Sunday, March 13, 2011

मै तृप्त हो गयी

      मै तृप्त हो गयी
प्यासा था तनमन अन्तरतर
तूने दिया अंजुरी भर जल
          मै तृप्त हो गयी
मेघा घिर घिर कर आते थे
अविरल जल भी बरसाते थे
   मै रहती प्यासी की प्यासी
मेरे मन में अँधियारा था
भले चांदनी उजियारा था
मै अपूर्ण, थी पूरनमासी
तुमने जला प्रेम की बाती
जगमग रातें की मदमाती
            मै तृप्त हो गयी
इस जीवन में सूनापन था
चुप चुप फीका सा जीवन था
      तुम आये तो स्वाद आ गया
तुमने आकर फूल खिलाये
बगिया महकी,हम मुस्काए
      एक नया उन्माद छा गया
जब तुम्हारी खुशबू महकी
तुम भी बहके ,मै भी बहकी
         मै तृप्त हो गयी

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