84 वें जन्मदिन पर
कोई निशा अमावस सी थी
कोई रात थी पूरनमासी
जैसे तैसे ,एक-एक करके,
कटे उमर के बरस तिर्यासी
टेढ़ा मेढ़ा जीवन पथ था,
कई मोड़ थे ,चौड़े ,सकड़े
मैंने पार किया सब रस्ता,
बस धीरज की उंगली पकड़े
मिला साथ कितने अपनों का
कई दोस्त तो दुश्मन भी थे
कभी धूप, तूफान , बारिशे ,
तो बासंती मौसम भी थे
महानगर की चमक दमक में
भटका नहीं ग्राम का वासी
जैसे जैसे ,एक-एक करके
कटे उमर के बरस तिर्यासी
हंसते गाते बचपन बीता,
बीती करते काम, जवानी
अब निश्चिंत,जी रहे जीवन ,
आया बुढ़ापा, उम्र सुहानी
बाकी ,कुछ ही दिन जीवन के
उम्र जनित, पीड़ाएं सहते
लिखा नियति का भोग रहे हैं
फिर भी हम मुस्कुराते रहते
जैसे भी कट जाए ,काट लो ,
भेद ये गहरा ,बात जरा सी
जैसे तैसे, एक-एक करके
कटे उम्र के बरस तिर्यासी
मदन मोहन बाहेती घोटू