छुपे रुस्तम
हम जमीन से जुड़े हुए हैं
पर पापुलर हैं जन-जन में
चाहे अमीर ,चाहे गरीब
हम मौजूद सबके भोजन में
मैं तो हूं छुपी हुई रुस्तम
मत समझो मैं मामूली हूं
बाहर से हरी भरी पत्ती
पर अंदर लंबी मूली हूं
छोटे पौधों सी मैं दिखती
पर अंदर मीठी गाजर हूं
मैं शलजम प्यारी रूप भरी
मैं गुण की खान चुकंदर हूं
माटी के अंदर छुपा हुआ
मैं आलू सबको भाता हूं
मैं निकल धरा से प्याज बना
भोजन का स्वाद बढ़ाता हूं
मैं गुणकारी सब पर भारी
भरा मसाला मैं गुण का
तो मैं हल्दी हूं हितकारी
मैं हूं तड़का लहसुन का
मैं तेल भरी, हूं मूंगफली ,
मिट्टी में पलकर हूं निखरी
मैं जमीकंद , मैं हूं अरबी
मैं शकरकंद हूं स्वाद भरी
हम सब धरती की माटी में
छुप कर रह कर है बड़े हुए
बाहर से दिखते घास फूस
पर अंदर गुण से भरे हुए
इसलिए किसी का बाह्य रूप
को देख ना कीमत आंको तुम
अगर परखना है गुण को
तो उसके अंदर झांको तुम
मदन मोहन बाहेती घोटू