पुण्य या ?
कुछ दाने धरती पर बिखरा ,थोड़ा सा पानी से सींचों ,
वो कई गुना बन जाएंगे ,लोगों की भूख मिटायेंगे
लेकिन बिखरा उन दानो को ,तुम कबूतरों को खिला रहे ,
जब माल मुफ्त का देखेंगे ,कर बीट ,ढीठ चुग जाएंगे
तुम सोच रहे बिखरा दाने ,तुम कार्य पुण्य का करते हो ,
पर अगर ढंग से सोचो तो ,कुछ पुण्य नहीं तुम कमा रहे
नित कार्यशील थे जो पंछी ,उड़ते तलाश में दाने की ,
बिन मेहनत खिला रहे उनको और उन्हें निकम्मा बना रहे
घोटू
कुछ दाने धरती पर बिखरा ,थोड़ा सा पानी से सींचों ,
वो कई गुना बन जाएंगे ,लोगों की भूख मिटायेंगे
लेकिन बिखरा उन दानो को ,तुम कबूतरों को खिला रहे ,
जब माल मुफ्त का देखेंगे ,कर बीट ,ढीठ चुग जाएंगे
तुम सोच रहे बिखरा दाने ,तुम कार्य पुण्य का करते हो ,
पर अगर ढंग से सोचो तो ,कुछ पुण्य नहीं तुम कमा रहे
नित कार्यशील थे जो पंछी ,उड़ते तलाश में दाने की ,
बिन मेहनत खिला रहे उनको और उन्हें निकम्मा बना रहे
घोटू
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