Wednesday, February 29, 2012

अबीर गुलाल
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तेरा अबीर ,तेरी गुलाल,
सब लाल लाल, सब लाल लाल
उस मदमाती सी होली में
जब ले गुलाल की झोली मै
       आया तुम्हारा मुंह रंगने
तुम सकुचाई सी बैठी थी
कुछ शरमाई  सी बैठी थी
      मन में भीगे भीगे सपने
मैंने बस हाथ बढाया था
तुमको छू भी ना पाया था
      लज्जा के रंग  में डूब गये,
      हो गये लाल,रस भरे गाल
तेरा अबीर ,तेरी गुलाल
सब लाल लाल,सब लाल लाल
मेंहदी का रंग हरा लेकिन,
जब छूती है तुम्हारा  तन,
       तो लाल रंग आ जाता है
इन काली काली आँखों में,
प्यारी कजरारी आँखों में,
      रंगीन जाल छा जाता  है
चूनर में लाली लहक रही,
होठों पर लाली दहक  रही
     हैं खिले कमल से कोमल ये,
      रखना  संभाल,पग  देख भाल
तेरा अबीर,  तेरी गुलाल
सब लाल लाल,सब लाल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'




Tuesday, February 28, 2012

सपन तू मत देख रे मन

सपन तू मत देख रे  मन
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सपन तू मत देख रे मन, अगर टूटे ,पीर होगी
तुझे बस वो ही मिलेगा, जो तेरी तकदीर  होगी
नींद में कर बंद आँखें,ख्वाब कितने ही सजा  ले
कल्पनाओं के महल में,हो ख़ुशी,जी भर ,मज़ा ले
पर खुलेगी आँख,होगा ,हकीकत से सामना  जब
आस के विपरीत ही ,अक्सर मिलेगा,हर जना तब
चुभेगी तेरे ह्रदय को,बात हर शमशीर  होगी
सपन तू मत  देख रे मन,अगर टूटे ,पीर   होगी
ना किसी से मोह रख  तू,ना किसी की चाह रखनी
आस तू मत कर किसी से,आस तो है  महा ठगिनी
अपेक्षा जब टूटती है,  तोड़ देती  है ह्रदय को
चक्र ये सब भाग्य का  है,कौन रोकेगा समय को
यूं न मिलने आये कोई,मरोगे तो भीड़  होगी
सपन तू मत देख रे मन,अगर टूटे,पीर होगी
सर्दियों की धूप मनहर,ग्रीष्म  में बदले  तपन में
नहीं दुःख में,ख़ुशी में भी,अश्रु बहते है नयन में
नहीं चिर सुख,नहीं चिर दुःख,जिंदगी के इस सफ़र में
फूल है तो कई कांटे ,भी भरे है ,इस डगर में
रात है ,तो कल सुबह भी,अँधेरे  को चीर होगी
सपन तू मत देख रे मन,अगर टूटे,पीर होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, February 25, 2012

ऋतू परिवर्तन

ऋतू परिवर्तन
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अब गया है बदल मौसम
तपन आई,गयी ठिठुरन
हुआ सत्ता परिवर्तन
कहीं खुशिया तो कहीं गम
जो नरम और गुदगुदी थी
प्यार ,उष्मा से लदी थी
कई रातें ,तन चड़ी जो
उपेक्षित सी ,अब पड़ी वो
हुई तनहा सी रजाई
ग्रीष्म की अब ऋतू आई
गर्म शालें और स्वेटर
गर्व से थे सजे तन पर
अब दुबक,सिमटे पड़े है
दुखी से लगते  बड़े है
देख कर के बदन सुन्दर
गर्म थे जो कभी गीजर
अब न विद्युत् तरंगे  है
स्नान घर में बस टंगे है
तेल नरियल का सुगन्धित
हुआ एसा शीत शापित
श्वेत हिम सा था गया जम
पर गया जब बदल मौसम
अब पिघलने लग गया है
पा पुनर्जीवन  गया है
और छत पर मौन लटके
हुए थे निर्जीव पंखे
पंख फैले,उड़ न  पाते
मगर अब है फरफराते
नाचते है संग हवा के
नया जीवन,पुनः पाके
रूपसियों का सुहाना
रूप का सुन्दर खजाना
हो कहीं गायब गया था
वसन से सब ढक गया था
ग्रीष्म ऋतु ने मगर आकर
कर दिया है सब उजागर
जल बहुत था दुखी ,बेकल
ठिठुरते थे,हाथ छूकर
आजकल इठला रहा है
सभी के मन भा रहा है
स्वेद बन गौरी बदन पर
बह रहा है,बड़ा  चंचल
कहीं खुशियाँ है कही गम
अब गया है बदल मौसम

