा ,
मोदीजी बैंकॉक रहे क्या  ?
भैया तुम्हे जो करना है तुम करो,
मुझे जो उचित लगता है ,मैं करूंगा
 जनता के भले के लिए मैं जीऊंगा,मरूंगा
तुम्हारे बेवकूफी भरे जुमलों पर,
तुम्हारे चमचे ताली बजा देते है
कुछ न्यूज़ चैनल हेड  लाइन बना देते है
कुछ तुम्हे कांग्रेस प्रेसिडेंट बनाने की कह ,
तुम्हे सर पर चढ़ाते रहते है
अब तुम्ही समझ जाओ,
लोग तुम्हे पप्पू क्यों कहते है       

मदन मोहन बाहेती'घोटू'          

Wednesday, May 27, 2015

वहाँ के वहीँ

          वहाँ  के वहीँ

वो पहुंचे ,कहाँ से  कहीं है
हम जहाँ थे, वहीँ  के वहीँ है 
मुश्किलें सामने सब खड़ी थी
उनमे जज्बा था,हिम्मत बड़ी थी
हम बैठे रहे   बन  के  बुजदिल
वो गए बढ़ते और पा ली मंजिल
हम रहे हाथ पर हाथ धर कर
सिर्फ किस्मत पे विश्वास कर  कर
कर्म करिये, वचन ये सही  है
वो  पहुंचे कहाँ से कहीं है
जब मिला ना जो कुछ,किसको कोसें  
आदमी बढ़ता , खुद के  भरोसे
है जरूरी  बहुत  कर्म करना 
यदि जीवन में है आगे बढ़ना
वो मदद करता  उसकी ही प्यारे
मुश्किलों में जो हिम्मत न हारे
बात अब ये समझ आ गयी है
वो  पहुंचे ,कहाँ  से  कहीं है
 हम जहाँ थे , वहीँ  के वहीँ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मेरा मेहबूब

           मेरा मेहबूब

मुझको मालूम है कि है वो लापरवाह नहीं
मगर मेरी तो उसको  ज़रा भी परवाह नहीं
उसके वो गेसू,उसका हुस्न,तराशा वो बदन
करता परवाह ,बेपनाह ,करके सारे  जतन
उसको फुर्सत ही कहाँ मिलती है ले मेरी खबर
कभी तो डाले मुझ पे ,प्रेम भरी अपनी नज़र
बैठ कर,आईने में, खुद को निहारा करता
कभी चेहरा तो कभी जुल्फें संवारा  करता
ये सब वो करताहै तो मुझको ही रिझाने को,
कैसे कहदूं कि  उसके दिल में मेरी चाह नहीं
मुझको मालूम है कि है वो लापरवाह नहीं
नहीं ये बेरुखी है ,ये है उसकी मजबूरी
बना के रख्खी है जो उसने मुझसे ये दूरी
क्योंकि मै मिलता हूँ उससे तो होता बेकाबू
इस तरह चलता मुझ पे हुस्न का उसके जादू
मुझको कुछ इस तरह से उसपे प्यार आता है
बिगड़ उसका ,किया श्रृंगार  सारा जाता  है
फिर भी होता नहीं है ख़त्म मेरा जोश-ओ-जूनून ,
इसलिए डरता हूँ और करता ये गुनाह नहीं
मुझको मालूम है कि है वो लापरवाह  नहीं
मगर मेरी तो उसको ज़रा भी परवाह नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पप्पू जी से

         पप्पू जी से
                 १
यूं तुम क्यों बिलबिलाते हो,हार की अपनी बरसी पे
दिये गम इतने दिन, आये चले अब मातमपुर्सी  पे
आदमी बैठ कर कुर्सी पे अक्सर भूल जाता  है,
उसी जनता जनार्दन को ,बिठाया जिसने कुर्सी  पे
                            २
अगर राजीव इंग्लैंड जा,वहां पर जो नहीं पढ़ते
और ना सोनिया मिलती ,न उससे नयन ही लड़ते
न ये होता ,न वो होता ,न जाने क्या क्या ना होता ,
मगर ये सच है 'पप्पूजी ',हमें ना झेलने पड़ते  
                    ३
इंडिया और इटली में ,फरक इतना नज़र आता ,
          यहाँ पर राम के चर्चे ,वहां पर रोम की चर्चें
बहुत मंहगा हमें पड़ता है संगेमरमर इटली का,
          और इटली के पीज़ा के ,चौगुने दाम हम खर्चें
बहू इटली की लाना भी,बड़ा मंहगा पड़ा हमको,
          हुआ है ऐसा पप्पू जो,रोज करता  बखेड़ा है
यहाँ जनता जनार्दन सब,कुतुबमीनार सी सीधी ,
        मगर पप्पू तो इटली के पीसाटावर सा टेढ़ा है
                          
घोटू  

  

त्रिदेव और त्रिदेवी

           त्रिदेव और त्रिदेवी

है ब्रह्मा कर्ता सृष्टी के ,कराते काम सब हमसे ,
      सरस्वती ज्ञान की देवी,सभी अज्ञान  हरती है
देव विष्णुजी भर्ता है,करें सबका भरण पोषण ,
       लक्ष्मी देवी धन की है, हमें संपन्न करती है
और शंकरजी हर्ता है,हरे सब मुश्किलें ,सबकी ,
       और माँ दुर्गा देवी है ,सभी को देती है  शक्ती
ये तीनो देवता ,देवी,चलाते चक्र जीवन का,
       है कर्ता ,भर्ता ,हर्ता ये,इन्ही की हम करें भक्ति

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, May 20, 2015

गुलों से ख़ार हो गये

           गुलों से ख़ार हो गये

बताएं क्या,सुनाएँ क्या ,है ऐसे हाल हो गये
खुली जो आँख उठ गए,लगी जो आँख सो गये
पुरानी याद आई तो,हँसे या रो लिए कभी,
लुटाया जिनपे प्यार था ,उन्ही पे भार हो गये
जला के खुद को आग पर ,पकाया खाना उम्र भर,
पुराने बर्तनो से हम भी अब भंगार हो गये
जमा थी पूँजी खुट गयी,कमाई सारी लूट गयी ,
घुटन ये मन में घुट गयी ,थे गुल,अब ख़ार हो गये
बची न कोई हसरतें ,उठाके कितनी जहमतें ,
बुने थे ख्वाब कितने ही,सब तार तार हो गये
कहें भी तो किसे कहें, है किसको वक़्त कि सुने ,
है  'घोटू' शिकवे और गिले ,कई हज़ार हो गये 

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुड मॉर्निंग '

