Wednesday, August 10, 2011

बनो हजारे

बनो हजारे
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तुमने ये संसार रचा है,सच बतलाना मुझको भगवन
एक अनार में इतने दाने, कैसे सजा सजा भरते तुम
कितने मीठे और रसीले,एक एक मोती से सुन्दर
मिल कर गले एक दूजे से,पास पास रहते है अन्दर
कैसे गेदे के पुष्पों में ,कई पंखुडियां खुशबू वाली
एक दूजे से बंध कर रहती,और महकती है मतवाली
क्यों गुलाब की कई पंखुडियां,एक साथ मिल कर खिलती है
कितनी सुन्दर शोभित होती,और कितनी खुशबू मिलती है
ये सब रचनाएँ तुम्हारी,रूप संगठित जिनका निखरा
मानव भी तुम्हारी रचना,फिर क्यों रहता बिखरा,बिखरा?
क्यों ना वो अनार दानो सा,एक दूजे के संग रह पाता
बाँध हजारों पंखुड़ी संग में,खिला हजारे सा बन जाता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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