मदन मोहन बहेती'घोटू'

संतरा

            संतरा
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धरा सा आकार सुन्दर,अरुण सी आभा सुशोभित
वेद का,उपनिषद का सब,ज्ञान फांकों सा सुसज्जित
और फांकों में समाये, वेद सब ,सारी ऋचायें
ज्ञान कण कण में,वचन से ,प्यास जीवन की बुझाये
फांक का हर एक दाना, मधुर जीवन रस भरा  है
संत के सब गुण  समाहित,इसलिए ये संतरा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, February 22, 2012

कल्कि अवतार का मत करो इन्तजार

कल्कि अवतार का मत करो इन्तजार
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पुराण बतलाते है
जब जब धर्म की हानि होती है,
भगवान अवतार ले कर आते है
त्रेता में राम का रूप धर कर अवतार लिया
द्वापर में कृष्ण रूप में प्रकटे,
और दुष्टों का संहार किया
पर आजकल,इस कलयुग में,धर्म की हानि नहीं,
धर्म का विस्तार हो रहा है
जिधर देखो उधर धर्म ही धर्म,
का प्रचार हो रहा है
भागवत कथाएं,
गाँव गाँव शहर,कस्बो में,
टी.वी. के कई चेनलों में,
साल भर चलती है
कितनी भीड़ उमड़ती है
भागवत कथा सुन कर कितने ही श्रोताओं में,
मोक्ष की आस जगी है
तीर्थो में उमड़ती भीड़ को देखो,
सब में पुण्य कमाने की होड़ लगी है
मंदिरों में आजकल इतने लोग जाते है
कि भक्तों को दर्शन देते देते,
भगवान भी थक जाते है
तब सांवरिया सेठ का रूप धर,
भगवान ने नानीबाई का मायरा भरा था
अपने भक्त नरसी मेहता पर उपकार करा था
आज कल कई सेठ,
कितनी ही गरीब कन्याओं का,
सामूहिक विवाह करवाते है
और भरपूर पुण्य कमाते है
तब एक श्रवण कुमार ने,
अपने बूढ़े माता पिता को,
तीर्थ यात्रा करवाई थी,
कांवड़ में बिठा कर
आज कितने ही श्रवण  कुमार,
अपने बूढ़े माता पिता को,
तीर्थ यात्रा करवाते है,
हेलिकोफ्टर  में बिठा कर
पहले आदमी जब गया तीर्थ था जाता,
तो गया गया सो गया ही गया था कहा जाता
और आज कल गया जानेवाला,
सुबह गया जाता है,
और शाम तक वापस भी लौट आता है
धर्म का लगाव बढ़ता ही जा रहा है
लोगों में भक्ति भाव ,बढ़ता ही जा रहा है
तो जो लोग कल्कि अवतार का इन्तजार कर रहें है
बेकार कर रहे है
क्योंकि जब इतनी धार्मिक भावनायें,
भारत में जागृत है
तो भगवान को अवतार लेने की क्या जरुरत है?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, February 20, 2012

अरे ओ औलाद वालों!