                 गुड मॉर्निंग '
सवेरे ही सवेरे जब ,कोई मुस्का,मधुर स्वर में ,
        तुम्हे 'गुड मॉर्निंग' बोले ,बजेगी घंटियां  मन की
सुहागा होगा सोने में ,अगर मिल जाए पीने को,
         गरम एक चाय का प्याला ,ताजगी आएगी तन की
लगेगा उगता सूरज भी,तुम्हे हँसता और मुस्काता,
         हवाओं में भी आएगी , सुगन्धी तुमको चन्दन  की
'न्यूज़ पेपर 'जो खोलोगे ,तो फीलिंग आएगा मन में ,
          सुहागरात  में  तुमने ,    उठाई  घूंघट  दुल्हन की  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, May 19, 2015

शादी का बंधन

            शादी का बंधन

दिया भगवान ने मुझको ,अगर धरती पे जीवन है
है इस पर पूर्ण हक़ मेरा ,मिला जो प्यारा  सा तन है
करूं उपयोग मैं इसका, जैसे  भी मन में आता है 
तो  क्यों प्रतिबन्ध ढेरों से,ज़माना ये लगाता है
कभी ना तो कभी ये प्रश्न ,सभी के मन में उठता है
नहीं स्वातंत्र्य है कुछ भी ,भला क्यों ये विवशता है
मिला उत्तर ये भगवन ने,दिया है मन भी तन के संग
बड़ा भावुक वो होता है, जो रंग जाता किसी के रंग
तो उसके साथ जीवन भर का फिर बंध  जाता बंधन है
तो फिर क्या तन और क्या मन,सभी उसको समर्पण है
अगर बंधन ये ना होता  ,न बच्चे ,,घर नहीं रहता 
तो  इन्सां  और पशुओं में ,नहीं अंतर कोई   रहता 
रोकने को जो  उच्श्रंखलता,व्यवस्था है गयी बाँधी
यही बंधन है सामाजिक  ,जिसे हम कहते है शादी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आज आया युग नया है

          आज आया युग नया है

लेखनी कागज़ पे कुछ लिखती नहीं अब
उँगलियाँ  'कीबोर्ड ' पर टंकित करे सब 
           भेजते  'ई मेल' से है  सब  संदेशे ,
'     पोस्ट' करने का ज़माना   लद  गया है
       इस तरह का आज आया  युग नया  है
'फेस बुक' पर फेस दीखते अब हमारे
देखते   'यू ट्यूब' पर सारे   नज़ारे
      होगये स्मार्ट लड़के,लड़कियां सब ,
       फोन ये स्मार्ट जब से आ गया है
       इस तरह से आज आया युग नया है
हो रही 'व्हाट्स एप'पर मेसेजबाजी
शादी तक के लिए होते लोग राजी
      नया 'चेटिंग' और 'डेटिंग' का तरीका ,
      उँगलियों के इशारों पर छागया  है
      इस तरह का आज आया युग नया है  
बाज़ारों की संस्कृति अब खो रही है
'ओन लाइन'सभी  'शॉपिंग' हो रही है
         हो गया होशियार इतना गुरु 'गूगल '
          हल समस्या का सभी वो पा गया है
         इस तरह का आज आया युग नया  है
अब न खाना पकाना अम्मा सिखाती
'रेसिपी'  यू ट्यूब 'पर है सभी आती
           'ओन लाइन'बुक किया,'पीज़ा' मंगाया,
           तीस मिनटों में वो झट घर आगया है
           इस तरह का आज आया युग नया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'       

Monday, May 18, 2015

भोजन और संस्कृती

         भोजन और संस्कृती

कोई खाता इटालियन,कोई खाता यूरोपियन,
कोई मुग़लाइ खाता है,कोई चाइनीज है खाता 
कोई वेजिटेरियन  है ,तो  कोई मांसाहारी पर,
जिसे,जो खाने की आदत,वही खाना है मनभाता  
कभी राजस्थानी हम ,चूरमा बाटी खाते है,
तो कभी 'लिट्टी चोखा'है जो कि खाना बिहारी है
कभी मक्की की रोटी और साग सरसों का पंजाबी,
कभी छोले भठूरे की,लगे लज्जत  निराली  है
कभी है पाव और भाजी, वडा और पाव कोई दिन,
मराठी 'झुनका और भाखर',कभी हमको सुहाता है
ढोकले,खांखरेऔर फाफडे ,खाते हम गुजराती,
कभी इडली और डोसे  का, स्वाद मद्रासी आता है
कभी पुलाव कश्मीरी,कभी केरल 'इडीअप्पम' ,
हैदराबादी बिरयानी,कभी 'उडप्पी'का खाना है
कभी है चाट दिल्ली की, बेड़मी आलू यू. पी. के ,
कभी इन्दोर एम. पी. का,लगे खाना सुहाना है
मलाई पान 'लखनऊ के तो लड्डू कानपूर के है,
कभी है आगरा पेठा ,कभी खुर्जा की खुरचन है
कभी बंगाली रसगुल्ला,कभी ''श्रीखण्ड 'गुजराती,
कभी गुलाब जामुन और जलेबी लूटती मन है
हमारे देश में जितनी ,विविधता भाषा ,संस्कृति में,
है खाने और पीने में ,विविधता उतनी ही ज्यादा
भटकते तुम रहो कितने ही देशों और विदेशों में,
मज़ा हमको मगर असली,घर के खाने में ही आता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अंदाज- अपना अपना

         अंदाज- अपना अपना

कहा नेता के बेटे ने ,
मुझे तुम अपना दिल देदो
है वादा ,चाँद और तारे ,
              तोड़ कर दूंगा लाकर मैं
कहा बनिये  के बेटे ने,
कमाई मैंने जो अब तक,
वो सारी प्यार की दौलत,
         रखो तुम दिल के लॉकर में
कृषकसुत  ने कहा मुझमे,
प्यार का बीज पनपा है,
फले फूलेगा,लहकेगा ,
        प्यार से सींच भर देना
तो अफसर पुत्र ये बोला ,
प्रपोजल प्यार का मेरे ,
रखा तुम्हारी टेबल पर,
          पास ले, दे के कर देना
ये बोला, छोरा पंडित का,
तू मेरे प्यार की देवी,
बिठा के मन के मंदिर में ,
           करूंगा जाप मैं  तेरा 
क्लर्क के एक बेटे ने ,
कहा भर आह एक ठंडी ,
बड़ी लम्बी लगी लाइन ,
         कब नंबर आएगा मेरा
तभी एक प्रेक्टिकल आशिक,
एक लम्बी कार मे आया ,
अंगूठी एक हीरे की ,
         उसकी उंगली में पहना दी
और डायमंड नेकलेस दे ,
कहा उससे कि 'आइ  लव यू'
चलो बाहर डिनर करते,
           प्रेमिका झट हुई राजी
हज़ारों ख्वाब इस दिल में,
बुना  करते है हम और तुम,
मगर इच्छाएं सब,सबकी,
                  कहाँ  हो पाती पूरी है
हरेक मंजिल को पाने का,
तरीका अपना अपना है ,
वहां तक पहुँच पाने का,
                 हुनर आना जरूरी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तरक्की का असर

