माँ ,जो सारा जीवन,
सात बच्चों के परिवार को ,
सँभालने में रही व्यस्त
हो गयी काम की इतनी अभ्यस्त
बुढापे में ,बिमारी के बाद ,
जब डॉक्टर ने कहा करने को विश्राम
बच्चे ,काम नहीं करने देते ,
और उसका मन नहीं लगता
बिना किये काम
हर बार ,हर काम के लिए ,
हमेशा आगे बढ़ती है
और मना करने पर ,
नाराज़ हो,लड़ती है
सर्दियों में जब कभी कभी ,
मेथी या बथुवे की भाजी आती है
तो वो उन्हें सुधार कर ,
बड़ा संतोष पाती है
परसों ,पत्नी जब पांच किलो,
मटर ले आयी
तो माँ मुस्कराई
झपट कर मटर की थैली ली थाम
बोली वो कम से कम ,कर ही सकती है ,
मटर छीलने का काम
वो बड़ी खुश थी ,यह सोच कर कि ,
घर के काम में उसका भी हाथ है
उसने जब मटर की फली छीली,
तो मटर की फली से झांकते हुए दाने ,
ऐसे नज़र आये जैसे वो मटर नहीं,
ख़ुशी छलकाते ,माँ के मुस्कराते दांत है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment