Saturday, September 3, 2011

दर दर -ठोकर

दर दर -ठोकर
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बढती है मंहगाई की दर
बिजली की दर,पानी की दर
कभी टेक्स दर,कभी ब्याज दर
मंहगी सब्जी,बढ़ी प्याज  दर
बहुत घुटन है मन के अन्दर
मुश्किल का है भरा समंदर
मंहगाई बढ़ गयी इस कदर
कद है लंबा,छोटी चादर
तितर बितर हो रहे सभी घर
कदम कदम पर लगती ठोकर
परेशान है जीवन,जर्जर
रहो भटकते,तुम बस दर दर
इसीलिए विनती है सादर
इधर उधर की बातें ना कर
सच्चे मन से कुछ प्रयत्न कर
कम करदो मंहगाई की दर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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