          तरक्की का असर

कन्हैया ,छोरा गोकुल का ,द्वारिकाधीश जब बनता,
    तरक्की का असर उस पर ,कुछ ऐसे है नज़र  आता
बड़ा ही शीतल और पावन ,मधुर जल था जो जमुना का,
      तरक्की ऐसी करता है , समन्दर खारा बन जाता
बिसरता  नन्द बाबा को ,गाँव,गैया,ग्वालों को,
       यशोदा मैया की ममता ,भी उस को याद ना रहती
उधर वो आठ पटरानी,संग मस्ती उड़ाता है ,
        इधर है  याद में उसकी ,तड़फती  राधिका रहती
कभी जिन उँगलियों से वो ,बजाता बांसुरी धुन था ,
       बचाने गाँव वालों को, उठाया जिस पे था गिरवर
उसी ऊँगली से  अब उसकी ,सुदर्शन चक्र चलता है ,
       बदल है किस तरह जाता ,आदमी कुछ  तरक्की  कर
कभी रणछोड़ बन कर के ,छोड़ मैदान जो भागा ,
      वही अर्जुन से कहता है,लड़ो,पीछे हटो मत तुम
खिलाड़ी राजनीति का,भाई भाई को लड़वाता ,
      मदद दोनों की करता है,जो भी जीते,उधर है हम
विपुल ऐश्वर्य जब पाता ,भुला देता है अपनो को,
      शून्य  संवेदना  होती ,न रहता प्यार  अंदर में 
इस तरह की तरक्की से,जो बसती द्वारिका नगरी,
     एक ना एक दिन निश्चित,  डूबती है  समन्दर   में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, May 16, 2015

पानी की बोतल और लोठा

               पानी की बोतल और लोठा 

प्रिये तुम मिनरल वाटर की,स्लिम सी  मोहिनी बोतल ,
    मैं तो पब्लिक पियाउ का, बुझाता प्यास  लोठा हूँ
हमारी और तुम्हारी ना,कभी  जम पाएगी जोड़ी ,
    कनक की तुम छड़ी सी हो ,अखाड़े का मैं सोठा  हूँ
स्लिम तुम फोन एंड्रॉइड ,भरी कितने गुणों से हो,
      मैं काले फोन का चोगा,पर फिर भी काम आता हूँ
तुम्हारा पानी पी पीकर ,फेंक देते है तुमको सब ,
      मगर मैं रोज मंज मंज कर,चमकता  ,जगमगाता हूँ
नज़र तुम जब भी आती हो,मुझे कुछ कुछ सा होता है,
              और फिर तुमको पाने के,सपन मन में संजोता हूँ
प्रिये तुम मिनरल वाटर की, स्लिम सी मोहिनी बोतल,
             मैं तो पब्लिक पियाउ का,बुझाता प्यास लोठा  हूँ
कमरिया में तुम्हारी जब ,डाल कर हाथ है कोई,
           पास मुंह के है ले जाता ,और होठों से लगाता  है
लोटते सांप कितने ही,मेरे दीवाने इस दिल पर  ,
            बुझाता प्यास अपनी  वो, पर दिल मेरा जलाता है
दूर से धार पानी की,डालता ,ओक से पीयो ,
          किसी के मुंह नहीं लगता ,और ना जूंठा  होता हूँ
प्रिये तुम मिनरल वाटर की,स्लिम सी मोहिनी बोतल,
         मैं तो पब्लिक पियाउ का,बुझाता प्यास लोठा  हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुजारा करना पड़ता है

         गुजारा करना पड़ता है

आदमी मारता रहता है मुंह,इत उत ,जवानी में
          बुढ़ापे में मगर बीबी से अपनी प्यार करता  है
हसीनाएं बुढ़ापा देख कर के फेर लेती  मुंह,
           डालती घास बीबी है, बिचारा वो ही चरता  है
बहुत समझाया हमने कि ,चढ़ा सूरज तपाता है,
          मगर ढलते  हुए सूरज की अपनी आग होती है
चमकता चांदी जैसा है ,जब होता सर के ऊपर है,
        मगर जब ढलने लगता तब ,स्वर्ण की आब होती है
न देखो केश उजले और न देखो झुर्री चहरे की ,
        हमारा प्यार देखो और हमारा हौसला देखो
पके है पान खाने से,न खांसी ना जुकाम होगा,
      पास जो आओगे होगा ,तुम्हारा ही भला देखो
बहुत समझाया हमने पर,वो ना मानी,नहीं मानी,
     झटक के अपनी जुल्फों को,हमें ठुकराया और चल दी
कहा हमने न इतराओ ,जवानी के नशे में तुम ,
      चांदनी    चार   दिन की है,बुढ़ापा आएगा   जल्दी 
  उड़ाई उसने जब खिल्ली,तो हम ये बोले,हौले से ,
      तुम  उसका स्वाद क्या जानो,जिसे चाखा न  छुवा है
उम्र जब जायेगी ढल तो,करोगी याद बीते दिन ,
       जवानी बहती नदिया है,  बुढ़ापा गहरा कुवा   है
उसी का मीठा जल पीता ,आदमी है बुढ़ापे में,  
          उसी का पानी पी पी कर ,गुजारा करना पड़ता है
आदमी मारता रहता है मुंह ,इत उत जवानी में,
          बुढ़ापे में मगर बीबी से अपनी प्यार करता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

नेता और व्यवस्था

       नेता और व्यवस्था

वो हम में से एक था
और बन्दा भी नेक था
करता सद्व्यवहार  था
सबको उससे  प्यार था
मीठा मीठा बोलता
सुख और दुःख में दौड़ता
सबसे उस का मेल था
पर वो आठंवी  फ़ैल था
बात बनाता सुन्दर था
सबमे वो  पॉपुलर था
थोड़ा चलता पुरजा था
घर मुश्किल से चलता था
उसके सेवा भाव  में
पाया टिकिट चुनाव में
उसने  खेल अजब खेले
चुना बन गया एम एल ए
उसकी जाति  विशेष थी
और किस्मत भी तेज थी
वो उस ग्रूप का बन नेता
शिक्षा मंत्री बन बैठा
कुर्सी मिली ,आगया ज्ञान
मेरा भारत देश महान
जिसे न पढ़ना आता है
शिक्षा नीति बनाता है
यही रो रहे थे रोना
किन्तु हुआ जो था होना
आया थोड़ा परिवर्तन
मंत्रिमंडल ,पुनर्गठन
किस्मत का है खेल अजब
वित्त मंत्री था वो अब
कैसा खेल विधाता है
जो घर चला न पाता  है
अब वो प्रान्त चलाएगा
वित्त की नीति बनाएगा
कुर्सी लाती सारे गुण
मूरख ग्यानी जाता बन
कल था शिक्षा का ज्ञाता
आज वित्त उसको आता
कैसी अजब व्यवस्था है
हाल देश का खस्ता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रिया-G

