Sunday, April 17, 2011

भोजन सुंदरी !

      भोजन सुंदरी
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तुम कोमल हो,नरम नरम
गुंथे हुए आटे के जैसी श्वेत वरन
काली काली सी जुल्फों में गोरा आनन्
गरम तवे पर सिकती हुई रोटियों जैसा
सुन्दर नाक समोसे जैसी,
दांत तुम्हारे
हैं पनीर के टुकड़े प्यारे
और मटर सी
मटर गश्तियाँ करती आँखे
आलू चापी कान,रूपसी!
 ,पापड़ से परिधान पहन कर जब हंसती हो
,एसा लगता है की किसीने ,
पका दाल अरहर की उसमे,
लहसुन की डाली बघार हो
तुम्हे देख कर भूख लग गयी ,
भूख मिटा दो ! भोजन सुंदरी!

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
नोयडा उ.प्र.

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