एक पार्टी वर्कर की व्यथा
न जाने कौन सा चारा ,चरा था उसने छप्पन दिन ,
जुगाली कर रहा है अब, रोज ही है वो रम्भाता
बड़ी मजबूती पांवों में ,आई है थाईलैंड जाकर,
कोई भी करने पदयात्रा ,वो अक्सर ही निकल जाता
करी बैंकॉक मस्ती,अकेले ही अकेले सब ,
नहीं तब याद आयी पार्टी या फिर पार्टी के वर्कर,
न जाने कौन सी बूटी ,है खाई ,आया इतना बल,
जेठ की गर्मियों में भी, हमें पदयात्रा करवाता
घोटू
न जाने कौन सा चारा ,चरा था उसने छप्पन दिन ,
जुगाली कर रहा है अब, रोज ही है वो रम्भाता
बड़ी मजबूती पांवों में ,आई है थाईलैंड जाकर,
कोई भी करने पदयात्रा ,वो अक्सर ही निकल जाता
करी बैंकॉक मस्ती,अकेले ही अकेले सब ,
नहीं तब याद आयी पार्टी या फिर पार्टी के वर्कर,
न जाने कौन सी बूटी ,है खाई ,आया इतना बल,
जेठ की गर्मियों में भी, हमें पदयात्रा करवाता
घोटू
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