सूत्र-सुखी जीवन के
भलाई तुम करो सबसे,इसी में ही भलाई है ,
न जाने कौन,कब,किस रूप में भगवान मिल जाए
सभी से प्रेम से मिल कर,सभी में प्यार तुम बांटो,
तुम्हारी सहृदयता ,तुम्हारी पहचान बन जाये
नहीं होती कभी भी,किसी से भी दोस्ती यूं ही,
कुछ न कुछ इसके पीछे होती है भगवान की इच्छा
भला हो भाग्य और मिल जाए तुमको कितना कुछ भी पर
नहीं होती कभी भी ख़त्म है ,इंसान की इच्छा
परायों में भी अपनापन,है अपनों से अधिक होता,
प्रेम के बोल दो,देते बना ,अपना, परायों को
पराये और अपने में फरक क्यों मानते हो तुम ,
तिरस्कृत करते देखा है,कई अपने ही जायों को
अँधेरे हो हटाने को,दिये की होती जरुरत है,
फायदा क्या जला करके,रखो जो दिन में तुम दिया
अगर देना है जो कुछ तो,जरूरतमंद को दो तुम,
हमेशा काम आता है ,किसी सत्पात्र को दिया
भरी बरसात में क्या फायदा मिलता सिंचाई से ,
सिचांई तब ही अच्छी है ,फसल को जब हो आवश्यक,
नदी का नीर तब तक ही,लिए मिठास होता है ,
नहीं होता मिलन उसका ,समुन्दर संग है जब तक
किनारे पर खड़े हो लहर गिनने से न कुछ मिलता ,
लगाते गहरी डुबकी जब,तभी तो मिलते मोती है
कभी मिठाई भी इंसान को बीमार कर देती,
और कड़वी दवा बीमार का उपचार होती है
बोलते कोई कड़वे बोल ,हम सुनते रहें सब कुछ ,
तो अपने आप ही कुछ देर में ,वो शांत होवेंगे
बढ़ेगी बात,हाथापाई पर ,हो जाएगा झगड़ा ,
अगर प्रतिकार में जो आप अपना धीर खोवेंगे
अगर पत्थर तुम्हारे रास्ते में आता है कोई,
तरीके दो है,पहला उठाओ और फेंक दो उसको
दूसरा ये है कि उसको वहीँ पर पड़ा रहने दो,
तुम्हे क्या फर्क पड़ता है,लगे फिर चोट,कब,किसको
मगर ये बात मत भूलो कि टकरा कर के पत्थर से ,
तुम्हारा कोई अपना भी ,चोट खा सकता है फिर से
तो बेहतर है ,हटादो रास्ते से सारे रोड़ो को,
भावनाएं भलाई की,कभी ना जाने दो दिल से
सोच ये कि लिखा तक़दीर में जो,मिल ही जाएगा,
तुम्हारी मानसिकता ये ,बदलनी अब तुम्हे होगी
हाथ पर हाथ रख कर बैठने से कुछ नहीं मिलता ,
अगर कुछ पाना है ,कोशिश भी ,करनी तुम्हे होगी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
भलाई तुम करो सबसे,इसी में ही भलाई है ,
न जाने कौन,कब,किस रूप में भगवान मिल जाए
सभी से प्रेम से मिल कर,सभी में प्यार तुम बांटो,
तुम्हारी सहृदयता ,तुम्हारी पहचान बन जाये
नहीं होती कभी भी,किसी से भी दोस्ती यूं ही,
कुछ न कुछ इसके पीछे होती है भगवान की इच्छा
भला हो भाग्य और मिल जाए तुमको कितना कुछ भी पर
नहीं होती कभी भी ख़त्म है ,इंसान की इच्छा
परायों में भी अपनापन,है अपनों से अधिक होता,
प्रेम के बोल दो,देते बना ,अपना, परायों को
पराये और अपने में फरक क्यों मानते हो तुम ,
तिरस्कृत करते देखा है,कई अपने ही जायों को
अँधेरे हो हटाने को,दिये की होती जरुरत है,
फायदा क्या जला करके,रखो जो दिन में तुम दिया
अगर देना है जो कुछ तो,जरूरतमंद को दो तुम,
हमेशा काम आता है ,किसी सत्पात्र को दिया
भरी बरसात में क्या फायदा मिलता सिंचाई से ,
सिचांई तब ही अच्छी है ,फसल को जब हो आवश्यक,
नदी का नीर तब तक ही,लिए मिठास होता है ,
नहीं होता मिलन उसका ,समुन्दर संग है जब तक
किनारे पर खड़े हो लहर गिनने से न कुछ मिलता ,
लगाते गहरी डुबकी जब,तभी तो मिलते मोती है
कभी मिठाई भी इंसान को बीमार कर देती,
और कड़वी दवा बीमार का उपचार होती है
बोलते कोई कड़वे बोल ,हम सुनते रहें सब कुछ ,
तो अपने आप ही कुछ देर में ,वो शांत होवेंगे
बढ़ेगी बात,हाथापाई पर ,हो जाएगा झगड़ा ,
अगर प्रतिकार में जो आप अपना धीर खोवेंगे
अगर पत्थर तुम्हारे रास्ते में आता है कोई,
तरीके दो है,पहला उठाओ और फेंक दो उसको
दूसरा ये है कि उसको वहीँ पर पड़ा रहने दो,
तुम्हे क्या फर्क पड़ता है,लगे फिर चोट,कब,किसको
मगर ये बात मत भूलो कि टकरा कर के पत्थर से ,
तुम्हारा कोई अपना भी ,चोट खा सकता है फिर से
तो बेहतर है ,हटादो रास्ते से सारे रोड़ो को,
भावनाएं भलाई की,कभी ना जाने दो दिल से
सोच ये कि लिखा तक़दीर में जो,मिल ही जाएगा,
तुम्हारी मानसिकता ये ,बदलनी अब तुम्हे होगी
हाथ पर हाथ रख कर बैठने से कुछ नहीं मिलता ,
अगर कुछ पाना है ,कोशिश भी ,करनी तुम्हे होगी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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