वादे और हक़ीक़त
मैं कहता था तुम्हारी मांग ,तारों से सजाऊंगा ,
पढ़ी साइंस जब मैंने और ये बात जब जानी ,
कि हर एक तारा ही अपना ,अलग भूखंड होता है ,
सितारों से तुम्हारी मांग भरना मैं ,भुला बैठा
सजा करके मैं पलकों में ,रखूंगा तेरी तस्वीरें,
बड़ा ही बावरा था मैं ,जो कहता बात नामुमकिन ,
ज़रा सी किरकिरी भी ,आँख में है दर्द भर देती ,
बिठा के तुझको पलकों में,प्यार करना भुला बैठा
तेरे खातिर मैं इस दिल में ,आशियाना बनाऊंगा ,
तुझे रानी बना कर के ,वहीँ पर मैं बिठाऊंगा ,
कहाजब डॉक्टर ने दिल के ,ये क्या बकवास करते हो,
नहीं रह पाओगे ज़िंदा ,वो वादा भी भुला बैठा
मैं सीना तान कर के प्यार से ,करता था ये वादे ,
अगरजो तुम कहो तुम पर, मैं अपनी जां निसार करदूं,
मुझे मालूम था कि ये कभी भी तुम न चाहोगी ,
इसी विश्वास से ही मैं , ये सब बातें बना बैठा
चलो अब हो गयी शादी ,तो अब हो जाएँ प्रेक्टिकल,
छोड़ सपनो की दुनियां को,जमीं पर अब उतर आएं ,
आशिक़ी में किये वादे , सभी बकवास होते है,
पता ना क्या क्या बक देते,जवानी की हम मस्ती में
बड़ी रंगीन बातें थी,मुंगेरी लाल के सपने ,
हक़ीक़त जिंदगी की अब ,समझ ही लें तो अच्छा है ,
मुझे कर नौकरी ,करना कमाई, चलाना घर है ,
तुम्हे भी चूल्हे चौके में और फंसना है गृहस्थी में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैं कहता था तुम्हारी मांग ,तारों से सजाऊंगा ,
पढ़ी साइंस जब मैंने और ये बात जब जानी ,
कि हर एक तारा ही अपना ,अलग भूखंड होता है ,
सितारों से तुम्हारी मांग भरना मैं ,भुला बैठा
सजा करके मैं पलकों में ,रखूंगा तेरी तस्वीरें,
बड़ा ही बावरा था मैं ,जो कहता बात नामुमकिन ,
ज़रा सी किरकिरी भी ,आँख में है दर्द भर देती ,
बिठा के तुझको पलकों में,प्यार करना भुला बैठा
तेरे खातिर मैं इस दिल में ,आशियाना बनाऊंगा ,
तुझे रानी बना कर के ,वहीँ पर मैं बिठाऊंगा ,
कहाजब डॉक्टर ने दिल के ,ये क्या बकवास करते हो,
नहीं रह पाओगे ज़िंदा ,वो वादा भी भुला बैठा
मैं सीना तान कर के प्यार से ,करता था ये वादे ,
अगरजो तुम कहो तुम पर, मैं अपनी जां निसार करदूं,
मुझे मालूम था कि ये कभी भी तुम न चाहोगी ,
इसी विश्वास से ही मैं , ये सब बातें बना बैठा
चलो अब हो गयी शादी ,तो अब हो जाएँ प्रेक्टिकल,
छोड़ सपनो की दुनियां को,जमीं पर अब उतर आएं ,
आशिक़ी में किये वादे , सभी बकवास होते है,
पता ना क्या क्या बक देते,जवानी की हम मस्ती में
बड़ी रंगीन बातें थी,मुंगेरी लाल के सपने ,
हक़ीक़त जिंदगी की अब ,समझ ही लें तो अच्छा है ,
मुझे कर नौकरी ,करना कमाई, चलाना घर है ,
तुम्हे भी चूल्हे चौके में और फंसना है गृहस्थी में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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