Sunday, April 17, 2011

मच्छरों ने


 मच्छरों ने
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रात भर मुझको सताया मच्छरों ने
नींद से मुझको जगाया मच्छरों ने
मुहं ढका तो नींद ना आई मुझे,
मुहं उधेडा ,काट खाया मच्छरों ने
आते जाते गाल की ले चुम्मियां,
याद को तेरी दिलाया मच्छरों ने
रात भर मैंने बजाई तालियाँ,
गीत कुछ एसा सुनाया मच्छरों ने
तेरे खर्राटे  भले लगने लगे,
रात भर जब भिनभिनाया मच्छरों ने
सभी मच्छार्नियाँ  उमड़ी टूट कर,
जब अकेला मर्द पाया मच्छरों ने
करवटें ही मै बदलता रह गया
इस तरह कुछ गुदगुदाया मच्छरों ने
नहीं मारो, आपका ही खून हैं
इस तरह कुछ  गिड़ गिडाया मच्छरों ने

मदन मोहन बहेती 'घोटू'
नोयडा उ.प्र.

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