बेटे और बेटियां
बेचारा पितृत्व हमेशा रहा तड़फता है,
विजय पताका पत्नीत्व की ही लहराई है
येन केन और प्रकारेण कुछ ऐसा होता है,
जीत हमेशा गठबंधन की होती आई है
मातपिता जिनने बचपन से पालपोसा था,
धीरे धीरे उनकी जब कम हुई महत्ता है
और पराये घर से बेटा जिसे ब्याहता है,
उसके हाथों में आ जाती घर की सत्ता है
जिसको लेकर सुख के सपने बुने बुढ़ापे में,
अच्छे दिन की आशाओं के, कभी, टूटते है
जैसे बढ़ती उमर ,क्षरण काया का होता है,
एक एक कर, साथी संगी सभी छूटते है
आता आपदकाल ,बुढ़ापा ,जब दुःख देता है,
फंसी भंवर में नाव,जिंदगी डगमग करती है
बेटे अपने परिवार संग मौज उड़ाते है,
किन्तु बेटियाँ सदा सहारा, पग पग बनती है
वही बेटियां जिन्हे पराया धन हम कहते है ,
साथ हमेशा दुःख पीड़ा में बढ़ कर आई है
अक्सर बेटों को देखा है,हुए पराये है,
बेटी सदा रही अपनी, ना हुइ पराई है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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बेचारा पितृत्व हमेशा रहा तड़फता है,
विजय पताका पत्नीत्व की ही लहराई है
येन केन और प्रकारेण कुछ ऐसा होता है,
जीत हमेशा गठबंधन की होती आई है
मातपिता जिनने बचपन से पालपोसा था,
धीरे धीरे उनकी जब कम हुई महत्ता है
और पराये घर से बेटा जिसे ब्याहता है,
उसके हाथों में आ जाती घर की सत्ता है
जिसको लेकर सुख के सपने बुने बुढ़ापे में,
अच्छे दिन की आशाओं के, कभी, टूटते है
जैसे बढ़ती उमर ,क्षरण काया का होता है,
एक एक कर, साथी संगी सभी छूटते है
आता आपदकाल ,बुढ़ापा ,जब दुःख देता है,
फंसी भंवर में नाव,जिंदगी डगमग करती है
बेटे अपने परिवार संग मौज उड़ाते है,
किन्तु बेटियाँ सदा सहारा, पग पग बनती है
वही बेटियां जिन्हे पराया धन हम कहते है ,
साथ हमेशा दुःख पीड़ा में बढ़ कर आई है
अक्सर बेटों को देखा है,हुए पराये है,
बेटी सदा रही अपनी, ना हुइ पराई है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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