                       शुक्रिया-G

करें हम शुक्रिया उनका,बनाया जिनने ये गूगल
बटन के बस दबाते ही,समस्या सारी होती हल
बड़ी तहजीब बच्चों को,सिखाई है इस गूगल ने ,
संदेशा ,चिट्ठी कुछ भी हो ,लगाते पहले 'जी'केवल 
न ज्यादा बोलते  है और ,न ही बकवास करते है ,
चिपक कर अपने मोबाइल से,चेटिंग करते है हर पल
ये गूगल की मेहरबानी,कहीं तो इनका 'जी 'लगता ,
नहीं तो ये नयी पीढ़ी,बड़ी बन जाती उच्श्रंखल
औरतें सीख लेती झट ,उन्हें जो भी पकाना हो,
गृहस्थी को चलाने में,बड़ा ही मिलता है संबल
अब इनका मार्ग दर्शन भी ,सब GPS   करता है,
पहुँचते अपनी मंज़िल पर,सहारे 'जी'के ही केवल
हमेशा सर झुका रहते ,किया करते है बस दर्शन ,
पिता G और माता G ,सभी कुछ इनका है गूगल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जिव्हा और नियंत्रण

         जिव्हा और नियंत्रण

दिन भर चलती ही रहती है,तरह तरह की बात बनाती 
झगडे भी करवा  देती है ,कितनी बार फिसल भी जाती
बड़ी चटोरी  इसकी आदत,इसको स्वाद सभी में आता
खट्टा,मीठा,तेज,चरपरा,सब कुछ इसको बहुत सुहाता
अस्थिविहीना,चंचल,चपला,मुश्किल इस पर काबू करना
कभी उगलती,जहर हलाहल,और कभी अमृत का झरना
मैं इतना इसके बस में हूँ,और बेबस हूँ इसके आगे
कोई उपाय बता दे ऐसा ,जो इस पर लगाम लगवा दे
मैंने धर्म गुरु से पूछा ,तो गुरुवरजी  हंस कर बोले
मुझ से पूछ रहे हो इस पर करूं नियंत्रण,तुम हो भोले
सदवचनों का ये निर्झर है,सरस्वती बहती है इस से
सारे भजन ,कीर्तन,प्रवचन,ये ही करवाती है मुझ से
मुझको है ,सदगुरू बनाया ,ये सब है इसकी ही माया
जीवन में इसने ही मुझको ,नवरस का है स्वाद छकाया
सब को बस में कर लेती है, इसको करना आता जादू
मेरे बस की बात नहीं है ,इस पर कोई लगाम लगा दूँ
पंडितजी से पूछा ,बोले,मैं भी कुछ ना कर पाउँगा
वरना भोग,प्रसाद ,चढ़ावा,और श्राद्ध कैसे खाऊंगा
इधरउधर भटका ,कितनो से पूछा ,पर असमर्थ सभी थे
तभी ख्याल आया कि क्यों ना जाकर पूछूँ मोदीजी से
मोदीजी ने बात जब सुनी,तो वो हल्का सा मुस्काये
बोले समझूँ पीर तुम्हारी, पर तुम गलत जगह पर आये
ये है सबसे बड़ी नियामत ,जो कि प्रभु ने है मुझको दी
और बदौलत इसकी ही तो,मोदी आज बना है मोदी 
इसने ही तो ,अच्छे दिन के ,सपने लोगों को दिखलाये
इसने देश विदेशों में जा,  भारत के  डंके  बजवाये
परम प्रिया मेरी,मैं कुछ ना,यदि ये मेरे साथ नहीं है
इस पर कोई नियंत्रण करना ,मेरे बस की बात नहीं है
मुझको देख निराश,हंसी वो,बोली अकल तुम्हारी  मोटी
पूछ उपाय रहे हो उनसे ,जिनकी हूँ मैं  रोजी,रोटी
इतनी चंचल और बातूनी,ईश्वर ने है मुझे बनाया
करने मेरी पहरेदारी, बत्तीस  दांतों को बैठाया
वो भी ना कर सके नियंत्रित ,यदि चाहते ,काबू मुझ पर
मैं खुद काबू में आउंगी ,यदि काबू कर लोगे  खुद पर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 

Friday, May 15, 2015

तक़ल्लुफ़

             तक़ल्लुफ़

कहा उनने इशारों में, तक़ल्लुफ़ सीखिये थोड़ा,
    सजी टेबल दिखी क्या बस,जुट गए झट से खाने में
कहा हमने कि ये तहजीब ,लखनऊ को मुबारक हो,
    इसी चक्कर में फंसवा  कर  ,हमें लूटा   जमाने ने
दोस्त हम दो थे ,एक लड़की ,फ़िदा दोनों ही उस पर थे ,
     रह गए हम तक़ल्लुफ़ में, छुपाये प्यार ,बस दिल में
पटाया दोस्त ने उसको ,रह गए टापते ही हम,
      उसे कहते है जब भाभी , जान पड़ती  है  मुश्किल में
नबाबों के तकल्लुफ के,जमाने लद गये है अब ,
      निपट लो भैया जल्दी से ,चलन है ये जमाने का
गरम खाना हो डोंगों में ,सिक रही रोटियां सौंधी ,
    करे इन्तजार क्यों कोई, मज़ा है ताज़ा खाने  का
प्रतीक्षा एक परीक्षा है, नहीं अब झेल सकते हम,
     बिछे पकवान आगे हो,नहीं खाओ, जी ललचाये
तकल्लुफ के ही चक्कर में ,रहे है कितने ही भूखे ,
    गए थे खाने दावत पर ,परांठे आ के   घर   खाये
तभी से ये कसम खा ली,खुले खाना तो झट खालो,
    बचोगे भीड़ से भी तुम ,और खाना भी गरम  होगा
इसलिए मौका मत चूको,समझदारी इसी में है,
      मज़ा  खाने का वो  लेगा , जो थोड़ा  बेशरम   होगा
 
  मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मॉडर्न आशीर्वाद

          मॉडर्न आशीर्वाद

झुक कर ,छूकर के चरण कहा ,पोती ने ये दादी माँ से
दो ऐसा आशीर्वाद मुझे, जीवन गुजरे ,सुख ,सुविधा से
क्या आशीर्वाद इसे मैं दूँ, दादी  के  मन , असमंजसता
'दूधों नहाओ और पूतों फलो ',ये आशीर्वाद न अब फलता
है  श्राप सृदश्य ,कहूँ यदि हो,'अष्ठम  पुत्रम  सौभाग्यवती
दूँ आशीर्वाद  इस  तरह  का   , मेरी ना  मारी गयी   मती 
इसलिए  एकदम ,मैं  मॉडर्न , देती हूँ आशीर्वाद   तुझे
स्मार्ट  फोन की  तरह मिले, जीवनसाथी ,स्मार्ट  तुझे
जो हरदम साथ रहे तेरे  और पूरी  तेरी  हर  चाह करे
ऊँगली के नाच  इशारों पर ,तुझ संग जीवन  निर्वाह करे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, May 13, 2015

