तरक्की का असर
कन्हैया ,छोरा गोकुल का ,द्वारिकाधीश जब बनता,
तरक्की का असर उस पर ,कुछ ऐसे है नज़र आता
बड़ा ही शीतल और पावन ,मधुर जल था जो जमुना का,
तरक्की ऐसी करता है , समन्दर खारा बन जाता
बिसरता नन्द बाबा को ,गाँव,गैया,ग्वालों को,
यशोदा मैया की ममता ,भी उस को याद ना रहती
उधर वो आठ पटरानी,संग मस्ती उड़ाता है ,
इधर है याद में उसकी ,तड़फती राधिका रहती
कभी जिन उँगलियों से वो ,बजाता बांसुरी धुन था ,
बचाने गाँव वालों को, उठाया जिस पे था गिरवर
उसी ऊँगली से अब उसकी ,सुदर्शन चक्र चलता है ,
बदल है किस तरह जाता ,आदमी कुछ तरक्की कर
कभी रणछोड़ बन कर के ,छोड़ मैदान जो भागा ,
वही अर्जुन से कहता है,लड़ो,पीछे हटो मत तुम
खिलाड़ी राजनीति का,भाई भाई को लड़वाता ,
मदद दोनों की करता है,जो भी जीते,उधर है हम
विपुल ऐश्वर्य जब पाता ,भुला देता है अपनो को,
शून्य संवेदना होती ,न रहता प्यार अंदर में
इस तरह की तरक्की से,जो बसती द्वारिका नगरी,
एक ना एक दिन निश्चित, डूबती है समन्दर में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कन्हैया ,छोरा गोकुल का ,द्वारिकाधीश जब बनता,
तरक्की का असर उस पर ,कुछ ऐसे है नज़र आता
बड़ा ही शीतल और पावन ,मधुर जल था जो जमुना का,
तरक्की ऐसी करता है , समन्दर खारा बन जाता
बिसरता नन्द बाबा को ,गाँव,गैया,ग्वालों को,
यशोदा मैया की ममता ,भी उस को याद ना रहती
उधर वो आठ पटरानी,संग मस्ती उड़ाता है ,
इधर है याद में उसकी ,तड़फती राधिका रहती
कभी जिन उँगलियों से वो ,बजाता बांसुरी धुन था ,
बचाने गाँव वालों को, उठाया जिस पे था गिरवर
उसी ऊँगली से अब उसकी ,सुदर्शन चक्र चलता है ,
बदल है किस तरह जाता ,आदमी कुछ तरक्की कर
कभी रणछोड़ बन कर के ,छोड़ मैदान जो भागा ,
वही अर्जुन से कहता है,लड़ो,पीछे हटो मत तुम
खिलाड़ी राजनीति का,भाई भाई को लड़वाता ,
मदद दोनों की करता है,जो भी जीते,उधर है हम
विपुल ऐश्वर्य जब पाता ,भुला देता है अपनो को,
शून्य संवेदना होती ,न रहता प्यार अंदर में
इस तरह की तरक्की से,जो बसती द्वारिका नगरी,
एक ना एक दिन निश्चित, डूबती है समन्दर में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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