Monday, March 6, 2023

नवजीवन

 मैंने नवजीवन पाया है 
 विपदा के बादल ने सूरज को घेरा था 
 सहमी सहमी किरणों ने भी मुंह फेरा था
 क्षण भर को यूं लगा रोशनी लुप्त हो गई,
 आंखों आगे जैसे छाया अंधेरा था 
 पर अपनों की दुआ, हवा बन ऐसी आई,
 धीरे-धीरे से प्रकाश फिर मुस्कुराया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 भूले भटके किए गए कुछ कर्म छिछोरे 
 इस जीवन में या कि पूर्व जनम में मोरे 
 कभी हो गए होंगे जो मुझसे गलती से ,
 मुझे ग्रसित करने को मेरे पीछे दौड़े 
 किंतु पुण्य भी थोड़े बहुत किये ही होंगे ,
 जिनके फलस्वरूप ही यह तम हट पाया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 जीवन के सुखदुख क्रम में ,दुख की बारी थी 
 जो यह काल रूप बन आई बीमारी थी 
 हुआ अचेतन तन था ,मन भी था घबराया,
 ऐसा लगता था जाने की तैयारी थी 
 लेकिन करवा चौथ ,कठिन व्रत पत्नी जी का जिसके कारण हुई पुनर्जीवित काया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 शायद तीर्थ भ्रमण, दर्शन ,पूजन ,आराधन 
 या कि बुजुर्गों की आशिषें, आई दवा बन 
 या कि चिकित्सक की भेषज ने असर दिखाया या की हस्तरेखा में शेष बचा था जीवन जाते-जाते शिशिर हुई है फिर बासंती
 मुरझाए फूलों को फिर से महकाया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 अब जीवन स्वच्छंद रहा ना पहले जैसा अनुशासन में बंध कर रहना पड़े हमेशा 
 खानपान पर कितने ही प्रतिबंध लग गए,
 खुलकर खाओ पियो ना तो जीवन कैसा 
 जीभ स्वाद की मारी तरस तरस जाती है,
  ऐसा बढ़ी उमर ने उसको तड़फाया है 
  मैंने नवजीवन पाया है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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