अरे ओ औलाद वालों!
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अरे ओ औलाद वालों,
बुजुर्गों को मत प्रताड़ो
आएगा तुम पर बुढ़ापा,
जरा इतना तो विचारो
जिन्होंने अपना सभी कुछ,तुम्हारे खातिर लुटाया
तुम्हारा जीवन संवारा,रहे भूखे,खुद न खाया
तुम्हारी हर एक पीड़ा पर हुआ था दर्द जिनको
आज कर उनकी उपेक्षा,दे रहे क्यों पीड़ उनको
बसे तुम जिनके ह्रदय में,
उन्हें मत घर से निकालो
अरे ओ औलाद वालों !
समय का ये चक्र ऐसा,घूम कर आता वहीँ है
जो करोगे बड़ो के संग,आप संग होना वही है
सूर्य के ही ताप से जल,वाष्प बन,बादल बना है
ढक रहा है सूर्य को ही,गर्व से इतना तना  है
बरस कर फिर जल बनोगे,
गर्व को अपने संहारो
अरे ओ औलाद वालों!
बाल मन कोमल न जाने,क्या गलत है,क्या सही है
देखता जो बड़े करते,बाद में करता वही  है
इस तरह संस्कार पोषित कर रहे तुम बालमन के
बीज खुद ही बो रहे,अपने बुढ़ापे  की घुटन के
क्या गलत है,क्या सही है,
जरा अपना मन खंगालो
अरे ओ औलाद वालों!

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Sunday, February 19, 2012

बसंत आ रही है

बसंत आ रही है
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पहले सुबह,
ओस की चादर से,
धीरे धीरे अपना मुख उघाडती थी
ठंडी,ठंडी,अलसाई सी,
देर से जागती  थी
अंगडाइयाँ  ले लेकर,
उबासियाँ  लिया करती थी
उठ कर सबसे पहले,
गरम चाय का प्याला पिया करती थी
पहले सबसे प्यारा,
रजाई और बिस्तर लगता था
सुबह सुबह,
ठंडा पानी छूने में भी  डर लगता था
पर आज सुबह,
उजली उजली सी,
नहा धोकर,
खुले खुले वस्त्र पहने,मुस्करा रही है
क्या बसंत ऋतू आ रही है

मदन मोहन बहेती'घोटू'

वैवाहिक जीवन की सफलता के सात सूत्र

वैवाहिक जीवन की सफलता के सात सूत्र
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                        १
सुखमय परिवार का पहला मन्त्र यही है
जो कुछ भी पत्नी कहती कहती है,वही सही है
                        २
पत्नी दुबली हो तो बोलो कनक छड़ी हो
मोटी हो तो यौवन से भरपूर  भरी हो
रूप प्रसंशा कर पत्नी की कहते रहिये,
कभी'चाँद हो,'कभी'फूल हो',कभी'परी हो'
                       ३
सजधज पत्नी पूछे मै लगती हूँ कैसी
कहो न जग में कोई कोई है तुम्हारे जैसी
फ़िल्मी हिरोईन परदे पर लगे  सुहानी
पर तुम्हारे आगे  सब भरती है पानी
                          ४
सुखी रहोगे यदि पत्नी से यह कह पाये
तुमसे अच्छा खाना कोई बना ना पाये
बाकी सब है यूं ही,तुम्हारी बात और है
तुम्हारे खाने का होता स्वाद   और है
                          ५
साला,सास,सालियाँ ये सब पूजनीय है,
इनकी तारीफ़ करिए,इनको आप साधिये
सुख से करना पार अगर जीवन बेतरनी,
पत्नी की तारीफों के पुल,आप बांधिये
                           ६
किसी और औरत की तारीफ़ कभी न करना
सोफे पर सोना पड़ सकता,तुमको   वरना
                            ७
ऑफिस में 'यस सर'यस सर',घर में 'यस मेडम'
तो खुशियों से भरा  रहेगा जीवन  हरदम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, February 17, 2012

मै बसंती,तुम बसंती

मै बसंती,तुम बसंती
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मौन मन ही मन मिलन की,कामनाये बलवती थी
तुम्हारा सानिध्य पाने की लगन मन में लगी थी
बात दिल की कह न पाया था तुम्हे संकोच वश मै
भावना के ज्वार के आगे हुआ था पर विवश  मै
और जब मदमस्त आया,फाग का मौसम सुहाना
देख पुष्पित वाटिका को ,भ्रमर था पागल,दीवाना
मदन उत्सव पर्व आया,रंग छलके होलिका के
देख कर यौवन प्रफुल्लित,हो गयी बेचैन आँखें
ऋतू बासंती सुहानी,और मौसम मदभरा सा
देख कर के रूप तुम्हारा हुआ मै बावरा  सा
ज़रा सी गुलाल लेकर ,गाल पर मैंने  लगा दी
हो गए शर्मो हया से,गाल तुम्हारे   गुलाबी
नज़र जब तुमने झुका ली,लगी मुझको बात बनती
हो गयी तुम भी बसंती,हो गया मै भी बसंती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पलाश के फूल

