Sunday, April 17, 2011

थकी थकी है भोर


रात चांदनी ऐसी महकी ,थकी थकी है भोर
आलस के सुख में डूबा है ,तन का एक एक पौर
उर के हर एक स्पंदन में ,मुखरित है आनंद
सूखी माटी ,पा फुहार सुख ,देती सोंधी गंध
प्रणय पुष्प मकरंद प्रफुल्लित,मन आनंद विभोर
रात चांदनी ऐसी महकी,थकी थकी है भोर
पलक उनींदी,मीठे सपने,आकुल व्याकुल नैन
राह चाँद की तके चकोरी ,कब आएगी रैन
चोरी मन का चैन ले गया ,वो प्यारा चितचोर
रात चांदनी ऐसी महकी ,थकी थकी है भोर
एसा खिला  खिला सा सूरज,देखा पहली बार
इतना प्यारा पंछी कलरव ,इतनी मस्त बयार
एसा लगता है धरती पर ,पुष्प खिले चहुँऔर
रात चांदनी ऐसी महकी ,थकी थकी है भोर
           मदन मोहन बहेती 'घोटू'

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