मुनासिब नहीं है
अदाएं दिखाकर बनाना दीवाना
तरसा के हमको यूं ही बस सताना
हर एक बात पर फिर बहाना बनाना
किसी भी तरह से यह वाजिब नहीं है
कभी रूठ जाना, कभी फिर मनाना
अपने इशारों पर हमको नचाना
होकर खफा तीखे तेवर दिखाना
दिल तोड़ देना ,मुनासिब नहीं है
चोरी छुपे फिर मिलना मिलाना
कहना हमेशा ,हमे ना ना ना ना
तड़पता हमें देख कर मुस्कुराना
उल्फत उसूलों मुताबिक़ नहीं है
कभी प्यार से हमसे नजरें मिलाना
कभी फिर खफा हो के नजरें चुराना
छोटी सी बातें ,फसाना बनाना
तुम्हारे तरीके ये वाजिब नहीं है
घोटू
No comments:
Post a Comment