Tuesday, April 24, 2012

मनोरमा-गोपाल -मिलन गाथा
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आगर में थी खिली
एक नन्ही सी कली
मनोरमा था नाम
करती घर के काम
रखती चीज सहेज
पढने में थी तेज
अभिनय,वाद विवाद
सबमे थी उस्ताद
शीतल,शांत स्वभाव
सबके प्रति लगाव
मन में लगन,उमंग
बढ़ी समय के संग
लगा सोलहवां साल
माँ को आया ख्याल
मिले सही जो साथ
करदें पीले  हाथ
किस्मत का था लेखा
गोपाल जी ने देखा
तो झट से कर 'हाँ' दी
फिर जल्द हो गयी शादी
लगन बहुत पढने की
और इच्छा थी बढ़ने की
अपनी जिद पर अड़ी
वो एम .ए. तक पढ़ी
और कम ना थे पिया
उनने सी.ए.  किया
फिर विकसा गुलदस्ता
हुए अतुल और ममता
पाकर  के ये निधियां
उनकी बढ़ी गतिविधियाँ
सामजिक कार्यों में
रूचि ले ली दोनों ने
एसा बाधा  लगाव
उनने लड़ा  चुनाव
बन लायन के गवर्नर
प्रेसिडेंट ऑफ़ चेंबर
लगे प्रसिद्धि पाने
और इधर मनोरमा  ने
माहेश्वरी सभा के
सेकेट्री पद पाके
पाया अपना लक्ष्य
बन कर के अध्यक्ष्य
फिर वो आगे आयी
नारी चेतना जगायी
है ये बात गर्व की
इनके मिलन पर्व की
स्वर्ण जयंती   आयी
इनको बहुत  बधाई
यही कामना  मन में
सुख बरसे जीवन में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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