पलाश के फूल
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हम पलाश के फूल,सजे ना गुलदस्ते में
खिल कर महके,सूख,गिर गये,फिर रस्ते में
वृक्ष खाखरे के थे ,खड़े हुए  जंगल में
पात काम आते थे ,दोने और पत्तल में
जब बसंत आया,तन पर कलियाँ मुस्काई
खिले मखमली फूल, सुनहरी आभा  छाई
भले वृक्ष की फुनगी  पर थे हम इठलाये
पर हम पर ना तितली ना भँवरे मंडराये
ना गुलाब से खिले,बने शोभा उपवन की
ना माला में गुंथे,देवता  के  पूजन की
ना गौरी के बालों में,वेणी  बन निखरे
ना ही मिलन सेज को महकाने को बिखरे
पर जब आया फाग,आस थी मन में पनपी
हमें मिलेगी छुवन किसी गौरी के तन की
कोई हमको तोड़,भिगा,होली खेलेगा
रंग हमारा भिगा अंग गौरी के देगा
तकते रहे राह ,कोई आये, ले जाये
बीत गया फागुन, हम बैठे आस लगाये
पर रसायनिक रंगों की इस चमक दमक में
नेसर्गिक रंगों को भुला दिया है सबने
जीवन यूं ही व्यर्थ  गया,रोते.हँसते में
हम पलाश के फूल,सजे ना गुलदस्ते में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, February 15, 2012

ब्रह्मा विष्णु महेश

ब्रह्मा विष्णु महेश
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भारत की सीमा पर,
तीन तरफ समंदर,
और एक तरफ पहाड़ है
और  हमारे त्रिदेव ,
ब्रह्मा,विष्णु महेश पर,
इसकी सुरक्षा का भार है
उत्तर में कैलाश पर्वत पर,
बिराजे है शिव शंकर,
चीन की सभी गतिविधियों पर,
रखे हुए है नज़र
और सुरक्षा समंदर की,
कर रहे है  विष्णु भगवान
उन्होंने तो समंदर के अन्दर ही,
बना लिया है रहने का स्थान
शेषनाग की शैया पर विराजते है
और भारत की,तीन तरफ की ,
सुरक्षा को, वो ही सँभालते है
यहाँ तक कि उनकी पत्नी लक्ष्मी जी,
भारत के आर्थिक विकास में है लगी
और तीसरे देव ब्रह्मा जी,
कमल नाल पर बैठे हुए,
अपने चारों मुखों से,
देश कि आतंरिक सुरक्षा पर,
पूरी नज़र रखें है
और सरस्वती के साथ,
देश कि बौद्धिक और सांस्कृतिक,
विरासत कि सुरक्षा में लगे  है
इन तीनो देवताओं का वरदान,
और आशीर्वाद हम पर है
इसीलिए तो आज  भारत ,
प्रगति के पथ पर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जय शिव शंकर

जय शिव शंकर
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हम गीत शांति के गाते है
अपने मन को समझाते है
पूजा करते शंकर जी की,
जो संहारक  कहलाते है
निश्चित ही शंकर बाबा,वैज्ञानिक एक रहे होंगे
करने प्रयोग ,एकांत जगह,पर्वत कैलाश गये होंगे
थे धुनी जीव,जग कहता है,वे धूनी रमाते थे  बाबा
मस्तानी तबियत के थे तो,गंजा,भंग खाते थे  बाबा
करके प्रयोग,निश्चित कोई,बम उनने  बना लिया होगा
प्रलयंकारी नेत्र तीसरा शायद बम का स्विच   होगा
वो बम वाले शंकर अब भी तो बम भोले   कहलाते है
हम गीत शांति के गाते है
देखो ये कैसी बातें है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