वादे और हक़ीक़त

          वादे और हक़ीक़त

मैं कहता था तुम्हारी मांग ,तारों से सजाऊंगा ,
पढ़ी साइंस जब मैंने और ये बात जब जानी ,
कि हर एक तारा ही अपना  ,अलग भूखंड  होता है ,
             सितारों से तुम्हारी मांग भरना मैं ,भुला बैठा
सजा करके मैं पलकों में ,रखूंगा तेरी तस्वीरें,
बड़ा ही बावरा था मैं ,जो कहता बात नामुमकिन ,
ज़रा सी किरकिरी भी ,आँख में है  दर्द भर देती ,
       बिठा के तुझको पलकों में,प्यार करना भुला बैठा  
तेरे खातिर मैं इस दिल में ,आशियाना बनाऊंगा ,
तुझे रानी बना कर के ,वहीँ पर मैं  बिठाऊंगा ,
कहाजब डॉक्टर ने दिल के ,ये क्या बकवास करते हो,
          नहीं रह पाओगे ज़िंदा ,वो वादा भी भुला बैठा
मैं सीना तान कर के प्यार से ,करता था ये वादे ,
अगरजो तुम कहो तुम पर, मैं अपनी जां निसार करदूं,
मुझे मालूम था कि ये कभी भी तुम न चाहोगी   ,
             इसी विश्वास से ही मैं ,  ये सब बातें बना बैठा
चलो अब हो गयी शादी ,तो अब हो जाएँ प्रेक्टिकल,
छोड़ सपनो की दुनियां को,जमीं पर अब उतर आएं ,
आशिक़ी में किये वादे , सभी बकवास  होते है,
   पता ना क्या क्या बक देते,जवानी की हम मस्ती में
बड़ी रंगीन  बातें थी,मुंगेरी लाल के सपने ,
हक़ीक़त जिंदगी की अब ,समझ ही लें तो अच्छा है ,
मुझे कर नौकरी ,करना कमाई, चलाना घर है ,
          तुम्हे भी चूल्हे चौके में और फंसना है गृहस्थी  में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

इंटीरियर बदल डाले

            इंटीरियर  बदल डाले

हमारा एक्सटीरियर तो ,बदलना अब बड़ा मुश्किल ,
       फरक कुछ भी नहीं पड़ता ,भले गोरे  हो  या काले
हमें कुछ चेंज लाना है और घर अपना सजाना है ,
       चलो इंटीरियर ही फिर ,हम इस घर का बदल डाले
 दिलों की जिन दीवारों पर ,टंगी है भावना कलुषित
 प्रेम की पेंटिंग  लटका ,  करें वो जगहें   आभूषित
वो उस टेबल के कोने में ,पड़ा जो नकली गुलदस्ता,
      उसे हम ताज़ा फूलों की , महक  से फिर सजा डालें 
      चलो इन्टेरियर ही फिर ,हम इस घर का , बदल डालें
पलंग के सिरहाने की ,दिशा पूरब मुखी कर दें
चैन से नींद आएगी  ,चलो खुद को सुखी कर दें
बड़ी मटमैली सी लगती ,पुरानीसी ,घिसी चादर,
         कोई   रंगीन फूलों की  नयी चादर  वहां डालें
       चलो इंटीरियर ही फिर ,हम इस घर का बदल डालें 
बड़ा गंभीर चुप चुप सा ,बना माहौल  है बासी
खोल दें  खिड़की दरवाजे ,हवा आने दें हम ताज़ी
पडी है बंद जो जो भी ,टंगी दीवार की घड़ियाँ ,
       उन्हें फिर से नयी गति दें,और नूतन 'सेल'हम डालें
       चलो इन्टेरियर ही फिर ,इस घर का हम बदल डालें
बड़ी ही बेतरीबी से  ,है घर सारा  यूं ही बिखरा 
बुहारें गंदगी सारी , कहीं भी ना दिखे कचरा
गर्म मिजाज मौसम मे,लगे है सूखने पौधे  ,
   उन्हें  सींचें ,दें   नवजीवन ,और पानी वहां डालें
   चलो इंटीरियर ही फिर,इस घर का हम बदल डालें  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

एक पार्टी वर्कर की व्यथा

         एक  पार्टी वर्कर की व्यथा

न जाने कौन सा चारा ,चरा था उसने छप्पन दिन ,
              जुगाली कर रहा है अब, रोज ही है वो रम्भाता
बड़ी मजबूती पांवों में ,आई है थाईलैंड  जाकर,
               कोई भी करने पदयात्रा ,वो अक्सर ही निकल जाता
करी बैंकॉक  मस्ती,अकेले ही अकेले सब ,
                 नहीं तब याद आयी पार्टी या फिर पार्टी के वर्कर,
न जाने कौन सी बूटी ,है खाई ,आया इतना बल,
                जेठ की गर्मियों में भी, हमें पदयात्रा    करवाता

घोटू

Monday, May 11, 2015

वो कौन है ?

          वो कौन है ?

वो जब आती ,नहीं रूकती ,
              सभी को जाना पड़ता है
ये है दस्तूर कुदरत का ,
              निभाना सबको पड़ता है
ये दो बहने गजब की है,
              अजब इनका फ़साना है
एक इक बार जीवन में ,
              दूजी आये रोजाना है
एक आती ,संग ले जाती,
            सभी को गमजदा करती
एक आ चैन देती है,
             तबियत खुशनुमा करती
एक से लोग डरते है ,
              वो ना आये तो अच्छा है
एक आ देती राहत है ,
              वो आये सबकी इच्छा है
एक चुपके से  आती है,
              किसी को ना नज़र आये
एक को चाहते सब है,
               मगर ना देखना चाहे
एक आती,मिले मुक्ति,
               ये उसका लक्ष्य  होता है
एक के वास्ते घर में,
               अलग एक कक्ष  होता है
जो आती एक बार ही है ,
              इस जीवन में,वो है मृत्यूं
जो आती रोज ,वो क्या है,
              समझता मै ,समझता तू

