व्यथा कथा - 1
सपनो के कपडे ,सब के सब सिल गए
और बची रह गयी ,कतरन सी यादें
इन्ही चिंदियों की ,गुदड़ी को ओड ओड
करता हू प्रयास,बचने की ठिठुरन से
मैं एकाकीपन की
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व्यथा कथा - 2
पौधों को सींच सींच
रीत गए सब कूएँ
सागर में जल भरते
सूख गयीं सरिताएं
सूरज की ऊष्मा से
जाने कब उमड़ेंगे
घुमड़ घुमड़ घने मेघ
फिर से जल बरसाने
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व्यथा कथा - 3
समय की हांडी में
पाक गया सब कुछ
सबने मिल बाँट लिया
बची रह गयी बस
हांडी की कोने में थोड़ी सी खुरचन
चाहत है बस यही, ऐसा कुछ बन जाए
मेरी यह हांडी फिर से
द्रौपदी के अक्षय पात्र की तरह
लबालब भर जाए
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