बालिग़ उमर -प्यार रस डूबो
बालिग़ हो गयी सदी बीसवीं ,लगा उसे उन्नीस बरस है
निखरा रूप,जवानी छायी, हुई अदा ज्यादा दिलकश है
बात बात पर किन्तु रूठना ,गुस्सा होना और झगड़ना ,
बच्चों सी हरकत ना बदली ,रहा बचपना जस का तस है
तन के तो बदलाव आ गया ,किन्तु छिछोरापन कायम है ,
नहीं 'मेच्यूअर 'हो पाया मन ,बदल नहीं पाया, बेबस है
बाली उमर गयी अब आयी ,उमर प्यार छलकाने वाली ,
कभी डूब कर इसमें देखो ,कितना मधुर प्यार का रस है
घोटू
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