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

हसरत और हक़ीक़त

       हसरत और हक़ीक़त

चाहता था कि बन जाऊं ,खिलाड़ी एक मै  बेहतर
बनू या फिर कोई एक्टर ,कला के दिखलाऊं जौहर
या फिर बन जाऊं मैं नेता,मुझे था बोलना  आता
या बिजनेसमेन बन जाऊं ,कमा जो ढेर सा लाता
मगर किस्मत के चक्कर में ,नहीं कुछ ऐसा बन पाया
हुई शादी,  मिली बीबी  ,रह  गया बन  के   चौपाया
बना ऐसा खिलाड़ी हूँ,  खेलता हाथों किस्मत के
रोज बनता हूँ मै एक्टर , दिखाता रंग नाटक के
बीबी ,बच्चों को,नेता बन ,रोज देता हूँ मैं भाषण
जल्द अच्छे दिन आएंगे ,दिया करता हूँ आश्वासन
 गृहस्थी जो चलाना है  , कमाना  भी जरूरी  है
बन गया हूँ मैं बिजनेस मेन ,हुई सब इच्छा पूरी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पिताजी की डाट

         पिताजी की डाट

हमें है याद बचपन में ,पिता का खौफ खाते थे
कोई हो काम करवाना  तो अम्मा को पटाते थे
बहुत डरते थे और एकदिन गजब की डाट खाई थी
वजह  तो याद ना लेकिन,हुई अच्छी ठुकाई थी
मगर वो डाट ,बन कर सीख ,हमें है टोकती रहती
गलत कुछ भी करे हम तो ,वो हमको रोकती रहती
प्यार से दे नसीहत अम्मा ,भी वो बात कहती थी
मगर झट भूल जाते थे , नहीं कुछ  याद रहती  थी
 पिता ने डाट कर के  ,पढ़ाया कुछ पाठ   ऐसा  है
असर जिसका इस जीवन में ,अभी तक है ,हमेशा है
भले ही बात तीखी हो , सदा पर याद है  आती
बिना कड़वी दवा खाए ,बिमारी है नहीं जाती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, May 8, 2015

मेरी माँ

          मेरी  माँ

सल भरा मुंह पोपला  सा,धवलकेशा ,सुन्दरी है
 भले धुंधली हुई आँखे ,मगर ममता से भरी   है
स्वाभमानी ,है पुरानी,आन वो ही,शान वो ही,
आज पीड़ित हुई,जिसने ,पीर सबकी ही हरी है
उम्र परिलक्षित बदन पर,और काया  हुई जर्जर,
बुरा चाहे कोई माने, बात वो करती    खरी है
प्रार्थना है यही ईश्वर ,उसका साया रहे सर पर ,
उसकी झोली,प्यार ,आशीर्वाद  से हरदम भरी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तरकारी और इंसान

                तरकारी और इंसान

लोग कुछ गोल बेंगन से ,बिना पेंदी के होते है ,
   चमकती प्यारी सी रंगत और सर पर ताज चढ़ता है
कहीं पर वो नहीं टिकते ,इसलिए आग पर सिकते ,
    भून  कर के ,मसल करके ,बनाया जाता भड़ता  है
बड़ी प्यारी ,हरी भिन्डी ,जनानी उँगलियों जैसी ,
    बिचारी चीरी  जाती ,भर मसाला, स्वाद दिखती  है
आम पक ,होते है मीठे ,मगर वो टिक नहीं पाते ,
      केरियां कच्ची कट कर भी,बनी अचार ,टिकती है
तरोई हो या हो लौकी ,नरम,कमनीय होती है ,
     प्यार का ताप  पाते ही ,पका करती है  मतवाली
कटीली कोई कटहल सी ,जो काटो तो चिपकती है,
    बढ़ाती सबकी लज्जत है  , कोई नीबू सी रसवाली 
बड़ा बेडौल अदरक पर ,गुणों की खान होता है ,
     बड़ी सेक्सी ,हरी मिरची ,लोग खा सिसियाते है
करेले में है कड़वापन ,'शुगर'का वो मगर दुश्मन,
     भले ही खुरदुरा है तन   , स्वाद  ले लोग खाते है
बड़ा ढब्बू सा है कद्दू ,मगर है बंद मुट्ठी सा,
     वो ताज़ा ही रहा करता ,जब तलक बंद रहता है
और धनिया ,पुदीना भी शहादत देते जब अपनी ,
           और पिसते है बन चटनी ,तभी आनन्द  रहता है
इन्ही सब्जी से हम सब है ,हरेक की है अलग सूरत ,
    हरेक की है अलग फितरत, सभी में कुछ न कुछ  गुण है
कोई आगे है है जाता बढ़ ,कोई बेचारा जाता सड़ ,
      कौन किस काम में बेहतर,गुणी लोगो को मालूम  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

आशिक़ी

              आशिक़ी

आशक़ी का जूनून इंसां पे ,होता जब भी है हावी ,
    शराफत जाती तेल लेने और इज्जत स्वाह हो जाती
नतीजा ये निकलता है ,कोई बर्बाद हो जाता ,
      किसी की डूबती किश्ती ,किसी की वाह हो जाती

घोटू

फ़िल्मी रीत -हिन्दुस्तानी

            फ़िल्मी रीत -हिन्दुस्तानी

'घोटू'फिल्मिस्तान में  ,दो की चले दुकान
छाया इनका राज है,एक कपूर,एक खान
एक कपूर एक खान ,इन्ही की यहाँ बपौती
बरसों  से छाये , दादा   से  लेकर पोती
इंडस्ट्री पर ,कब्जा जमा हुआ है इनका
और ज़माना भी कायल है ,इनके फन का

घोटू

एक सलमान-दो दो ज्ञान

           एक सलमान-दो दो ज्ञान
                             १
   भले ही है ,भलामानस ,है बिरला  एक लाखों में
   बड़ा ही है दबंग दिल से ,बसा कितनी ही आँखों में ,
   नशे में क्या बुराई है ,कोई सलमान से  पूछे ,
  जमानत जो नहीं मिलती,तो होता बंद सलाखों में
                              २
लड़ाया इश्क़ कितनो से ,चलाये तीर नज़रों के ,
         किसी को मारा थप्पड़ तो ,पराई हो  गयी  कोई
बहुत सी लड़कियां गोरी,अभी भी मरती है उस पर ,
    चल रहा है अभी तक तो ,सिलसिला वो का ही वोही
बड़ा ही है दबंग बन्दा ,रंगे है सबके रंग बन्दा ,
      किसी भी काली लड़की पर ,नज़र उसने नहीं डाली
पड़ गया गलती से पीछे ,वो एक काली हिरणिया के,
             कटाये जेल के चक्कर   ,बुरी हालत बना डाली

घोटू

Wednesday, May 6, 2015

फ्लर्टिंग

 
             फ्लर्टिंग
                   १
मज़ा लैला और मजनू सी,मोहब्बत में नहीं आता
मज़ा मियां और बीबी की ,सोहबत में नहीं  आता
चुगे या ना चुगे चिड़िया ,रहो तुम डालते दाना ,
मज़ा जो आता फ्लर्टिंग में ,कहीं पर भी नहीं आता
                           २
तुम्हारी हरकतों से वो,अगर जो थोड़ा हंसती है
कर रहे फ्लर्ट तुम उससे ,भली भांति समझती है
हंसी तो फंस गयी है वो,ग़लतफ़हमी में मत रहना ,
मज़ा उसको भी आता है ,वो टाइम पास करती है
                             ३
देख कर हुस्न मतवाला ,तुम्हारी बांछें जाती खिल
लिया जो देख बीबी ने ,बड़ी हो जाएगी   मुश्किल
जवानी देखते उसकी ,बुढ़ापा  अपना भी देखो ,
कहेगी जब तुम्हे अंकल,जलेगा फिर तुम्हारा दिल
                           ४
ये तुम्हारा दीवानापन ,ज़माना ताकता  होगा
फलूदा होगी इज्जत जो,गये पकड़े,पता होगा
बड़ा छुप छुप के मस्ती में ,इधर तुम मौज लेते हो,
उधर घर में तुम्हारे भी ,पड़ोसी झांकता होगा
                         ५
लड़कियां ना  करती  ,सीटियां यों बजाने से
रहो तुम मारते लाइन ,यूं ही पगले , दीवाने से 
मिठाई की दुकानो में ,सिरफ़ तकने से क्या होगा ,
भरेगा पेट तुम्हारा  ,रोटियां घर की  खाने से
                      ६
रहो तुम नाचते यूं ही,वो हंस हंस कर मज़ा लेगी
करोगे कोई ख्वाइश तो ,अंगूठा वो दिखा  देगी
लड़कियों को पटाने का ,बड़ा सिंपल तरीका  है,
उसे मत लिफ्ट दो बिलकुल ,वो खुद ही घास डालेगी
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सरोकार

            सरोकार

हमारी शक्शियत से,अदब से ,पढाई से ,
नहीं है,जिसको ज़रा सा भी सरोकार नहीं
उन्होंने इसलिए है किया नापसंद हमें ,
हमारे  पास में बँगला नहीं है,कार नहीं
हमारा कोई अकाउंट' फेस बुक 'में नहीं,
न ही  लेटेस्ट डिज़ाइन का पास मोबाईल
इस तरह पुराने ढचरे के कोई इन्सां संग,
जिंदगी काट नहीं पाएंगे ,होगी मुश्किल 
न तो पिज़्ज़ा ,नहीं बर्गर ,न  खाना होटल में ,
नहीं है शौक हमको महफ़िलों में पीने का
नहीं आता थिरकना  हमको डी जे की धुन पर ,
बड़ा ही दकियानूसी है तरीका जीने का
कहा हमने कि तुम आटा भी गूंध ना पाती ,
पका के घर में रोटी किस तरह खिलाओगी
एक चलता है तेज,दूसरा धीमा पहिया ,
गृहस्थी की भला गाडी क्या चला पाओगी
ऐसी शादी से तो हम अच्छे कंवारे ही है ,
ऐसी बीबी की हमें कोई भी दरकार नहीं
सिर्फ अपने ही मतलब की सोच रखती हो,
अपने घरवालों से है जिसको सरोकार नहीं

घोटू

साहसी इंसान

            साहसी इंसान

स्कूल  में पढ़ी  ,एक कविता  ,
'अबु बेन एडम 'नामक व्यक्ति की कहानी थी
बड़ी ही सुहानी थी
वो एक रात देखता है कि एक फरिश्ता ,
एक फेहरिस्त बना रहा था
खुदा जिनसे प्यार करता है,
उनके नाम गिना रहा था
अबु ने उससे पूछा ,
क्या उसमे उसका भी नाम कहीं लिखा है
फरिश्ता बोला ,
अभी तक तो नहीं दिखा है
तब 'अबु'उस फ़रिश्ते से फ़रियाद करता है
मेरा नाम उस फेहरिस्त में जरूर शामिल करना ,
जो खुदा के बन्दों से प्यार करता है
दूसरी रात उसको फिर वो फरिश्ता नज़र आया,
और अपने साथ एक नयी फेहरिस्त लाया
अबु ने देखा,नयी  फेहरिस्त में ,
सबसे ऊपर उसका की नाम था
खुदा उससे करता है प्यार ,
जो उसके बन्दों से करता है प्यार ,
ये पैगाम था
 एक रात मैंने भी सपने में देखा ,
एक फरिश्ता साहसी लोगों की ,
एक फेहरिस्त बना रहा था
और उसमे मेरा नाम ,
सबसे ऊपर आरहा था 
मैंने पूछ ही लिया ,फ़रिश्ते भाई
न तो मैंने लड़ी है आजादी की लड़ाई
न ही साहस का कोई काम किया है,
और न एवरेस्ट पर की है चढ़ाई,
नहीं कोई विशेष करतब दिखलाया 
फिर मेरा नाम इस फेहरिस्त  में ,
सब से ऊपर  कैसे आया ?
फ़रिश्ते ने समझाया
शादी करके ,पत्नी के साथ
जो बन्दा निभा ले पूरे  बरस पचास
और फिर भी उसके चेहरे पर मुस्कान है
खुदा की नज़रों में ,
सबसे साहसी वो ही इंसान है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

साडू भाई

              साडू  भाई

एक ही कुए से,बाल्टी भर भर के ,
     प्यास को जिन्होंने ,अपनी बुझाया है
एक ही चूल्हे से,लेकर के अंगारा,
    सिगड़ियां अपनी को,जिनने  जलाया है
एक ही चक्की का,पिसा हुआ आटा और ,
      एक  हलवाई की ही,  खाते मिठाई    है         
एक ही दूकान पर,ठगे गए दो ग्राहक,
       आपस में   कहलाते, वो साडू भाई    है