खुशियों के क्षण

खुशियों के क्षण
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नौ महीने तक रखा संग में ,पिया,खाया
जिसकी लातें खा खा कर के,मन मुस्काया
माँ जीवन में,खुशियों का पल ,सबसे अच्छा
रोता पहली बार,जनम लेकर जब  बच्चा
एक बार ही आता है  ये पल जीवन में
जब बच्चा रोता और माँ खुश होती मन में

मदन मोहन बहेती'घोटू'


Monday, February 13, 2012

लड्डू चालीसा

लड्डू  चालीसा
प्रस्तावना
चंदा गोल,गोल है सूरज,धरा गोल है प्यारे
इन सब की गोलाई लेकर,लड्डू देव पधारे
इनका ही प्रतिरूप मान कर,हम लड्डू को ध्यायें
एक बार फिर पेट -गुहा में,लड्डू ध्वज फहरायें

श्री लड्डू चालीसा
   --दोहा-
खा चूरन पत्थर हज़म,अपनों पेट सुधार
दो दिन तक उपवास रख,यदि लड्डू से प्यार
घर जा कर जजमान के,बैठो पाँव पसार
सौ लड्डू का भोग कर,लेना मती डकार
      चोपाई
      ---------
जय मोदक ,जय मोतिचूरा
प्यारा लगता लड्डू पूरा
सभी प्यार से तुमको खाते
खाकर तुम्हे तृप्त हो जाते
क्या क्या गाँउ गुण तुम्हारे
हो मिष्ठान बड़े ही प्यारे
पेढा,बर्फी,घेवर फीनी
तुम्हारे आगे है भीनी
रसगुल्ले ,चमचम भी चाखे
मज़ा न आया लेकिन खा के
सोहन हलवा हमने खाया
पर मनमोहन हमें न भाया
केला,आम,सेव,नारंगी
तुम्हारे आगे बेढंगी
काजू,किशमिश,सूखा मेवा
लगे न अच्छा लड्डू देवा
जब थाली में आप बिराजे
क्यों कर चीज दूसरी खाजे
महिमा अहे तुम्हारी ,न्यारी
जाऊं तुम पर मै बलिहारी
आगम निगम पुराण बखाना
लड्डू ,मिष्ठानो के  मामा
श्री गणपति ,गजानन देवा
करे आपका रोज कलेवा
करे आचमन श्री भगवाना
तुम हो अति प्यारे पकवाना
ले बरात शिव चले ब्याहने
हुए इकट्ठे सभी पाहुने
नये नये पकवान बनाये
आप सभी के मन को भाये
पिता आपके श्री हलवाई
चाची है श्री चीनी  माई
चंदा सूरज से  चमकीले
मीठे भी हो,बड़े रसीले
गोल गोल हो पृथ्वी जैसे
करूं बखान कीरती कैसे
मोती सी है सूरत  प्यारी
धन्य धन्य हो तुम अवतारी
है कितने  अवतार तुम्हारे
सभी रूप में लगते प्यारे
भक्त गजानन ,मोदक रूपा
भोग करे जगती के भूपा
न्यारा रूप ,धन्य पंचधारी
मोतीचूर रूप सहकारी
बूंदी ने मिल संघ बनाया
मोतीचूर सामने  आया
हर बूंदी है रस का प्याला
स्वाद आपका बड़ा निराला
बेसन,मूंग,गोंद भी प्यारा
मगद ,चासनी और कसारा
माखन मिश्री ,मोदक,मावा
देवों का हो तुम्ही चढ़ावा
धानी,रूप और अति नाना
 कब तक कीरत करूं बखाना
जब भी नाम आपका आवे
मुंह में पानी भर भर जावे
चूहा  दौड़ पेट में भागे
आप बड़े ही प्यारे लागे
जजमानो की तुम परसादी
होय तुम्हारे बिना न शादी
घी से खूब पौष्टिक  देवा
करूं आपका रोज कलेवा
ब्राह्मन गुण गाये तुम्हारा
जय जय प्रभू,भूख संहारा
पूरी,खीर कछु ना भावे
लड्डू जब थाली में आवे
भूख शांत होवे पितरों की
इच्छा पूरी हो मितरों की 
नासे भूख,चखावे मेवा
जपत निरंतर लड्डू देवा
सभी प्रेम से लड्डू खावे
भगवन उनका पेट बढ़ावे
ब्राह्मन,पंडों के रखवाले
भूख निकंदन,पेट दुलारे
पकवानों के तुम हो राजा
धन्य धन्य लड्डू महाराजा
जो  ध्यावे 'लड्डू चालीसा'
भरे पेट साखी गौरीसा
'घोटू''सदा आपका चेरा
कीजे दास पेट में   डेरा
   --दोहा--
लड्डू चालीसा पढो,जनम जनम की टेव
मेरे भूखे पेट  को, भरना  लड्डू  देव
  इति श्री  लड्डू चालीसा सम्पूर्ण

