Wednesday, March 30, 2011

तेरा चुम्बन

 तेरा चुम्बन
मन की प्यास बढ़ा देता है तेरा चुम्बन
तन में आग लगा देता है तेरा चुम्बन
नरम,मखमली,रक्तिम आभा,रस के प्याले
अक्षय मदिरा पात्र,मदभरे अधर तुम्हारे
छू उन्माद जगा देता है तेरा चुम्बन
तन में आग लगा देता है तेरा चुम्बन
तप्त कलश तेरे जब छूते मेरे तन को
होता मन बेचैन,मचलता मधुर मिलन को
प्रीतधार बरसा देता है तेरा चुम्बन
मेरा मन हर्षा देता है तेरा चुम्बन
मिलते तपते अधर,बड़ी ठंडक मिलती है
एक नयी उर्जा ,खुशबू मादक मिलती है
मन को बहला कर सहलाता तेरा चुम्बन
प्यार जगाता है  मदमाता तेरा चुम्बन
मेरे भाग जगा देता है तेरा चुम्बन
तन में आग लगा देता है तेरा चुम्बन

अचरज

   अचरज
एक पिरामिड मिश्र देश का,एक भारत का ताज महल है
ये दोनों ही बेमिसाल है,और  दुनिया  के   आश्चर्य है
दोनों का निर्माण कराया ,उनने जो तब करते शासन
कितने जन का खून पसीना,कितने मजदूरों का शोषण
लाखों का धन लुटा कोष से,सिर्फ इसलिए बनी ईमारत
उनके मरने पर दुनिया में,उनके शव रह सकें सुरक्षित
ये बन गए अजूबे लेकिन ,एक अजूबा सबसे भारी
जिनको खबर न अगले पल की,करते बरसों की तैयारी
इन पत्थर दिल राजाओं ने,रचे अजूबे ,जग नश्वर में
अपनी माटी की काया को,रखने पत्थर  संगमरमर में
अनजाने नियति नीयत से ,होनी होती बड़ी प्रबल है
एक पिरामिड मिश्र देश का,एक भारत का ताज महल है


Monday, March 28, 2011

ऐसी खूँटी एक चाहिये








ऐसी खूँटी एक चाहिये
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इतने दुःख,इतनी विपदायें
परेशनियाँ,दायें, बायें
सोवूं चैन से,इन्हें टांग कर,
ऐसी खूँटी एक चाहिये
कुछ ऐसी तकदीर मिली है
अपनों से ही पीर मिली है
लेप लगा कर ,दर्द मिटे सब
ऐसी बूंटी एक चाहिये
दह ,जलन,कटुता,बिमारी
हार ,जीत, चिंताएं सारी
जिसको पीकर बिसर जाए सब,
ऐसी घूंटी एक चाहिये
टूटे दिल को जो सहलाये
जीवन में आनंद जगाये
छुई मुई सी ,लाल ,मखमली
वीर बहूटी एक चाहिये





वणिक पुत्र

           
मैंने तुम्हारी महक को,
प्यार की ऊष्मा देकर
अधरों के वाष्प यन्त्र से,
इत्र बना कर,
दिल की शीशी में,एकत्रित कर लिया है,
ता कि उम्र भर खुशबू ले सकूँ
मैंने तुम्हारा यौवन रस,
मधुमख्खी कि तरह,
बूँद बूँद रसपान कर,
दिल के एक कोने में
मधुकोष बना कर,संचित कर लिया है,
ता कि जीवन भर ,रसपान कर सकूँ
मैंने तुम्हारे अंगूरी अधरों से,
तुम्हारी मादकता का आसवन कर
एकत्रित कि गयी मदिरा को,
पर्वतों के शिखरों में,छुपा कर भर दिया है
ताकि उम्र भर पी सकूँ
क्योंकि संचय करना,मेरा रक्त गुण है
मै एक वणिक पुत्र हूँ



Sunday, March 27, 2011

आ तेरा श्रृंगार करूँ मै

आ तेरा  श्रृंगार करूँ मै
तुझको जी भर प्यार करूँ मै
बूढा  तन,सल भरी उंगलियाँ,
हीरा जड़ित अंगूठी उनमे
दोपहरी की चमक आ गयी ,
हो जैसे ढलते सूरज में
जगमग मोती की लड़ियों से ,
आजा तेरी मांग भरूं  मै
आ तेरा श्रृंगार करूँ मै
बूढ़े हाथों की कलाई पर
स्वर्णिम कंगन ,खन खन करते
टहनी पर जैसे पलाश की
सुन्दर फूल केसरी झरते
इस पतझड़ के मौसम में भी
आ बासन्ती रंग भरूं मै
आ तेरा श्रृंगार करूँ मै
मणि माला का बोझ ग्रिव्हा पर,
और करघनी झुकी कमर में
नयी नवेली सी लगने का
शौक चढ़ा है ,बढ़ी उमर में
अपनी धुंधली सी आँखों से
आ तेरा दीदार करूँ मै
आ तेरा श्रृंगार करूँ मै




