शिकवे -शिकायत
मैंने ऐसा क्या कहा और तुमने ऐसा क्यूँ कहा ,
एक दूजे को यूं ही , इल्जाम हम देते रहे
इसी शिकवे शिकायत में उमर सारी काट दी ,
पीठ खुद की थपथपा ,इनाम हम देते रहे
देखते एक दूजे की जो खूबियां,अच्छाइयां,
दो घड़ी मिल बैठते और बात करते प्यार की
होता होली मिलन हर दिन,दिवाली हर रात को,
जिंदगी कटती हमारी , रोज ही त्योंहार सी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मैंने ऐसा क्या कहा और तुमने ऐसा क्यूँ कहा ,
एक दूजे को यूं ही , इल्जाम हम देते रहे
इसी शिकवे शिकायत में उमर सारी काट दी ,
पीठ खुद की थपथपा ,इनाम हम देते रहे
देखते एक दूजे की जो खूबियां,अच्छाइयां,
दो घड़ी मिल बैठते और बात करते प्यार की
होता होली मिलन हर दिन,दिवाली हर रात को,
जिंदगी कटती हमारी , रोज ही त्योंहार सी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
No comments:
Post a Comment