उम्र बुढापे की कमाल है
बचपन में मन होता निश्छल
हंसता एक पल,रोता एक पल
जब अबोध बालक मुस्काता
उस पर प्यार सभी को आता
फिर किशोर वय में भी अक्सर
बोझ पढाई का है मन पर
और जवानी है जब आती
जीवन में खुशिया छा जाती
कैसे खायें और कमायें
मन में रहती है चिंतायें
ऐसे ही कट जाता यौवन
बहुत तरंगित तन,चिंतित मन
करते हम प्रयास है जी भर
बस जाए संतानों के घर
हमें बुढ़ापा आते आते
सबके अपने घर बस जाते
घर में छा जाता सूनापन
खाली खाली लगता जीवन
तन पड़ने लगता है ढीला
हो जाता मन बहुत रंगीला
उम्र बुढ़ापे की जब आती
असली तभी जवानी छाती
मन चाहे करना धमाल है
उम्र बुढ़ापे की भी कमाल है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
बचपन में मन होता निश्छल
हंसता एक पल,रोता एक पल
जब अबोध बालक मुस्काता
उस पर प्यार सभी को आता
फिर किशोर वय में भी अक्सर
बोझ पढाई का है मन पर
और जवानी है जब आती
जीवन में खुशिया छा जाती
कैसे खायें और कमायें
मन में रहती है चिंतायें
ऐसे ही कट जाता यौवन
बहुत तरंगित तन,चिंतित मन
करते हम प्रयास है जी भर
बस जाए संतानों के घर
हमें बुढ़ापा आते आते
सबके अपने घर बस जाते
घर में छा जाता सूनापन
खाली खाली लगता जीवन
तन पड़ने लगता है ढीला
हो जाता मन बहुत रंगीला
उम्र बुढ़ापे की जब आती
असली तभी जवानी छाती
मन चाहे करना धमाल है
उम्र बुढ़ापे की भी कमाल है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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