'लिव इन रिलेशनशिप '
ना तुम लैला ,ना मै मजनू ,
ना तुम शीरी,मै फरहाद
मंहगाई में जीना मुश्किल,
इसीलिये हम रहते साथ
'लिव इन रिलेशनशिप'याने कि ,
रिश्ता संग संग रहने का
एक दूजे संग ,हाथ बटा कर,
सुख दुःख सारे सहने का
यूं भी लड़की ,रहे अकेली,
तो जीना अति मुश्किल है
बहुत भेड़िये ,घूमा करते ,
जिनकी नीयत कातिल है
इनसे बचने का ये भी ,
आसान तरीका लगता है
एकाकीपन से बच जाते ,
और खर्चा भी बंटता है
लड़का वर्किंग,लड़की वर्किंग,
थके हुए जब घर आते
एक दूसरे का थोड़ा सा ,
साथ,सहारा पा जाते
कई बार यूं संग संग रहना,
शौक नहीं,मजबूरी है
यूं भी परख ,एक दूजे की,
करना बहुत जरूरी है
यह तो एक रिहर्सल सी है,
आने वाले जीवन की
आपस की 'अंडरस्टेंडिग '
और मिल जाने की,मन की
ऐसे साथी ,समझ सके जो ,
एक दूसरे के जज्बात
आपस में यदि,दिल मिल जाते,
तो फिर बन जाती है बात
घरवाले,कोई के पल्ले,
बांधे,इससे ये अच्छा
ऐसा जीवन साथी ढूंढो ,
प्यार करे तुमसे सच्चा
कई बार कुछ बातें होती,
जो करवाते है हालात
मंहगाई में जीना मुश्किल ,
इसीलिये हम रहते साथ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'