दौड़े यदि जो 'रेट 'पेट में
सबसे सुन्दर चीज भेट में
डालो कोई 'केट' पेट में
वह है लड्डू पेट 'गेट' में

 



     

Sunday, February 12, 2012

डोर मेरी है तुम्हारे हाथ में
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मै तुम्हारे पास में हूँ,तुम हो मेरे साथ में
उड़ रहा मै,डोर मेरी पर तुम्हारे हाथ में
    तुम पवन का मस्त झोंका,जिधर हो रुख तुम्हारा
     तुम्हारे संग संग पतंग सा,रहूँ उड़ता  बिचारा
तुम लचकती टहनी हो और थिरकता पात  मै
उड़ रहा मै, डोर मेरी पर  तुम्हारे  हाथ  में 
       नाव कागज की बना मै,तुम मचलती  धार हो
       जिधर चाहो बहा लो या डुबो दो या तार दो
संग तुम्हारा न छोडूंगा किसी  हालात में
 उड़ रहा मै, डोर मेरी, पर तुम्हारे हाथ में
      बांस की पोली नली ,छेदों भरी मै बांसुरी
       होंठ से अपने लगालो,बनूँ सुर की सुरसरी  
मूक तबला,गूंजता मै,तुम्हारी हर थाप में
उड़ रहा मै,डोर मेरी ,पर तुम्हारे हाथ में
     घुंघरुओं की तरह मै तो तुम्हारे पैरों बंधा
      तुम्हारी हर एक थिरकन पर खनकता मै सदा
तुम शरद की पूर्णिमा की रात हो और प्रात मै
उड़ रहा मै,डोर मेरी, पर तुम्हारे   हाथ  में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Friday, February 10, 2012

बासन्ती मधुमास आ गया

बासन्ती मधुमास आ गया
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आज प्रफुल्लित धरा व्योम है
पुलकित तन का रोम रोम है
पिक का प्रियतम  पास आ गया
बासंती  मधुमास आ गया
डाल डाल पर ,फुदक फुदक कर
कोकिल गुंजा रही है मधुस्वर
पुष्पित हुआ पलाश केसरी
सरसों स्वर्णिम हुई मदभरी
सजी धरा पीली चूनर में
लगे वृक्ष स्पर्धा करने
उनने पान किये सब पीले
आये किसलय  नवल रंगीले
शिशिर ग्रीष्म की यह वयसंधी
हुई षोडशी ऋतू  बासंती
गेहूं की बाली थी खाली
हुई अब भरे दानो वाली
नाच रही है थिरक थिरक कर
बाली उमर,रूप यह लख कर
वृक्ष आम का बौराया  है
मादकता से मदमाया है
रसिक भ्रमर डोले पुष्पों पर
महकी अवनी,महका अम्बर
मदन पर्व है,ऋतू  रसवंती
आया ऋतू राज  बासंती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, February 7, 2012

बड़ा सराफा की चौपाटी

बड़ा सराफा की चौपाटी
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(इन्दोर शहर की इस जगह पर रात को जो खानेपीने
की महफ़िल सजती है उसका आनंद अकथनीय है
कोई भी भोजनप्रेमी इस स्वाद से वंचित न हो इसी
कामना के साथ यह मालवी कविता प्रस्तुत है )

