बदलाव
मैंने देखा साथ वक्त के
कैसे लोग बदल जाते हैं
बीज वृक्ष बन जाता उसमें,
फूल और फिर फल आते हैं
दूध फटा बन जाता छेना
जमता दूध ,दही कहलाता
सूख खजूर ,छुहारा बनता,
रूप रंग सब बदला जाता
और अंगूर सूख जब जाते,
हम उनको किशमिश कहते हैं
नाले निज अस्तित्व मिटाते,
तो फिर नदिया बन बहते हैं
चावल पक कर भात कहाते
गेहूं पिसते ,बनता आटा
गर्म तवे पर बनती रोटी ,
घी लगता बन जाए परांठा
पक जाने पर हरी मिर्च भी,
रंग बदल कर,लाल सुहाती
और सूखे अदरक की गांठे ,
बदला नाम, सोंठ कहलाती
उंगली पकड़ चले जो बच्चे,
तुमको उंगली दिखलाते हैं
मैंने देखा साथ वक्त के,
कैसे लोग बदल जाते हैं
मदन मोहन बाहेती घोटू