यादें
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तेज धूप गर्मी से,
जब छत की ईंटों के,
थोड़े जोड़ उखड जाते है
और बारिश होने पर,
जोड़ों की दरारों में,
कितने ही अनचाहे,
खर पतवार निकल जाते है
जीवन की तपिश से,
जाने अनजाने में,
रिश्तों के जोड़ों में,
जब दरार पड़ती है
और बूढी आँखों से,
बरसतें है जब आंसू,
तो बीती यादों के
कितने ही खर पतवार,
बस उग उग आते है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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तेज धूप गर्मी से,
जब छत की ईंटों के,
थोड़े जोड़ उखड जाते है
और बारिश होने पर,
जोड़ों की दरारों में,
कितने ही अनचाहे,
खर पतवार निकल जाते है
जीवन की तपिश से,
जाने अनजाने में,
रिश्तों के जोड़ों में,
जब दरार पड़ती है
और बूढी आँखों से,
बरसतें है जब आंसू,
तो बीती यादों के
कितने ही खर पतवार,
बस उग उग आते है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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