Saturday, September 3, 2011

तुम नहीं थी

तुम नहीं थी
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नींद मुझको नहीं आई,तुम नहीं थी
कामनाये  कसमसाई ,तुम नहीं थी
चांदनी थी रात शीतल
याद तुम आई प्रतिपल
बड़ा ही बेचैन था मन
और तन की बढ़ी सिहरन
ओढ़ ली मैंने रजाई,तुम नहीं थी
मगर उष्मा नहीं आई,तुम नहीं थी
नींद  रूठी,उचट कर के
बांह में तकिये  को भर के
बहुत कोशिश की ,की सोलूं
कुछ मधुर सपने संजोलूँ
पड़ो तुम जिनमे दिखाई, तुम नहीं थी
नींद यादों ने उड़ाई,तुम नहीं थी
याद आया महकता तन
अकेली पड़ गयी धड़कन
क्या बताऊँ ,आप बीती
किस तरह से रात बीती
भोर तक भी सुध न आई,तुम नहीं थी
बस तुम्हारी याद आई,तुम नहीं थी
जिंदगी में,इस, हमारी
अहमियत क्या तुम्हारी
तुम न थी,जब जान पाया
प्यार को पहचान पाया
समझ  में ये बात आई,तुम नहीं थी
बड़ी जालिम है जुदाई,तुम नहीं थी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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