बुढ़ापे की झलकियां
1
उम्र बढ़ती, बुढ़ापे का ,बड़ा दुखदाई है रस्ता
है मेरे हाल भी खस्ता ,है उसके हाल भी खस्ता
मगर बासंती मौसम सा, हमारा प्यार का आलम
फूल मुरझाए, खुशबू से ,महकता फिर भी गुलदस्ता
2
रहा ना जोश यौवन का, नहीं पहले सी मस्ती है
मैं 84 का लगता हूं ,वह भी 80 की लगती है
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,हमारा यह तरीका है
मैं उसका ख्याल रखता हूं, वो मेरा ख्याल रखती है
3
जगाती है सुबह पत्नी, पिलाकर चाय का प्याला
कभी चुंबन भी दे देती, तो कर देती है मतवाला
उसे जब धुंधलीआंखों से प्यार से देखता हूं मैं,
भले झुर्री भरा तन हो, मगर लगती है मधुबाला
4
ढल गए सब जवानी के, रहे नाम हौसले बाकी
उड़े बच्चे,जो पर निकले,है खाली घोंसले बाकी
उम्र बढ़ती के संग सीखा, है हमने मन को बहलाना ,
मोहब्बत हो गई फुर्र है,बचे अब चोंचले बाकी
5
उचटती नींद रहती है ,कभी सोता कभी जगता
सुने बिन उसके खर्राटे, ठीक से सो नहीं सकता
बन गए एक दूजे की जरूरत इस कदर से हम,
वह मुझ बिन जी नहीं सकती, मैं उस बिन जी नहीं सकता
6
हमारी जिंदगानी का, ये अंतिम छोर होता है
वक्त मुश्किल से कटता है, ये ऐसा दौर होता है
सहारा एक दूजे का , हैं होते बूढ़े और बुढ़िया,
बुढ़ापे की मोहब्बत का मजा कुछ और होता है
मदन मोहन बाहेती घोटू