प्रकृति और पर्यावरण
क्या तुमने आवाज सुनी है कभी हवा की ,
आप कभी क्या तूफ़ानो से भी खेलें है
तपती धूप भरी गर्मी की दोपहरी में,
कभी थपेड़े तुमने क्या लू के झेले है
क्या उद्वेलित सागर की ऊंची लहरों में ,
कभी आपकी नैया ,डगमग कर डोली है
अन्ध तमसमय निशा,अकेले वीराने में ,
दिलकी धड़कन क्या डर कर धक् धक् बोली है
क्या तुमने त्रासदी बाढ़ वाली झेली है,
आसपास की नदियां जब उफनाई होगी
क्या अग्नी की लपटों का प्रकोप देखा है ,
उसकी झुलस कभी तुम तक भी आयी होगी
ये प्रकृति जो तुम्हे प्यार से पाल रही है ,
देती अन्न ,नीर,वायु तुमको दुलरा के
यदि ना जो तुम उसका पूरा ख्याल रखोगे ,
तो वो तुम्हे ख़तम कर देगी ,प्रलय मचा के
इसीलिए ये आवश्यक है तुमको,हमको,
पर्यावरण बचाना है ,कर दूर प्रदूषण
वृक्ष बचाओ,हवा और जल शुद्ध रखो तुम,
वरना दूभर हो जाएगा,जीना जीवन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
क्या तुमने आवाज सुनी है कभी हवा की ,
आप कभी क्या तूफ़ानो से भी खेलें है
तपती धूप भरी गर्मी की दोपहरी में,
कभी थपेड़े तुमने क्या लू के झेले है
क्या उद्वेलित सागर की ऊंची लहरों में ,
कभी आपकी नैया ,डगमग कर डोली है
अन्ध तमसमय निशा,अकेले वीराने में ,
दिलकी धड़कन क्या डर कर धक् धक् बोली है
क्या तुमने त्रासदी बाढ़ वाली झेली है,
आसपास की नदियां जब उफनाई होगी
क्या अग्नी की लपटों का प्रकोप देखा है ,
उसकी झुलस कभी तुम तक भी आयी होगी
ये प्रकृति जो तुम्हे प्यार से पाल रही है ,
देती अन्न ,नीर,वायु तुमको दुलरा के
यदि ना जो तुम उसका पूरा ख्याल रखोगे ,
तो वो तुम्हे ख़तम कर देगी ,प्रलय मचा के
इसीलिए ये आवश्यक है तुमको,हमको,
पर्यावरण बचाना है ,कर दूर प्रदूषण
वृक्ष बचाओ,हवा और जल शुद्ध रखो तुम,
वरना दूभर हो जाएगा,जीना जीवन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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