घोटू

Tuesday, May 5, 2015

औरतों के मज़े

            औरतों के मज़े

औरतें ,महिला होने का , मज़ा लेती हमेशा है ,
        वो 'लेडीज फस्ट 'कह कर के,सदा 'प्रिफरेंस 'पाती है
आदमी पिसता है दिन भर,कमाई कर के लाता है ,
        मज़े से घर में बैठी ये ,मौज मस्ती  मनाती    है
रिज़र्व सीटें इलेक्शन में,बसों में भी अलग सीटें,
              रेलवे में अलग डिब्बा ,मर्द जिसमे न घुस पाता
मर्द के साथ हर डब्बे में वो कर सकती है ट्रेवल ,
          काम कोई हो ,लेडीज़ को,दिया प्रिफरेंस है  जाता
शान से वस्त्र मर्दों के ,पहन कर  वो है  इतराती ,
           आदमी वस्त्र औरत के,पहन लेकिन नहीं पाता
 हमेशा औरतें ही तो ,कहांती घर की है रानी ,
           उम्र भर आदमी पिसता ,मगर नौकर ही कहलाता
आदमी वर्षों मेहनत कर,पढाई कर ,बने  डाक्टर ,
           औरतें ब्याह डाक्टर को,कहाया करती डाक्टरनी
अगर है वो जो फूहड़ तो ,बड़ा ही अव्यवस्थित घर,
            मगर घर स्वर्ग बन जाता ,सुशीला गर जो हो घरनी
औरतें कितनी भी काली,है 'फेयर सेक्स'कहलाती ,
             सुदर्शन गोरे पुरुषों संग ,नहीं इन्साफ होता है
वो हमको घूर कर देखें,ज़माना कुछ नहीं कहता ,
             नज़र भर देख भी लें हम,तो कहते पाप होता है
खुदा  ने मर्दों को दाढ़ी दी,शेविंग की मुसीबत दी ,
              और औरत के गालों को,बड़ा चिकना बनाया है
किधर से भी पकड़ लो तुम ,हमेशा वार करता है ,
            उनके हथियार बेलन ने ,सितम मर्दों पे  ढाया है
पुरुष को कोई बिरला ही ,देवता कहने वाला है,
             औरते तो हमेशा  ही ,कहाया करती है देवी
विष्णुजी और ब्रह्मा के ,बहुत कम लोग पूजक है,
           लक्ष्मी,सरस्वतीजी की ,मगर दुनिया सभी सेवी
  न  जाने कौन सा हुनर ,दिया है भर विधाता ने ,
           औरतों के इशारों पर, आदमी नाच  करता  है
भले ही शेर बन के डांटता है सबको दफ्तर में ,   
           मगर घर पर ,बना बिल्ली,सदा बीबी से डरता है
पड़ गयी जो भी पल्ले है ,निभानी पड़ती है सबको ,
                  भले सीधी  या टेढ़ी हो,भले गोरी हो या काली
हज़ारों रूप है उसके ,कभी माँ है ,कभी बहना ,
               कभी घरवाली है या फिर ,लुभाती बन के वो साली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अमोघ अस्त्र

             अमोघ अस्त्र

शांतिकाल में'किचन अस्त्र'यह ,पेट भरा करता है सबका
इसमें कोई धार नहीं है,लेकिन है हथियार गजब का
दोनो तरफ ,किधर से भी तुम ,पकड़ो इसे ,वार करता है
है अमोघ यह शस्त्र निराला,हर बन्दा इससे  डरता है
जिसको धारण करके नारी ,कभी अन्नपूर्णा बन जाती
और कोप में, हाथों  में ले, झांसी  की  रानी  कहलाती
वैसे लकड़ी का टुकड़ा है ,लेकिन इतना पावरफुल है
लोग इसे 'बेलन'कहते है, करता सबकी बत्ती गुल है

घोटू   

Saturday, May 2, 2015

नज़ाकत या आफत

        नज़ाकत या आफत

कहा हमने तुम्हारे हाथ,कोमल और नाजुक है ,
        करोगे काम घर का तो,नज़ाकत  भाग जायेगी
उन्हें मेंहदी लगाकर के,सजाकर के ही तुम रखना,
        नहीं तो कमल जैसी पंखुड़ियां ,कुम्हला न जाएगी
कहा उनने ,नजाकत ना ,इन हाथों में बड़ा दम है,
                 ज़रा छू के तो देखो तुम,पसीने छूट जाएंगे ,
पड़ेंगे गाल पर तो मुंह तुम्हारा लाल कर देंगे,
              उँगलियाँ पाँचों की पांचो ,उभर गालों पे आएंगी

घोटू

Friday, May 1, 2015

पिसाई ही पिसाई

         पिसाई ही पिसाई
आदमी यूं तो रहता है ,अकेला मस्त मस्ती में
जानता है उसे पिसना ,पडेगा  फंस गृहस्थी में
मगर वो ढोल बाजे से,रचाता अपनी है शादी
और उसका बेंड बजता है,उमर भर की है बर्बादी
गृहस्थी  और दफ्तर में,हमेशा रहता  वो घिसता
बहू और सास झगडे भी ,बिचारा आदमी पिसता
गेंहूँ,मक्की जब पिसते है ,तभी रोटी है बन पाती
मसाले पिसते, खाने में ,तभी लज्जत है आ पाती
 पुदीना और धनिया पिस के,चटनी का मज़ा देते
रचा कर के पिसी मेंहदी ,वो हाथों को सजा  लेते
 और  मंहगाई के मारे ,आप और हम पिसे  जाते
साथ में गेंहू के सारे ,बिचारे घुन भी पिस   जाते
पिसाई से न ,लज्जत ही ,मगर बल भी है बढ़ जाता
अणु पिसता, बन परमाणु ,बड़ा बलवान बन जाता
पीसते दांत से खाना ,तभी हम है ,निगल पाते
हमें गुस्सा जब आता है ,पीस  कर दांत ,रह जाते
कहा 'घोटू' ने ये हंस कर ,मज़ा जीने का है पिस कर
है चन्दन एक लकड़ी पर,सर पे चढ़ती है वो घिस कर

मदन मोहन बाहेती' घोटू'
 

वो

                        वो

कोई कहता है बदली है,गरजती है,बरसती है ,
            कोई कहता है बिजली है,जो गिरती तो गज़ब ढाती
बहुत दिलकश,बहुत सुन्दर,बहुत नाजुक,रंगीली है ,
            वो खुद है फूल,फूलों पर ,मगर तितली सी मंडराती
अजब अंदाज आँखों का ,कोई कहता है मछली सी,
            कोई कहता है हिरणी सी,समझ ही हम नहीं पाते
  गजब ढाते है उस पर लब ,बदलते रहते है जब तब,
             कभी पंखुड़ी गुलाबी है ,कभी अंगार  दहकाते
सजी है मोतियों जैसी ,चमकते दांत की माला ,
              दौड़ती काटने को पर ,कभी जब कटकटाती है
कोई कहता वो काँटा है,बड़ी  तीखी  चुभन इनकी,
              कोई कहता वो गुल है पर,हज़ारों गुल खिलाती है
है उनकी जुल्फ बदली सी ,चढ़ी रहती जो उनके सर ,
             बड़ी मुश्किल से वो उसको,कहीं कर पाती है बस में
गूंथ कर प्यारी सी चोंटी ,उन्हें लाती है काबू में,
               लटक कर दोनों कन्धों पर,लगे नागिन सी वो डसने
कोई कहता है हिरणी सी,मोरनी सी कहे कोई ,
               या उनकी चाल कों ,गजगामिनी  कोई बताता है
कमल की नाल सी बांहे ,कदलीस्तंभ जंघाएँ,
                फलों से है लदी डाली ,चमन सा तन , सुहाना  है
कोई कहता है चंदा है ,कोई कहता है सूरज है ,
                कभी नदिया सी लहराती,कभी ममता का निर्झर है
कोई कहता सहेली है,कोई कहता पहेली है,
                 वो क्या है और कैसी है,समझना तुम पे निर्भर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'