बड़ा सराफा की चौपाटी,खानपान को जंक्शन है
रात होय तो एसो लागे,जेसे कोई  फंक्शन है
गेंदा जेसा बड़ा दहीबड़ा,साबूदाना की खिचड़ी
गरम गरम झर्राट गराडू,और ठंडी ठंडी रबड़ी
देसी घी किआलू टिक्की,भुट्टा को किस नरम नरम
बड़ी बड़ी रसभरी केसरी,मिले जलेबी गरम गरम
मद्रासी इडली और डोसा,बम्बई का भाजी पाव
चाइनीज की मंचूरियन,चाउमीन जी भर खाव
खाओ पताशा पानी का छै स्वादों को पानी मेली
गरम दूध केसर को पियो और शिकंजी अलबेली
गाजर,मूंगदाल को हलवो,तिल का लड्डू मावा का
सर्दी में भी मज़ा उठाओ,ठंडी कुल्फी  खावा का
पेट भले ही भरी जाय है ,लेकिन भरे नहीं मन है
बड़ा सराफा की चौपाटी,खानपान को जंक्शन है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

घुटने की तकलीफ

घुटने की  तकलीफ
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होती हमें बुढ़ापे में है ,घुटने की तकलीफ बहुत है
बचपन में चलते घुटनों  बल,चलना तभी सीख पाते है
मानव के जीवन में घुटने,सबसे अधिक काम आते है
करो प्रणाम झुकाओ
,घुटने,प्रभु पूजन में घुटने टेको
दफ्तर में साहब के आगे,झुकना पड़ता है घुटने को
बैठो तो घुटने बल बैठो,लेटो,करवट लो, घुटने बल
योगासन में,भागदौड़ में,घुटने ही देते है संबल
जगन,शयन और मधुर मिलन में,घुटने का सहयोग बहुत है
सीढ़ी चढ़ने  और उतरने   में घुटनो  का  योग बहुत  है
पत्नी जी यदि जिद पर आये,उनके आगे टेको  घुटने
हम इतना झुकते जीवन भर,की घुटने लगते है दुखने
इस शरीर का सारा बोझा,बेचारे घुटने सहते है
कदम कदम पर ,घुटनों के बल,हम आगे बढ़ते रहते है
एक  तो उमर बुढ़ापे की और उस पर ये घुटने की पीड़ा
उस पर बच्चे ध्यान न देते,मन ही मन घुटने की पीड़ा
मन की घुटन,दर्द घुटने का,तन मन रहती पीड़ बहुत है
होती हमें बुढ़ापे में है,घुटने की तकलीफ बहुत है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

दो दो बातें

   दो दो बातें
  -------------
औरतों के दो ही हथियारों से डरता आदमी,
        एक आंसूं आँख में और एक बेलन हाथ में
औरतों की दो ही चीजों पर फिसलता आदमी,
         एक उनकी मुस्कराहट,एक रसीली बात  में
औरतों की बात दो ही मौकों पर ना टालता,
         एक उसके मायके में, एक मिलन की रात में
दो ही मौको पर खरच करने में घबराता नहीं,
          एक सासू सामने हो,एक साली    साथ में
  प्यार करने  दो ही मौकों पर हिचकता आदमी,
          एक बच्चे साथ में हो,एक हो जब तन थका
औरतों की दो ही चीजे लख मचलता  आदमी,
           एक  चेहरा खूबसूरत,एक चलने की अदा
औरतों की दो ही चीजे आदमी को है पसंद,
            एक सजना सजाना और एक अच्छा पकाना
औरतों  की दो अदाओं पर फ़िदा है आदमी,
           एक उसकी ना नुकुर और एक नज़रें झुकाना
औरतों के रूप का रस इनसे पीता आदमी,
          नशीले दो नयन चंचल और दो लब  रसीले
दो दिनों की जिंदगी को हंस के जीता आदमी,
         गौरी की दो गोरी बाहों का अगर बंधन मिले

मदन मोहन बाहेती'घोटू'