जिंदगी कैसे कटी
कटा बचपन चुम्मियाँ पा ,भरते थे किलकारियां,
गोदियों में खिलोने की तरह हम सटते रहे
हसीनो के साथ हंस कर,उम्र सारी काट दी,
कभी कोई को पटाया ,कभी खुद पटते रहे
आई जिम्मेदारियां तो निभाने के वास्ते ,
कमाई के फेर में ,दिन रात हम खटते रहे
कभी बीबी,कभी बच्चे ,कभी भाई या बहन ,
हम सभी में,उनकी जरुरत ,मुताबिक़ बंटते रहे
शुक्ल पक्षी चाँद जैसे ,कभी हम बढ़ते रहे ,
कृष्णपक्षी चाँद जैसे ,कभी हम घटते रहे
मगर जब आया बुढ़ापा,काट ना इसकी मिली ,
और बुढ़ापा काटने को ,खुद ही हम कटते रहे
घोटू
कटा बचपन चुम्मियाँ पा ,भरते थे किलकारियां,
गोदियों में खिलोने की तरह हम सटते रहे
हसीनो के साथ हंस कर,उम्र सारी काट दी,
कभी कोई को पटाया ,कभी खुद पटते रहे
आई जिम्मेदारियां तो निभाने के वास्ते ,
कमाई के फेर में ,दिन रात हम खटते रहे
कभी बीबी,कभी बच्चे ,कभी भाई या बहन ,
हम सभी में,उनकी जरुरत ,मुताबिक़ बंटते रहे
शुक्ल पक्षी चाँद जैसे ,कभी हम बढ़ते रहे ,
कृष्णपक्षी चाँद जैसे ,कभी हम घटते रहे
मगर जब आया बुढ़ापा,काट ना इसकी मिली ,
और बुढ़ापा काटने को ,खुद ही हम कटते रहे
घोटू
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