Saturday, March 19, 2011

खेलो होली

घरवालों संग खेलो होली ,घरवाली संग खेलो होली
साला तो शैतान बहुत है ,तुम साली संग खेलो होली
जिनको सदा देखते हो तुम ,हसरत भरी हुई नज़रों से
जवां पड़ोसन ,प्यारी समधन,दिलवाली संग खेलो होली
यूँ तो सलहज सहज नहीं है,बस होली का ही मौका है,
कस कर पकड़ो रंग लगा,मतवाली के संग खेलो होली
लेकर रंग भरी पिचकारी,तन को इतना गीला करदो,
चिपके वस्त्र दिखे सब कुछ उस छवि प्यारी संग खेलो होली

अबकी होली

अबकी होली में हो जाये,कुछ एसा अदभुत चमत्कार
 हो जाये भ्रष्टाचार स्वाहा, महगाई,झगड़े, लूटमार
सब लाज शर्म को छोड़ छाड़,हम करें प्रेम से छेड़ छाड़
गौरी के गोरे गालों पर ,अपने हाथों से मल गुलाल
जा लगे रंग,महके अनंग,हर अंग अंग हो सरोबार
इस मस्ती में,हर बस्ती में,बस जाये केवल प्यार प्यार
दुर्भाव हटे,कटुता सिमटे,हो भातृभाव का बस प्रचार
अबकी होली में हो जाये,कुछ एसा अदभुत चमत्कार

आओ होली मनाएं

आओ होली मनाएं
पहले दिन
पुरानी वेमन स्तायें
दुर्भावनाएं ,कटुता,और
बैरभाव की होली जलाएं
और दुसरे दिन
सदभावनाओं की गुलाल
भाईचारे का अबीर
और प्रेम के रंगों से
मिलजुल कर होली मनाएं






Tuesday, March 15, 2011

जल

            जल
होता है मानव शरीर में ,सत्तर प्रतिशत से ज्यादा जल
कल कल कर बहती सरिता सा,धीरे धीरे बहता हर पल
कई तरंगें उठती रहती ,जैसे सागर की हो लहरें
लेकिन शांति बनी रहती है ,मन के अन्दर जाकर गहरे
कभी भावना का जलसागर ,शांत सरोवर जैसा रहता
कभी बाढ़ जब आजाती है,तो फिर तोड़ कगारें बहता
लेकिन कुछ बातें होती है,जो की हिला देती अंतर को
तो उठती है लहर सुनामी,तहस नहस करती घर भर को
पूर्ण चन्द्र या चंद्रमुखी को,पास देख मन होता चंचल
होता है मानव शरीर में,सत्तर प्रतिशत से ज्यादा जल
,

Sunday, March 13, 2011

मै तृप्त हो गयी

      मै तृप्त हो गयी
प्यासा था तनमन अन्तरतर
तूने दिया अंजुरी भर जल
          मै तृप्त हो गयी
मेघा घिर घिर कर आते थे
अविरल जल भी बरसाते थे
   मै रहती प्यासी की प्यासी
मेरे मन में अँधियारा था
भले चांदनी उजियारा था
मै अपूर्ण, थी पूरनमासी
तुमने जला प्रेम की बाती
जगमग रातें की मदमाती
            मै तृप्त हो गयी
इस जीवन में सूनापन था
चुप चुप फीका सा जीवन था
      तुम आये तो स्वाद आ गया
तुमने आकर फूल खिलाये
बगिया महकी,हम मुस्काए
      एक नया उन्माद छा गया
जब तुम्हारी खुशबू महकी
तुम भी बहके ,मै भी बहकी
         मै तृप्त हो गयी

विनाश लीला

       
खंड खंड  भूखंड  हो गया
उदधि भी उद्दंड हो गया
ऐसी लहरें आई सुनामी
 सभी तरफ पानी ही पानी
प्रलय नहीं महाप्रलय आ गया
कैसा हाहाकार  छा गया
कांपा धरती का अन्तरतर
लहरों ने भी उठा लिया सर
तिनके जैसे सभी बह गए
घर मकान और किले ढह गए
जब प्रकृति ने कोप दिखाया
तो  जर्रा जर्रा   थर्राया
एसा था कुदरत का तांडव
तिनका तिनका बिखरा वैभव
रूप धरा अग्नि ने भीषण
परमाणु का हुआ विकिरण
जब कांपी जापानी धरती
मानवता थी आहें भरती
जहाँ कभी प्रगति ,विकास था
 सर्वनाश ही सर्वनाश  था
ऐसी विपदा आई भयंकर
उगते सूरज की धरती पर
प्रगति पर प्रकृति है भारी
बेबस मानव की लाचारी

 


Sunday, March 6, 2011

,थकान,थकान, थकान


मचलता  है मन
देखने को दुनिया
पार कर सातों समंदर
छू लूं नये आसमान
यूरोप, अमेरिका
आस्ट्रेलिया, अफ्रीका
थाईलैंड,कनाडा
ग्रीस,रूस,इरान
 आइफ़िल टॉवर की ऊँचाई
चीन की दीवार
मिश्र के पिरेमिड
दिसनिलैंड की दहलाती उड़ान
मियामी के बीच
बहामा का क्रूज़
नियाग्रा का फाल
स्विज़र लैंड के पहाड़ों की ढलान
नये नये  देश
नया नया परिवेश
इशारों में बात चीत
अलग अलग खानपान
बड़ा मज़ा आता है
पर ये क्यों होता है
हर आनंद दायक अनुभूति के बाद
चढ़  जाती है,थकान,थकान, थकान